तन्मयता बनाम प्रतिभा

January 1986

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कितने ही व्यक्ति असाधारण प्रतिभा के धनी होते हैं। उनकी विशेषता को देखकर लोग आश्चर्य करते हैं; किंतु यह भूल जाते हैं कि मस्तिष्क की बनावट प्रायः सभी की एक जैसी होती है। जो उससे दत्त-चित्त होकर काम लेते हैं, उनका मानसिक स्तर असाधारण रूप से विकसित हो जाता है। जो उदासी, उपेक्षा अन्यमनस्कता से घिरे रहते हैं, ज्यों-त्यों करके काम की लकीर पीटते हैं, उनके काम तो फूहड़ ढंग के होते ही हैं, साथ ही मस्तिष्क भी मंदगति स्तर का होता है। लगनशील व्यक्ति जन्मजात प्रतिभा न होने पर भी अपनी तत्परता और अभिरुचि के सहारे मानसिक स्तर का असाधारण विकास कर लेते हैं।

रोम का सम्राट हैरियन एक ही समय में एक व्यक्ति से पत्र सुनता, दूसरे से उत्तर लिखवाता। उसे राज्य के सभी पेंशनयाफ्ताओं के नाम-पते जबानी याद थे।

पेपनहम जर्मनी के एल्फोर्ड विश्वविद्यालय के प्राचार्य रहे। साथ ही वे जर्मन जनरल की हैसियत से महायुद्ध में भी शामिल हुए।

फ्रांस के प्रधानमंत्री लियोनगम्बेटा को सरकारी फाइलों के उल्लेख जबानी याद रहते थे। कभी-कभी तो किसी महत्त्वपूर्ण भाषण को वह मुद्दतों बाद शब्दशः सुना सकते थे।

इंग्लैंड का विलियम लेगेट पढ़ना-लिखना नहीं जानता था तो भी उसे पूरी बाइबिल कंठाग्र याद थी। वह पूरे 50 वर्ष तक बिना एक भी नागा किए गिरजा जाता रहा।

इंडियाना स्टेट बैंक के कोषाध्यक्ष ने 500 सिक्कों के नाप का एक पीपा बना रखा था; पर गिनने-तोलने के झंझट से बचने के लिए पीपे में भरकर सिक्के समेटता और देता था। कभी 25 सिक्के भी कम-बढ़ होते तो वह उस पीपे को दुबारा गिनवाता।

ओयियोवा का जज जार्ज ग्रीन 1817 में जन्मा और 1880 में मरा। वह वकील, वैज्ञानिक, अध्यापक, पत्रकार, प्रकाशक, न्यायाधीश, मेयर, नर्सरी मालिक, 6 बैंकों और 17 कंपनियों का संचालक था। वह तीन कालेजों का अध्यक्ष भी था।

कई व्यक्ति प्रतिभावान होने के साथ-साथ उदार भी होते हैं। वे अपनी क्षमता का लाभ स्वयं ही नहीं उठाते; वरन अन्यायों के लिए अपनी उपलब्धियाँ वितरित-विसर्जित करते रहते हैं। ऐसे लोगों की विभूतियाँ सोने में सुगंध का काम करती हैं और अनेकों के लिए अनुकरणीय आदर्श बनती हैं।

पेरिस के ला फैजे ने अपनी बीमार माँ की चिकित्सा करने के लिए 66 वर्ष की उम्र में डाॅक्टरी का कोर्स करने का निश्चय किया। वह पढ़ता भी था और अध्यापकों से पूछकर माँ का इलाज भी करता था। माँ के मरने के उपरांत कुछ ही दिनों में उसकी भी मृत्यु हो गई।

यूनान के एक धनी नागरिक हेरोर्डस ने अपने देश की सामाजिक प्रगति की प्रथम योजना का पूरा खर्च अपने पास से उठाया था। यह राशि 21 करोड़ डाॅलर की थी। इसमें उसकी पीढ़ियों की संचित संपदा पूरी तरह खप गई।

फ्रांस के क्रांतिकारियों की अदालत में रानी एन्टाइनेट को बचावपक्ष का वकील एक ही मिला— क्लाउड़े। क्रांतिकारियों ने अदालत में वकील से उसे रानी की ओर से मिली फीस जमा करने को कहा, तो उसने एक डिब्बी जेब से निकालकर तुरंत अदालत की मेज पर रख दी। उसमें रानी के बालों की एक लट भर थी। इन दिनों रानी सर्वथा धनहीन और असहाय हो चुकी थी।

रोडेशिया में सावी नदी के ऊपर एक गोलाई में बना पुल सैम्युअल विर्शेनफ ने बनाया। उसकी लागत का पूरा खर्च भी उसी ने उठाया। मरने के बाद निर्माता और उसकी पत्नी के अवशेष उसी पुल में जड़ दिए गए।

मिश्र और सीरिया के विजेता सुल्तान सलीदान जब गद्दी पर बैठे तो उनने अपने जीवित पिता से कहा— "आप राज्य करें, मैं आपका गुमास्ता बनकर काम करूंगा।" पिता तैयार न हुए तो यह नियम बनाया गया कि दरबार होने पर पहले राज्यसिंहासन पर पिता बैठें। बेटा उन्हें सिर झुकाकर आदाब अर्ज करेगा। इसके बाद ही शासक अपना काम-धाम चलाता था।

आवश्यक नहीं कि धनी या प्रतिभावान ही उदारता भरे काम करें। निर्धन व्यक्ति भी अपने स्वल्प साधनों से पारमार्थिक कामों में थोड़ा-थोड़ा योगदान देकर भी प्रेरणाप्रद उदाहरण खड़ा कर सकते हैं।

फ्रांस का टेहारनटे चर्च उस क्षेत्र के निवासियों के पत्थर अनुदान से बना है। जो अन्यत्र ये पत्थर न पा सके, उनने अपनी दीवारों में से निकाल-निकालकर गिरजे के लिए पत्थर दिए।

यदि कार्य के प्रति तन्मयता हो तो बड़े से बड़ा कार्य छोटे दिखने वाले व्यक्तियों द्वारा संभव हो सकता है।


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