गुजरात का एक जमींदार शराब की लत से बेतरह डूबा था, साथ ही उससे होने वाली हानियों भी उसे कम दुःखी नहीं कर रही थीं। एक दिन उस क्षेत्र के सन्त रविशंकर महाराज पधारे। उनसे जमींदार ने लत छूटने का उपाय पूछा और आशीर्वाद माँगा।
महाराज ने इसके लिए दूसरे दिन अपने डेरे पर बुलाया। नियत समय पर पहुँचा भी। पहुँचने पर अजीब दृश्य देखा। महाराज खम्भे को दोनों हाथों से जकड़े खड़े थे।
जमींदार ने बैठने और बात करने के लिए कहा, तो उनने विवशता जताते हुए कहा- क्या करें, खम्भे ने जकड़ लिया है, यह छोड़ता ही नहीं।
जमींदार ने कहा- ‘आप कैसी अजीब बात कहते हैं। कहीं बेजान खम्भा जानदार आदमी को जकड़ सकता है।’
महाराज ने खम्भा छोड़ दिया और जमींदार के कन्धे पर हाथ रखते हुए पूछा- ‘शराब बेजान और आप जानदार हैं न? लत आपकी है या शराब की? शराब को आप छोड़ेंगे या शराब आपको छोड़े?
जमींदार को नया प्रकाश मिला। उसने उसी दिन से संकल्पपूर्वक शराब छोड़ दी और फिर जिन्दगी भर छुई तक नहीं।