क्या पृथ्वी भी प्लूटो बनने जा रही है

January 1986

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सूर्यमंडल का सबसे दूरवर्ती ग्रह प्लूटो, शनि के इर्द-गिर्द घूमने वाला एक छल्ला, मंगल और बृहस्पति के बीच उल्काखंडों की एक भ्रमणशील माला, नेपच्यून के एक कोने पर उठा हुआ कूबड़, इन सब विलक्षणताओं की एक साथ संगति बिठाते हुए अंतरिक्ष विज्ञान के एक मूर्धन्य दल ने एक संगति बिठाई है कि मानवी सभ्यता के उत्कृष्ट अवशेष और विकसित विज्ञान के चिह्न उस पर पाए जाने चाहिए; क्योंकि वह सौरमंडल का सबसे विकसित ग्रह किसी समय रहा है और उसकी प्राकृतिक परिस्थितियाँ पृथ्वी की अपेक्षा कम नहीं; वरन अधिक सुखद थी। फलतः सौरमंडल का मनुष्योपम प्राणी उस पर जन्मा और फला-फूला हो तो आश्चर्य नहीं। प्रगति का मूल आधार प्रकृति के रहस्यों की खोज है। मनुष्य को आदिमकाल से लेकर अद्यावधि जो सुविधा साधन मिले हैं, वे प्रकृति की ही देन हैं; अस्तु यह भी निश्चित है कि उस छिन्न-भिन्न हुए पुरातन सौरमंडल सदस्य ग्रह ने विज्ञान की बढ़ी-चढ़ी खोज की हो।

वैज्ञानिकों ने उस अविज्ञात ग्रह का कल्पित नाम फैथान रखा है। उनका अनुमान है कि उस पर रहने वाले लोगों ने परमाणु रहस्य खोज लिए थे और उसका विस्फोट करके ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत हस्तगत करने का प्रयत्न किया था।

इसी खोज के बीच परस्पर युद्ध छिड़ गया या किसी तकनीकी भूल से परमाणुशक्तिभंडार में विस्फोट हो गया और उसके अत्यंत भयावह परिणाम हुए।

उस ग्रह की स्थिति मंगल और बृहस्पति के बीच जब फटा तो उसकी उखड़ी परत छर्रों के रूप में बिखर गई। छर्रे ही क्षुद्र ग्रहों की माला के रूप में मंगल और बृहस्पति के रूप में घूम रहे हैं।

इसके फैथान का भीतरी ठोसद्रव्य भीतर में शक्ति के बल पर आगे बढ़ा। शनि के एक बड़े चंद्रमा को टक्कर दी और उसे भी धूलि के रूप में बदल दिया। वह धूलि ही शनि के चारों और एक छल्ले के रूप में घूमती रहती है। इस धूलि में फैथान का भी कुछ अंश क्षत-विक्षत होकर मिल गया। इसके उपरांत भी उसका वेग रुका नहीं तेजी कुछ कम तो हुई; पर इतनी कम नहीं कि स्थिरता पकड़ ले। तब वह नेपच्यून से जा टकराया। उस पर उभरा हुआ कूबड़ प्लूटो का कोई टुकड़ा हो सकता है अथवा वही पिचककर एक ओर पहाड़ की शकल में बदल गया हो।

इतने में फैथान ने लंबी यात्रा कर ली थी और उसकी गर्मी कम और चाल शिथिल हो गई। सूर्य की आकर्षणशक्ति की पकड़ में वह आ गया और अन्य ग्रहों की तुलना में अतिशय दूर होते हुए भी सौरमंडल का सदस्य माना गया। औरों की भाँति प्लूटो भी सूर्य की परिक्रमा लगाने लगा; पर इतने पर भी अपनी संपदा का बहुत बड़ा अंश उसने गँवा दिया था और आकार में प्रायः एक चौथाई अंश रह गया। यह अंश वह है जो उसके मध्य भाग में पिघली हुई धातु के रूप में कठोर स्थिति का बचा हुआ था।

प्लूटो पृथ्वी पर से खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता। उसका पता अब से प्रायः 55 वर्ष पहले दूर दर्शन-यंत्रों की सहायता से लगाया। हमारी पृथ्वी सूर्य से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है; पर प्लूटो की दूरी उससे 40 गुनी अधिक है, अर्थात् 15 गुणा 40 बराबर 600 करोड़ मील दूर। उसका सूर्य परिक्रमा वर्ष पृथ्वी के 250 वर्षों के बराबर होता है। दिन-रात भी प्रायः साढ़े पाँच गुने अधिक लंबे होते हैं। सूर्य से पृथ्वी को जितना प्रकाश मिलता है, उसकी तुलना में 1600 गुना कम प्रकाश ही उस तक पहुँच पाता है। वहाँ सदा सर्दी रहती है। शून्य से 200 डिग्री सेंटीग्रेड कम वहाँ का मौसम रहता है। उतने कड़ाके की ठंड में पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राणियों में से किसी का गुजारा नहीं हो सकता है।

इतना दूर और इतना छोटा होते हुए भी पृथ्वी के वैज्ञानिक उस तक पहुँचने और वहीं पर संभावित मानवी सभ्यता तथा वैज्ञानिक प्रगति का पता लगाने के लिए बहुत उत्सुक हैं। अंतर्ग्रही आवागमन की बात सोचने वालों के लिए सौरमंडल के एक सदस्य की खोज-बीन असंभव नहीं होनी चाहिए। इतनी लंबी यात्रा पर मनुष्य का जाना औरललौटना असंभव है; पर स्वसंचालित राकेट में संचालक ‘रोबोट’ तथा उसके साथ खोज-बीन के आवश्यक उपकरण भेजा जाना संभव है। रेडियो तरंगों द्वारा उसका संचालन भी पृथ्वी से हो सकता है।

फैथान ग्रह जैसे सुविकसित ग्रह की ऐसी दुर्दशा कैसे हुई, इसका कारण वैज्ञानिक एक ही बताते हैं कि उन लोगों ने अणुशक्ति का उपयोग जान-बूझकर युद्धरूप में किया होगा अथवा किसी भूल से वह शक्तिभंडार अनायास ही फट पड़ा होगा। इसका परिणाम यही हो सकता था जो होकर रहा।

आज के पृथ्वी निवासी भी उसी आग से खेल रहे हैं। वैज्ञानिक अपरिमित शक्ति के अणु आयुध तैयार कर रहे हैं और शासनाध्यक्ष उनके विपुल भंडार जमा कर रहें हैं। आत्मरक्षा का बहाना भर किया जाता है, वस्तुतः यह प्रयास प्रतिपक्षी को नष्ट करके उसकी भूमि तथा संपदा हथिया लेने भर का है पर यह मनोरथ जो भी कर रहे हों उन्हें इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिए। अब जापान की तरह एक पक्षीय हमला नहीं हो सकता। सामने वाला प्रतिशोध की सामग्री से सुसज्जित होने के कारण चूकेगा क्यों? वह भी प्रत्याक्रमण करेगा। आगामी लड़ाई ऐसी नहीं होगी, जिसमें कुछ मरें कुछ बच जाएँ। होना है तो सर्वनाश ही होगा और उस सुंदर धरती का, समुन्नत सभ्यता का उसी प्रकार होगा जैसा कि तथाकथित फैथान का हुआ। उसने अनेक विपन्नताएँ सौरमंडल में उत्पन्न कीं और स्वयं सबसे पिछली पंक्ति में दयनीय स्थिति में जा बैठा। अगला परमाणु युद्ध हुआ तो पृथ्वी का भी ऐसा ही दुर्भाग्य भरा अंत होना निश्चित है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118