तेजोवलय अथवा बायोप्लाज्मा

January 1986

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मनुष्य की सत्ता का अंत उसकी मृत्यु के साथ ही हो जाता है। यह बात विज्ञान ने उन दिनों कही थी जब वह नितांत बचपन की स्थिति में था और अपनी बात मनवाने के लिए जिद्दी बच्चों की तरह मचलता था। तब उसने मनुष्य को एक चलता-फिरता पौधा भर कहा था, जिसकी हस्ती मरने के साथ ही समाप्त हो जाती है। उसने कहा था— यह शरीर कुछ रसायनों के समन्वय से उत्पन्न प्रतिक्रिया भर है। जो विघटन होते ही समाप्त भी हो जाता है।

पर अब वैसी बात नहीं रही। अब उसका स्थायित्व माना जाने लगा है और समझा जा रहा है कि मृत्यु के उपरांत भी मनुष्य का कुछ अवशेष रह जाता है। जिसमें अवसर मिलने पर एक स्वतंत्र इकाई बन सकने की क्षमता है।

शरीर की ऊर्जा विद्युत-मापक यंत्रों से आँकी जाने लगी है। इसके अतिरिक्त एक सचेतन-ऊर्जा का दूसरा प्रकार भी सामने आया है, जिसे ‘औरा’ या तेजोवलय कहते हैं। यह खुली आँख से तो किन्हीं विशेष व्यक्तियों को ही दिख पड़ता है; पर उसे स्पष्ट और प्रत्यक्ष देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र उपकरण बन गए हैं, जो बताते हैं कि शरीर के ईद-गिर्द एक प्रकाश का घेरा फैला रहता है।

इस प्रकाश में चुंबकत्व भी रहता है, जो दूसरे समर्थ की ओर खिंचता है और दुर्बल को अपनी और खींचता है। यहाँ दुर्बलता और समर्थता शारीरिक नहीं; वरन मानसिक कही जा रही है। प्रतिभावान, सुंदर, किशोर, कलाकार, हँसोड़, प्रसन्नचित्त प्रकृति के मनुष्य मनोबल की दृष्टि से अधिक आकर्षक होते हैं; जबकि विद्वान, वयस्क, व्यस्त, उदास प्रकृति के मनुष्यों में आकर्षणशक्ति अधिक होती है। मित्रता को जल्दी बनाने और घनिष्ठ करने में यह तेजोवलय अधिक काम करता है। नर-नारी के बीच पाए जाने वाले आकर्षणों में इस चुंबकत्व का पूरक स्तर ही विशेष रूप से काम करता है। वह खिन्नता की स्थिति में साहस भी बढ़ाता है और सहायक भी सिद्ध होता है।

व्यक्तित्व के उत्कृष्ट, मध्यम या निकृष्ट होने की स्थिति में यह प्रकाश— तेजस् रंग भी बदलता रहता है। इसमें कई प्रकार के रंगों का मिश्रण भी पाया जाता है। इसका आधार विज्ञानी अल्फा, अल्ट्रा, गामा, वीटा आदि किरणों की न्यूनाधिकता बताते हैं और अनुमान लगाते हैं कि इस व्यक्ति की प्रतिभा किस स्तर की होनी चाहिए। अध्यात्मवादी इस हेर-फेर को चिंतन और चरित्र की ऊँचाई का अनुमान लगाते हैं।

सूक्ष्मशरीर की व्याख्या अध्यात्म-तत्त्वज्ञान में दूसरे ढंग से की जाती है; पर विज्ञानी इसे शरीर बिजली एवं ऊर्जा कहते हैं, जो एक स्थान पर रहने के उपरांत उस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य कर लेती है और प्रभाव बनाए रहती है। यह भी एक प्रकार का सूक्ष्मशरीर ही है, जो असली व्यक्ति के अन्यत्र चले जाने या मर जाने पर भी अपना अस्तित्व बनाए रहता है। मिश्र के पिरामिडों में हजारों वर्ष पूर्व मरे मृतकों की आत्मा का परिचय उन भवनों में मिलता है। यह आत्मा नहीं, वह तेजोवलय है जो लंबी अवधि तक बना रहता है। प्राणी के अन्यत्र जन्म ले लेने पर भी यह तेजोवलय अपने अभ्यस्त एवं प्रभाव क्षेत्र में बना रहता है। भूत-प्रेत की वैज्ञानिक व्याख्या इन दिनों इसी रूप में की जा रही है।

तेजस्वी— प्रतिभावान व्यक्तियों का तेजोवलय अधिक प्रभावी, प्रचंड एवं स्थिर होता है; जबकि दुर्बल प्राणों का वलय कुहरे की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।

जिन स्थानों में चौकाने वाली, अद्भुत, मार्मिक घटनाएँ घटित हुई होती हैं, वहाँ पर उसी वातावरण की अनुभूतियाँ लंबे समय तक होती रहती हैं। भले ही संबद्ध व्यक्ति बहुत पहले ही वहाँ से चले गए हों। व्यभिचार, अत्याचार, अहंकार के केंद्र बने हुए स्थान प्रायः बहुत समय तक उसी प्रकार का प्रभाव बनाए रहते हैं। उधर से गुजरने वाले मनुष्यों के मनों में उसी प्रकार के उभार उठते हैं।

महामानवों का यह सूक्ष्मप्राण भी उन स्थानों को प्रभावशाली बनाए रहता है। ऐसे ही स्थान तीर्थस्वरूप प्रेरणाप्रद बने रहते हैं और वहाँ आने वालों के मन पर अपनी छाप छोड़ते हैं।

मार्कोनी कहते थे कि कई बार सूक्ष्मशब्द भी चिरकाल तक अपना अस्तित्व बनाए रहते हैं। वे कहते थे कि ईसा द्वारा अंतिम समय पर कहे गए शब्द अभी भी प्रयत्न करने पर उसी रूप में सुने जा सकते हैं। कृष्ण के मुख से कहा गया गीता-प्रसंग भी।

वैज्ञानिक एडीसन कहते थे कि जीवित और दिवंगत मनुष्यों के बीच आदान-प्रदान का आधार बनी रहने वाली शक्ति, जो जीवित स्थिति में तेजोवलय कही जाती है और मरने के उपरांत अदृश्य महाप्राण।

ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस कहते थे कि जिस प्रकार परमात्मा का एक अंश जीव है। उसी प्रकार ब्रह्मांडीय चेतना का महाप्राण व्यक्तियों के साथ तेजोवलय के रूप में लिपटा रहता है।

गहराई में जाकर खोजने वालों ने इसे ‘सबकान्शियस माइण्ड आफ दि ऑपरेटर’ कहा है और भूतों के उपद्रवों तथा अनुदानों को इसी के साथ जोड़ा है।

सेन्ट थामस अस्पताल लंदन के जैवविज्ञानी वाल्टर जोकिलयर ने पुस्तक लिखी है— ‘दि ह्यूमन एटमोस्फियर’ इसमें उनने ह्यूमन औरा के आधार पर रोगियों की जीवनीशक्ति का सुविस्तृत वर्णन किया है।

स्वीडन के वेलैटिना क्रिलियन ने तीस वर्ष खोज के उपरांत एक पुस्तक अंग्रेजी में प्रकाशित कराई- “साइकिक डिस्कवरी बिहाइन्ड आइरन कर्टेन”। इसमें उनने मनुष्य के मस्तिष्क को नहीं; वरन तेजोवलय को ही अतींद्रिय क्षमताओं का आधार बताया है और असाधारण क्रिया-कर्तृत्व दिखा सकने वाले लोगों में एक अतिरिक्त क्षमतासंपन्न तेजोवलय पाया है।

लास ऐंजिल के विज्ञानी डाॅ. थैल्यामौस ने ‘औरा’ को प्रत्यक्ष करने वाली एक विशेष फोटोग्राफी का आविष्कार किया है और इस शक्ति को “बायोप्लाज्मा” नाम से संबोधित किया है।

तेजोवलय कई बार अतिरिक्त प्रतिभा के रूप में जन्मजात रूप से भी आता है; किंतु मरने के उपरांत वह पूरी तरह चला नहीं जाता। वह अपने मित्र-शत्रुओं के साथ विशिष्ट भावनाओं के साथ उत्तेजित होता है और साधारण स्तर के सरल हृदय लोगों को भी अपनी स्मृति दिलाने वाले परिचय देता है।

इस प्रकार सूक्ष्मशरीर की व्याख्या तेजोवलय के रूप में होने लगी है और आत्मा का परिचय ‘कास्मिक एनर्जी’ के रूप में दिया जा रहा है तो भी तत्त्वज्ञान और विज्ञान की व्याख्याओं में काफी अंतर शेष है, संभव है इसका निराकरण भविष्य में हो सके।


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