कर्मयोग के उपासक-आराधक

December 1983

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विधाता ने जय-विजय को धरती पर यह तलाश करने के लिए भेजा कि इस वर्ष किसे स्वर्ग में सम्मान प्रवेश दिया जाय।

दोनों दूत सर्वत्र घूमते फिरे और सज्जनों, भक्तजनों का लेखा-जोखा नोट करते रहें।

इस बीच उन्होंने एक अन्धा वृद्धजन देखा जो रास्ते के किनारे दीपक जलाये बैठा था। देवदूतों ने वृद्ध से पूछा, ‘घर से दूर आंखें न होते हुए, दीपक जलाना और रात भर जागना, कुछ समझ में नहीं आया।

वृद्ध ने कहा-जो किया जाय वह अपने लिए हो, यह क्या जरूरी है। संसार के अन्य लोग भी तो अपने ही हैं रात्रि को निकलने वालों को ठोकर लगने से बचाकर मुझे ही सन्तोष और आनन्द मिलता है। स्वार्थरत रहने की तुलना में यह लाभ क्या कम है।

देवदूत पर्यवेक्षण करके वापस लौटे और सारे विवरण सुनाये, तो सर्वश्रेष्ठ वह अन्धा ही निकला। देवता अपने कन्धों पर पालकी से उसे स्वर्ग लाये और पुण्यात्माओं में वरिष्ठों को दिया जाने वाले स्थान पर कर्मयोग के उस उपासक को रखा गया।

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खलीफा उमर, छत पर बैठे थे। आसमान पर नजर डाली तो एक फरिश्ता मोटी किताब बगल में दबाये ऊपर उड़ता नजर आया।

खलीफा ने प्रार्थना की और वह जमीन पर उतर आया। पूछा-इस मोटी किताब में क्या लिखा है। उत्तर मिला उसमें खुदा के उन बन्दों के नाम हैं जो इबादत करते हैं।

खलीफा की उत्सुकता मिटाने के लिए फरिश्ते ने सभी सुना दिये। उनमें खलीफा का नाम नहीं था। वे उदास रहने लगे। उनकी इबादत इस लायक क्यों समझी गई।

एक दिन फिर आसमान पर उड़ता एक दूसरा फरिश्ता, खलीफा ने देखा। इसकी बगल में छोटी किताब थी। अबकी बार भी वैसी ही उत्सुकता उभरी और विनयपूर्वक उसे नीचे उतरने के लिए रजामन्द कर लिया।

छोटी किताब में क्या लिखा है? पूछने पर फरिश्ते ने कहा-इसमें उन लोगों के नाम हैं जिनकी इबादत खुदा बन्द करीम खुद करते हैं। आश्चर्यचकित खलीफा ने पूछा-क्या ऐसे भी भाग्यशाली लोग संसार में हैं जिनकी इबादत खुदा को करनी पड़ती है। फरिश्ते ने कहा, “क्यों नहीं, जो उनका काम करने में दिन-रात लगे रहते हैं उनकी रखवाली ही नहीं कृतज्ञता पूर्वक इबादत भी खुदा करते हैं।”

पुस्तक में थोड़े से ही नाम थे। फरिश्ते ने सुना दिये उनमें खलीफा उमर का नाम पहला था।

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रात्रि के समय कोई सन्त कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक कुत्ता मिला और भौंकने लगा।

सन्त ने कहा मूर्ख अकारण क्यों चिल्लाता है। इससे तो सोने वालों की नींद टूटती है। राहगीरों की मंजिल खोटी होती है और तुझे बदनामी मिलती है।

कुत्ते ने सन्त को नमन किया और कहा भगवन् मेरी दृष्टि आपसे भिन्न हैं। चोरों की घात न लगे इसलिये गृह स्वामियों को जागरुक रखता हूँ। राहगीरों से कहता है और सन्तों पर तब भूँकता हूँ जब वे विचित्र वेश बनाकर निकलते हैं। इस वर्जना के साथ मेरा अनुरोध जुड़ा रहता है कि यदि वे साधारण नागरिक जैसे कपड़े पहनते, आचरण में साधुता का परिचय देते और कर्त्तव्य पारायण ही बने रहते तो क्या बुरा था?


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