उपकार सौदे की तरह न करो। उसे कर्त्तव्य मानकर करने से ही तो सन्तोष मिलता है उतना प्रतिफल ही पर्याप्त है। प्रत्युपकार के लिए किया गया उपकार तो खीज और निराशा ही दे सकता है।