सन्त एकनाथ विनम्रता की मूर्ति थे। कुढ़ने वालों ने षडयन्त्र किया कि जो कोई एकनाथ को क्रुद्ध कर दे उसे पचास मुद्रा पुरस्कार मिलेंगे। एक उद्दण्ड व्यक्ति तैयार हो गया। वह सीधा मन्दिर पहुँचा जहाँ एकनाथ अपना जप, ध्यान कर रहे थे। वह उनकी पीठ पर चढ़ बैठा और गालियों के साथ घूँसे लगाने लगा। एकनाथ ने पीछे देखा और हँसकर कहा- “तुम मेरे सघन मित्र निकले। इतने प्रेम से तो कोई छाती से नहीं मिला था। अब आपका मेरे साथ घर चलकर भोजन भी करना पड़ेगा। उपद्रवी गद्-गद् हो गया।