सिंहासनारूढ़ उदयसिंह (कहानी)

January 1986

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मेवाड़ के राजा न रहे तो सिंहासनारूढ़ उदयसिंह को किया गया जो अभी पालने में झूलने वाली आयु के थे। संरक्षक बनवीर को नियुक्त किया गया।

बनवीर ने सोचा— क्यों न बालक को मारकर गद्दी हथिया ली जाए। लालच का नशा पूरे उभार पर था। रात्रि के समय नंगी तलवार लेकर बनवीर वहाँ पहुँचा जहाँ पन्ना धाय उसे दूध पिला रही थी। बगल में उसका अपना बच्चा भी सोया हुआ था।

धाय को झकझोरते हुए बनवीर ने पूछा— "बताओ इनमें से उदयसिंह कौन-सा है।" एक जैसे कपड़े होने के कारण वह पहचान नहीं पा रहा था।

पन्ना को वस्तुस्थिति समझने में देर न लगी। प्यार को महत्व दे या कर्त्तव्य को? सही बताने में अधिक उपयोगी बच्चा जाता था और कर्त्तव्य पर आँच आती थी। गलत बताने से अपना लाड़ला हाथ से जाता था।

असमंजस कुछ क्षण ही रहा। कर्त्तव्य निर्धारित करते देर न लगी। उसने अपने बच्चे की ओर उँगली से इशारा कर दिया, तलवार चली और बच्चे के दो टुकड़े हो गए।

पन्ना का प्राण चीत्कारकर उठा, पर रोने से भेद खुलता था। सो वह आँसू भी पी गई। काम समाप्त हुआ। राजकुमार धाय का बच्चा बना रहा और उसी प्रकार पलता रहा। किसी को कानों-कान खबर तक न पड़ी।

समय बीता। वस्तुस्थिति प्रकट हुई। उदयसिंह को गद्दी पर बिठाया गया। गद्दी पर बैठते समय उसने पन्ना धाय के चरण चूमें और कहा— “राजपूतों की बलिदान शृंखला में आप सदा मूर्धन्य गिनी जाती रहेंगी।"


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