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Akhand Jyoti
Year 1984
Version 2
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March 1984
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पहले ईमानदार और नेक बनें। बाद में हो सके तो कुशल विद्वान् और सम्पन्न भी बन दिखायें।
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Page Titles
चार दिन की सत्र शृंखला अब मार्च, अप्रैल में भी जारी रहेगी
नीतिमत्ता- एक अनुशासन, एक अनुबन्ध
विधि का विधान- कर्म का प्रतिफल
ज्ञान का आदि स्त्रोत- जिज्ञासा
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दृश्य से परे विचारों की विलक्षण दुनिया
चन्द्रशेखर आजाद (kahani)
पूर्व जन्म की स्मृति अवाँछनीय
मानव से जुड़ी परोक्ष जगत की हलचलें
सिद्धी का दर्शन और मर्म
पारस्परिक सहकार से गतिशील जीवन चक्र
उदार चेता (kahani)
आत्मबोध की चमत्कारी परिणतियाँ
आत्मा शरीर से भिन्न है और स्वतंत्र भी
व्यक्ति चारपाई पर बैठा (kahani)
स्वप्नों से होती है आगत की जानकारी
चेतना जगत की सुलझती गुत्थियाँ
चाणक्य की संकल्प शक्ति (kahani)
सब कुछ लुट गया
शराब की लत से बेतरह डूबा (kahani)
अतीन्द्रिय क्षमताएँ अभ्यास की देन
अन्य प्राणी सर्वथा पिछड़े हुए ही नहीं हैं।
वरिष्ठता विस्तार में नहीं स्तर में है।
उसने हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी
एक साधु थे (kahani)
वरिष्ठ आत्माओं के इस धरती को विशिष्ट अनुदान
प्रौढ़ावस्था- प्रगति एवं परिपक्वता की अवधि
स्वार्थ सिद्धि एवं औचित्य की मर्यादा
बादशाह का अँगूठा चाकू से कट गया (kahani)
उपयोगी ज्ञान वृद्धि विवेक बुद्धि के सहारे
राजकुमारी का स्वयंवर रचा गया (kahani)
जिन्दगी चालीसवें साल से शुरू होती है।
प्रगति और कर्मठता एक ही तथ्य के दो पक्ष
सराय में पहुँचा (kahani)
मुस्कान- एक औषधि एवं समग्र उपचार
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गर्मी और रोशनी से दूर न भागें
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विधेयात्मक चिन्तन की फलदायी परिणतियाँ
हम अनिष्ट काल में से गुजर रहे हैं।
पृथ्वी के इर्द गिर्द चल रहीं अवाँछनीय हलचलें
प्रकृति की छेड़ छाड़- अवाँछनीय-अहितकर
कछुआ बच गया (kahani)
यज्ञ में मन्त्र शक्ति के प्रखर प्रयोक्ता
राजा विक्रमादित्य (kahani)
अन्धकूप के पाँच प्रेत
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अपनों से अपनी बात
कंटकों की राह (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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