एक था कछुआ। दूसरा था खरगोश। दोनों साथ-साथ रहते।
एक दिन शिकारी उधर से आये। खरगोश ने उछल-कूद मचाई। कछुए ने पंजे पेट में सिकोड़ लिये।
खरगोश पकड़ा गया। कछुआ बच गया।
न जाने कौन कह रहा था- “बहिर्मुखी घाटे में रहता है और अन्तर्मुखी नफे में।”