प्रार्थना— बस इतनी ही कृपा करना (रविंद्रनाथ टैगोर)

January 1986

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हे प्रभो! मेरी केवल एक ही कामना है कि मैं संकटों से डरकर भागूँ नहीं, उनका सामना करूँ। इसलिए मेरी यह प्रार्थना नहीं है कि संकट के समय तुम मेरी रक्षा करो, बल्कि मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि तुम उनसे जूझने का बल दो। मैं यह भी नहीं चाहता कि जब दुःख-संताप से मेरा चित्त व्यथित हो जाए तब तुम मुझे सांत्वना दो। मैं अपनी अंजली के भाव-सुमन तुम्हारे चरणों में अर्पित करते हुए इतना ही माँगता हूँ कि तुम मुझे अपने दुःखों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दो।

जब किसी कष्टप्रद और संकट की घड़ी में मुझे कहीं से कोई सहायता न मिले तो मैं हिम्मत न हारूँ। किसी और स्रोत से सहायता की याचना न करूँ, न उन घड़ियों में मेरा मनोबल क्षीण होने पाए। हे प्रभो! मुझे ऐसी दृढ़ता और शक्ति देना, जिससे कि मैं कठिन से कठिन घड़ियों में भी संकटों और समस्याओं के सामने भी दृढ़ रह सकूँ और तुम्हें हर घड़ी अपने साथ देखते हुए उन्हें हँसी-खेल समझकर अपने चित्त को हल्का रखूँ। मैं बस यही चाहता हूँ।

चाहे जैसी भी प्रतिकूलताएँ हों, व्यवहार में मुझे कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े, इसकी मुझे जरा भी परवाह नहीं है। लेकिन प्रभु मुझे इतना कमजोर मत होने देना कि मैं आसन्न संकटों को देखकर हिम्मत हार बैठूँ और यह रोने बैठ जाऊँ कि अब क्या करूँ; मेरा सर्वस्व छिन गया।

प्रभु! तुम्हारा और केवल तुम्हारा विश्वास ग्रहणकर लोगों ने अकिंचन अवस्था में रहते हुए भी इतिहास की श्रेष्ठ उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। मैं इतना ही चाहता हूँ कि तुम्हारा विश्वास मेरे लिए शक्ति बने याचना नहीं, संबल बने क्षीणता नहीं। बस इतनी ही कृपा करना।

— रविंद्रनाथ टैगोर


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