भावनाओं को तरंगित करने में संगीत का उपयोग

January 1986

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शांति की खोज में भटकता, भौतिकवादी मानव को कहीं शांति नहीं मिलती। पाश्चात्य भौतिकवादी राष्ट्र ने, भौतिक आवश्यकताओं से ऊबा अपने को संगीत में पिरो देने का एक नया नुस्खा खोज निकाला है।

पाश्चात्य राष्ट्रों में पियानो के प्रति आकर्षण पैदा करने में जापान की “यामाहा” कंपनी की भूमिका प्रमुख है। इसने 4 वर्ष के बच्चों को संगीत की शिक्षा के लिए पियानो वादन का कार्यक्रम शुरू किया था जो आज इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी आदि विकसित राष्ट्रों के प्रौढ़ों तक के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। आज विश्व भर में 10 हजार से भी ज्यादा यामाहा स्कूल हैं, जहाँ बच्चों के स्कूल जाने के पूर्व संगीत का प्रशिक्षण दिया जाता है।

पाश्चात्य राष्ट्रों में पियानो के प्रति बढ़ता आकर्षण निम्न आँकड़ों से स्पष्ट हो जाता है। इटली के एक पियानो विक्रेता ने 1977 ई. में 2,300 पियानो जापान से आयात किए थे, जबकि 1980 में 5,500 तथा 1981 में अमेरिका एवं पश्चिमी राष्ट्रों में इतने अधिक पियानो बिके जितने कि 128 वर्ष के इतिहास में एक नया रिकार्ड बन गया। यह तो मात्र 'स्टाइनवे एण्ड सन्स' कंपनी की बिक्री थी। अन्य कंपनियों की बिक्री का हिसाब इससे बाहर है।

अभी तक पश्चिमी योरोप में संगीत के कार्यक्रम मात्र वसंत ऋतु में ही आयोजित किए जाते थे; किंतु अब यह कार्यक्रम बारह महीने चलते रहते हैं। 1982 ई. में सिर्फ फ्रांस में ही 250 संगीत समारोहों का आयोजन हुआ, जो हफ्तों चला करते थे। इसी प्रकार 82 ई. में ही स्विट्जरलैण्ड में लगभग 65000 लोग मोन्ने अंतर्राष्ट्रीय जैज समारोह में 1000 जैज वादकों को श्रवण करने हेतु इकट्ठा हुए थे। इस समय पश्चिमी योरोप में कोई भी संगीत कार्यक्रम आशा से ज्यादा आर्थिक लाभ का सिद्ध हो रहा है।

पश्चिमी देशों में संगीत के प्रति बढ़ता आकर्षण इस बात से भी सिद्ध हो जाता है कि कोई भी संगीत वादक अपना खुद का बनाया संगीत बजाना एवं गाना ज्यादा पसंद करता है। 1982 ई. गिटार वादन का एक धारावाहिक पाठ्यक्रम मिलान समाचारपत्र वालों ने प्रकाशित करना प्रारंभ किया, जिसकी 2,50,000 प्रतियाँ प्रथम संस्करण की बिक गईं। बाध्य होकर इससे बड़ी संख्या में दूसरा संस्करण उन्हें छपवाना पड़ा था।

गत 10 वर्षों में ब्रिटेन में भी संगीत के प्रति आशातीत आकर्षण पैदा हुआ है। इस समय यहाँ पर संगीत केंद्रों की संख्या हजारों में है। जहाँ से 1981 ई. में म्यूजिक से संबंधित बोर्ड परीक्षा में 3,50,000 के करीब परीक्षार्थी बैठे थे। इसी प्रकार फ्रांस में 5000 के लगभग संगीत विद्यालय हैं। पश्चिमी जर्मनी में 375 संगीत विद्यालयों में 24000 संगीत शिक्षक तथा 6,50,000 विद्यार्थी हैं तथा 50,000 से ज्यादा संगीत शिक्षा प्रेमी स्कूलों की तलाश में हैं।

“युवाओं द्वारा संगीत सृजन” कार्यक्रम के अंतर्गत पश्चिमी जर्मनी में प्रति वर्ष 10,000 छात्र-छात्राओं को प्रादेशिक परीक्षा में भाग लेने दिया जाता है; अंततः 100 युवा विजेताओं को राष्ट्रीय युवा वाद्य संघ में वादन के लिए चुना जाता है, जो देश-विदेश में अपना कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

पाश्चात्य राष्ट्रों में संगीत के प्रति बढ़ रहे आकर्षण को ध्यान में रखते हुए जापान ने एक कंप्यूटर-प्रणाली विकसित की है, जिसमें अशिक्षित भी संगीत की रचना कर सकेंगे। एक नमूना ‘वीएल-टोन’ नाम से निकाला गया है जो 1981 में ही 40 लाख से ज्यादा की संख्या में बिक चुका है।

संगीत से रोने वाले को हँसाया जा सकता है तथा हँसने वालों को करुणाकर रोते भी संगीत के प्रभाव से देखा गया है। संगीत की इस अनुपम क्षमता का वैज्ञानिकों ने वनस्पति-जगत पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया है। सोवियत विशेषज्ञों ने इस विषय पर काफी शोधकार्य किया है। अपने शोध में इन वैज्ञानिकों ने गेहूँ पर कर्णातीत ध्वनी का प्रयोग किया। इस ध्वनि का प्रयोग 10 मिनट तक कई दिनों तक गेहूँ के खेतों में किया तो पाया गया— इस ध्वनि के प्रभाव से गेहूँ में पालारोधक क्षमता पैदा हो जाती है। साथ ही उसी खाद-पानी एवं सुरक्षा के उपायों के समान रहने पर संगीत के प्रभाव वाले गेहूँ की पैदावार भी बढ़ी हुई पाई गई है।

कोलाहल और समस्याओं से घनीभूत संसार में यदि परमात्मा का कोई उत्तम वरदान मनुष्य को मिला है तो वह संगीत ही है। संगीत से पीड़ित हृदय को शांति और संतोष मिलता है। संगीत से मनुष्य सृजनशक्ति का विकास और आत्मिक प्रफुल्लता मिलती है। जन्म से लेकर मृत्यु तक, शादी-विवाहोत्सव से लेकर धार्मिक समारोह तक के लिए उपयुक्त संगीत-निधि देकर परमात्मा ने मनुष्य की पीड़ा को कम किया, मानवीय गुणों से प्रेम और प्रसन्नता को बढ़ाया।

अकबर की राज्य-सभा में संगीत प्रतियोगिता रखी गई। प्रमुख प्रतिद्वंदी थे— तानसेन और बैजूबावरा। यह आयोजन आगरे के पास वन में किया गया। तानसेन ने ‘टोडी’ राग गाया और कहा जाता है कि उसकी स्वर लहरियाँ जैसे ही वनखंड में गूँजित हुई मृगों का एक झुंड वहाँ दौड़ता हुआ चला आया। भावविभोर तानसेन ने अपने गले में पड़ी माला एक हिरण के गले में डाल दी। इस क्रिया से संगीत-प्रवाह रुक गया और तभी सब के सब सम्मोहित हिरण जंगल में भाग गए।

टोड़ी राग गाकर तानसेन ने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत मनुष्यों को ही नहीं, प्राणिमात्र की आत्मिक प्यास है, उसे सभी लोग पसंद करते हैं। इसके बाद बैजूबावरा ने ‘मृग-रजनी टोड़ी’ राग का अलाप किया। तब केवल एक वह मृग दौड़ता हुआ राज्य-सभा में आ गया, जिसे तानसेन ने माला पहनाई थी। इस प्रयोग से बैजूबावरा ने यह सिद्ध कर दिया कि शब्द के सूक्ष्मतम कंपनों में कुछ ऐसी शक्ति और सम्मोहन भरा पड़ा है कि उससे किसी भी दिशा के कितनी ही दूरस्थ किसी भी प्राणी तक अपना संदेश भेजा जा सकता है।

इसी बैजूबावरा ने अपने गुरु हरिदास की आज्ञा से चंदेरी गुना (मध्यप्रदेश) जिले में स्थित निवासी नरवर के कछवाह राजा राजसिंह को ‘रागपुरिया’ सुनाया था और उन्हें अनिद्रा रोग से बचाया था। दीपक राग का उपयोग बुझे हुए दीपक जला देने, ‘श्री राग’ का क्षय रोग-निवारण में, ‘भैरवी राग’ प्रजा की सुख-शांतिवर्द्धन में, ‘शकरा राग’ द्वारा युद्ध के लिए प्रस्थान करने वाले सैनिकों में अजस्र शौर्य भर देने में आदिकाल से उपयोग होता रहा है। वर्षा ऋतु में गाँव-गाँव मेघ व मल्हार राग गाया जाता था, उससे दुष्ट से दुष्ट लोगों में भी प्रेम, उल्लास और आनंद का झरना प्रवाहित होने लगता था। स्वर और लय की गति में बँधे भारतीय जीवन की सौमनस्यता जो तब थी, अब वह कल्पनामात्र रह गई है। सस्ते सिनेमा संगीत ने उन महान शास्त्रीय उपलब्धियों को एक तरह से नष्ट करके रख दिया है।

ब्रिटिश सर्जन चीफ डॉन मैककैनसी का कथन है कि विगत युद्धों में परोक्ष रूप से ध्वनि के भाव से जितने व्यक्ति मरे हैं, उतने बम की मार से नहीं। वैज्ञानिक भविष्य में ध्वनि को युद्धों में मारक अस्त्र की भाँति प्रयुक्त करने का विचार कर रहे हैं। केवल धीमी आवाज एक नियत फ्रीक्वेंसी में धीरे-धीरे फेंककर किस प्रकार एक समूह विशेष में मानसिक तनाव फैलाया जा सकता है, इसका उदाहरण पिछले दिनों कनाडा पर रशिया द्वारा किए गए “ध्वनि आक्रमण” के रूप में देखा गया। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोलाहल रूप में ध्वनि पागलपन व मनोविकारों को बढ़ाती एवं मधुर समवेत स्वर-प्रवाह के रूप में संचरित होने पर रोग-निवारण करती है, मनःशक्तियों को बढ़ाती है। संगीत एवं सामूहिक गान को अब विदेशों में चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा है।


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