उनसे प्यार करो, जिन्हें लोग पतित, गर्हित और हेय समझते हैं। जिन्हें केवल निन्दा और भर्त्सना ही मिलती है। जो अपने ऊपर लदे हुए पिछड़ेपन के कारण न किसी के मित्र बन पाते हैं और न जिन्हें कोई प्यार करता है। प्यार करने योग्य वही लोग हैं, जिन्हें स्नेह सद्भाव देकर तुम अपने को गौरवान्वित करोगे। माँगो मत। चाहो मत। देकर ही अपने को गौरवान्वित अनुभव करो।
उन्हें देखने के लिए मत दौड़ो जिनकी त्वचा चमकीली और गठन में सुन्दरता भरी है। ऐसा तो तितलियाँ और भौंरे भी कर सकते हैं। तुम उन्हें निहारो जो दरिद्रता और रुग्णता की चक्की में पिसकर कुरूप लगने लगे हैं। अभावों के कारण जिनकी अस्थियाँ उभर रही हैं और आँखों की चमक छिन गई है। निराशों में आशा का संचार करके तुम अपने को धन्य अनुभव करो।
कोलाहल और क्रन्दन के साथ जुड़ी हुई विपन्नताओं को देखकर न डरो और न भागो वरन् वह करो जिससे अशान्ति को निरस्त और शान्ति को प्रशस्त कर सको। शान्ति पाने के लिए न एकान्त ढूँढ़ो और न उद्यानों में भटको। वह तो तुम्हारे अन्दर है और तब प्रकट होती है जब तुम कोई ऐसा काम करते हो जिससे अनीतियों और भ्रान्तियों को निराकरण हो सके। सत्प्रयत्नों के साथ ही शान्ति जुड़ी हुई है।