एक अति सुन्दरी राजकुमारी का स्वयंवर रचा गया। पिता की घोषणा थी कि जिसे वरा जायेगा उसे आधा राज्य दहेज में मिलेगा और शेष उसके मरने के उपरान्त। नारद उधर से निकले तो इस दुहरे प्रलोभन पर मुग्ध हो गये। भगवान के पास पहुँचे और अति सुन्दर रूप प्रदान करने की कामना व्यक्त करने लगे। विष्णु स्तब्ध रह गये। नारद ने समझा भगवान की मौन स्वीकृति मिल गई स्वयंवर में पहुँचे तो कुरुपता ज्यों की त्यों बनी रही। विवाह किसी दूसरे से हुआ। नारद को अत्यन्त दुःखी और कुपित देखकर कहा- मैं जिन पर अनुग्रह करता हूँ उनकी कामनाएँ पूरी नहीं करता वरन् लोभ मोह से छुड़ाने का उपाय करता हूँ। इसी में भक्तों का हित छिपा रहता है।