सुल्तान नासिरुद्दीन बड़ा धर्मनिष्ठ, स्वावलंबी व नेकदिल इंसान था। वह अपने खजाने से कुछ भी न लेकर अपने हाथ से किताबों की प्रतियाँ तैयार करके गुजर करता था। उसका खाना भी उसकी बेगम ही बनाया करती थी। एक रोज उसने बादशाह से प्रार्थना की— “खाना पकाने में मुझे काफी दिक्कत होती है, मेहरबानी करके एक नौकरानी रखवा दीजिए, जो मेरी मदद करती रहें।” बादशाह ने कहा— “खजाना कोई मेरा तो है नहीं, इस पर तो सारी रियाया का हक है, मेरी खुद की कमाई इतनी नहीं है; फिर नौकरानी कैसे रखूँ।”