एक दिन अकबर बादशाह का अँगूठा चाकू से कट गया। बीरबल पास ही में बैठे थे उनने दार्शनिक जैसी मुद्रा बना कर कहा- “ईश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है।” बादशाह को इस पर बुरा लगा किन्तु उस समय चुप रह गये। कुछ नहीं कहा।
बहुत दिन बाद बादशाह बीरबल वन विहार को गये। प्यास लगी। कुँआ निकट देखकर बादशाह ने बीरबल से कहा- ‘पानी खींच लाओ।’ वे खींचने लगे तो बादशाह ने पीछे से धक्का दिया और वे कुँए में गिर पड़े। ऊपर से बादशाह ने कहा- “ईश्वर जो करता है अच्छे को ही करता है” यह कहकर वे अकेले ही आगे बढ़ गये।
वे थोड़ी ही दूर आगे बढ़े होंगे कि जंगलियों के झुण्ड ने उन्हें पकड़ लिया और देवी पर बलि चढ़ाने के लिए घसीट ले गये। सिर कटने वाला ही था कि झुण्ड के मुखिया ने यह देखने को कहा- “कोई अंग भंग तो नहीं है।” बादशाह का अँगूठा कटा हुआ पाया गया अतः बलि अयोग्य समझ कर उन्हें छोड़ दिया गया।
बादशाह लौटकर उसी कुँए पर आये और प्रयत्नपूर्वक बीरबल को निकाला। पूछा- “मेरा अँगूठा कटना तो सचमुच ही ईश्वर का अनुग्रह निकला पर तुम्हें जो इस कुँए में गिराने का कष्ट सहना पड़ा, इस ईश्वर की मर्जी से क्या लाभ हुआ।”
बीरबल ने कहा- ‘यदि आप कुँए में न गिराते तो जंगली मेरे सभी अंग पाकर मुझे ही बलि पर चढ़ा देते। कुँए में पड़ा रहने पर मैं बच तो गया।
दोनों हँसते हुए लौटे रास्ते में कहने लगे असमंजस और दुःख के प्रसंग आने पर इस नुक्से से काम लेना चाहिये कि ईश्वर जो करता है अच्छे को ही करता है। वस्तुतः कर्ता-धर्ता तो मनुष्य स्वयं ही है असमंजस के क्षणों में राहत देने वाली यह अच्छी दवा है कि ईश्वर को बीच में ढालकर मन हलका कर लिया जाय।