यादवचन्द्र राय (kahani)

May 1986

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बगदाद के यादवचन्द्र राय के घर में चोर घुस गये और माल तलाशने लगे। रायबाबू चुपके से किवाड़ खोलकर अलाव तापने और हुक्का पीने लगे।

चोर खाली हाथ लौटे। अपरिग्रही ब्राह्मण के घर में था क्या? जब चोर निराश लौटने लगे तो रायबाबू ने कहा- ‘भाइयों ! अपने इस दरिद्र जीवन का क्या करूं? कुछ होता तो आप लोगों का सत्कार अवश्य करता। पर हुक्का पीते जाने का अनुग्रह तो करते ही जाइए।’ चोर लज्जा से शिर झुकाये हुक्का पीते और अलाव तापते रहे।


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