मित्रता कहाँ रही (kahani)

May 1986

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एक चुहिया, एक छिपकली, एक लोमड़ी एक बकरी चारों सहेलियां थीं। उन्हें मिल कर नदी पार करनी थी, पर पार जाने का कोई साधन न था।

नदी में एक मोटा कछुआ था। वह किनारे पर आया। तो चारों ने कहा। हम सच्ची सहेलियाँ हैं। एक दूसरे का साथ नहीं छोड़तीं। आप कृपा कर हम चारों को एक साथ उतार दें। कछुए को उनकी मित्रता बहुत भली लगी, उसने पीठ पर बिठाकर उतारने की बात स्वीकार कर ली। चारों बैठ गईं तो कछुआ चलने लगा।

कछुआ थोड़ी दूर चला होगा कि उसने कहा। इतने वजन को लेकर मैं नहीं चल सकता हूँ। तुममें से एक उतर जाओ। मुझ से चला नहीं जाता। चुहिया ने छिपकली को कमजोर देखा और पानी में धकेल दिया।

कुछ दूर चलने पर एक के और उतरने की माँग की। लोमड़ी ने चुहिया को कमजोर देखा तो उसे धकेल दिया। बकरी और लोमड़ी दो पीठ पर बैठी थीं। कछुए ने कहा। वजन भारी है एक को और धकेलना पड़ेगा। बकरी ने लोमड़ी धकेल दी। अकेली बकरी पीठ पर रह गई तो कछुए ने कहा। मुझे यह देखना था कि तुम सच्ची सहेलियाँ हो या झूठी। मजबूत ने कमजोर को गिराया तो मित्रता कहाँ रही? यह कह कर कछुए ने डुबकी लगाई और बकरी को भी नदी में बहा दिया।


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