दिवास्वप्न न देखो। बिना पंख उड़ानें न भरो। वह करो जो आज की परिस्थितियों में किया जा सकता है।
अनुचित लाभ तत्काल तो बहुत प्रिय लगते हैं। किन्तु पीछे असीम त्रास देते हुए विदा होते हैं।