सुकरात को जहर दिए जाने के समय उनके सभी संबंधी वहाँ आँसू बहा रहे थे। बिना किसी कुप्रभाव के उनके मुखमंडल पर प्रसन्नता, प्रफुल्लता और भी अधिक परिलक्षित हो रही थी। ऐसा लगता था कि किसी प्रियजन से मिलने की उमंगें उठ रही हों। पास में खड़े शिष्यों ने जब इनका कारण पूछा तो उन्होंने कहा— “मैं मृत्यु से साक्षात्कार करना चाहता हूँ और यह जानना चाहता हूँ कि मृत्यु के बाद हमारा अस्तित्व रहता है या नहीं। मृत्यु जीवन का अंत है अथवा एक सामान्य जीवनक्रम।” सुकरात को निर्धारित समय पर विष देते समय सभी दर्शकों के नेत्र सजल हो उठे। उन्होंने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा— “मेरे शरीर के सभी अवयव गतिहीन हो चुके हैं, लेकिन मेरा अस्तित्व पूर्ववत ही है। जीवन की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं एक अविरल प्रवाह है। जीवन की सत्ता मरणोपरांत भी बनी रहती है।”