देवलोक वासियों का सत्प्रयोजन के लिए धरती पर आगमन

December 1983

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जीव विकास के नवीनतम अनुसन्धान इस निष्कर्ष पर पहुँचते जा रहे हैं कि मानवी अस्तित्व धरातल पर पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थों का संयोग नहीं हो सकता। उससे सूक्ष्म जीवी और कृमि−कीटक भर उत्पन्न हो सकते हैं। वनस्पति उत्पादन से आगे बढ़कर धरती पर पाये जाने वाले जीवाणुओं की चरम परिणति छोटे स्तर के प्राणियों को ही उत्पन्न कर सकती है। उसमें ऐसा कुछ नहीं जो मनुष्य जैसी अद्भुत संरचना में समर्थ हो सके। इस वर्ग के शोधकर्ता यह दावा करते हैं कि मानवी सत्ता किसी अन्य लोक से यहाँ आई हैं। जिस लोक से आई है वहाँ उसका विकास और भी ऊँचे स्तर का हो चुका होगा। इस प्रकार देव लोक की मान्यता के साथ संगति बैठती है और इस मान्यता को बल मिलता है कि अन्य लोक वासी अपनी उत्सुकता को भी मनुष्यों की तरह ही रोक न पा रहे हैं और यहाँ की अधिक खोज-खबर लेकर तद्नुरूप अधिक सघन संपर्क बनाने की कोई योजना बना रहे हों। उड़न तश्तरियों का दृश्य दर्शन सम्भवतः इसी शृंखला की कोई कड़ी हो।

इस संदर्भ में कुछ दृश्य ऐसे भी देखे जाते रहे हैं जिनमें मात्र प्रकाश पुँज या वायुयान स्तर की कोई वस्तु आकाश में उड़ती, दिशा बदलती, डुबकी या छलाँग लगाती देखी गई। यह प्रकृति कौतुक रहा होता तो उसका प्रवाह एक दिशा में चलता रहा और उल्कापात जैसा दृष्टिगोचर होता, किन्तु बुद्धिमानों जैसी उलट-पुलट होते देखकर यह सोचा जाता है कि इसके पीछे किन्हीं बुद्धिमानों की इच्छा या योजना जुड़ी होनी चाहिए।

अब कुछ ऐसे भी उदाहरण सामने आये हैं जिसमें इन उड़न तश्तरियों के साथ वस्तुएँ निकलती पाई गई हैं और बुद्धिमानों द्वारा सम्भव हो सकने वाली हरकतें-हलचलें देखी गईं। इसमें इस विश्वास की पुष्टि होती हैं कि उड़न तश्तरियों के पीछे लोकान्तर वासियों के योजनाबद्ध प्रयासों का समावेश हो सकता है।

अक्टूबर 1973 में पैस्कागोला (मिसीसिपी) के सन्निकट रहने वाले मछुआरे ने तीन ऐसे विलक्षण व्यक्तियों को उड़न तश्तरियों से उतरते देखा जिनके हाथ केकड़े का सदृश दिखाई दे रहे थे। यूफो ऐक्सपीरियेंस -साइन्टिफिक इनक्वारी के लेखक डा. जे. ऐलन हाईनेक ने इस घटना का सविस्तार उल्लेख किया है।

22 अक्टूबर 1975 को एक इंजीनियर को कौविटन के समीप एक चक्राकार वस्तु घूमती हुई दिखाई पड़ी। यह दृश्य उन्होंने दूरबीन की सहायता से नगर निगम की इमारत के ऊपर चढ़कर देखा।

गौर्डन कूपर को अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में अग्रणी समझा जाता है जिन्होंने अपने मर्करी और जैमिनी यान द्वारा लम्बी से लम्बी यात्रायें पूरी की। यूफो के बारे में उनका कहना है कि ये अंतर्ग्रही वाहन हैं जिन्हें ऐन्टी ग्रेविरी प्रोपेल्शन के प्रयोग में लाया जाता है। इसका रहस्योद्घाटन उन्होंने 1950 में किया।

अपहरण की घटनायें भी उड़न तश्तरियों के संबंध में आये दिन घटित होती देखी जा सकती है। ऐरियल फैनोमिना रिसर्च आर्गनाइजेशन’ के संचालक श्रीमती लारेजन के अनुसार 13 अगस्त 1975 को स्टाफ सार्जेन्ट चार्ल्स मूडी के अपहरण की चर्चा को भुलाया नहीं जा सकता। जिसे किसी अलौकिक परछाई ने हवाई जहाज से अचानक गायब कर दिया। यह घटना अलामोगोर्डा (न्यू मैक्सीको) की हैं। मूडी 1 घण्टा 20 मिनट तक गायब रहा। तत्पश्चात् वापस लौटा तो उसने बताया कि जिस व्यक्ति ने मेरा अपहरण किया वह पाँच फीट लम्बा, बड़ा सिर, भूरे रंग की चमड़ी तथा गोल गहरी आँखों का था। उसके शरीर के सभी वस्त्र चमड़े के बने ही प्रतीत होते थे जिससे वह ऊपर से नीचे तक ढका हुआ था।

पुल्किनान (फिनलैण्ड) की दो लड़कियों ने दिसम्बर 1972 को गुम्बजाकार उड़न तश्तरियों को आकाश में चक्कर लगाते हुए देखा। जिसका प्रकाश लाल के रंग था। जैसे ही लड़कियों के ऊपर ये प्रकाश किरणें पड़ीं तो दोनों का शरीर सिर से पैरों तक लकवा जैसी स्थिति में हो गया। लड़कियों की इतनी दुर्दशा हो गयी कि उनमें सुनने तथा श्वास लेने की क्षमता तक नहीं रही। उनमें से एक लड़की ने साहस किया और कपकपाती हुई सहायतार्थ अपने एक सहयोगी के पास जा पहुँची। उसके सारे कपड़े धूल से लथपथ सने हुए थे। इसी घबराहट में उसका एक जूता भी गायब हो गया।

उड़न तश्तरियों में से उतरते हुये ऐसे विलक्षण जीवों को देखा गया है जिनकी बनावट भूलोक के व्यक्तियों से भिन्न होती है। ऐसी ही एक घटना अगस्त 1961 में रोजर्स केन्टिकों में घटी। क्विन्स नाम की एक महिला अपनी दो बच्चियों के साथ अपने कृषि फार्म के निरीक्षण हेतु गयी। वहीं पर उसने उड़नतश्तरी के दृश्य को देखा। एक विलक्षण परछाई ने श्रीमती विन्स का पीछा उसके बैडरुम तक किया। विन्स अपनी छोटी लड़की स्कैट के साथ सोई हुई थी। रात को डेढ़ बजे उसकी आँखें अचानक खुलीं तो उसने एक भयावह दृश्य को देखा। गोल-मटोल सिर का-बिना नाक का एक विलक्षण व्यक्ति उसके बिस्तर के पास खड़ा हुआ था। बिन्स उसे देखकर काँप उठी। प्रातःकाल उसने अपने पति के साथ रोजर्स को छोड़ने तथा मिडिल टाउन (ओहियो) में निवास स्थान बनाने का दृढ़ निश्चय किया।

सन् 1950 की बात है। डा. बोटा नामक एक वैज्ञानिक ने पैम्पास में किसी निर्माण योजना में लगे थे। यहीं पर बहीया ब्लैका एक ऐसा स्थान है जहाँ पर यह घटना घटी। वह अपनी कार को 75 मील प्रति घण्टा की रफ्तार से चला रहे थे कि एक चमकती हुयी उड़न तश्तरी सुनसान क्षेत्र में ऊपर चक्कर काटते हुए नीचे उतरी और हरी-भरी घास पर उसके लोग विश्राम जैसी मुद्रा में देखे गये। इन लोगों की ऊँचाई 4 फीट की थी उनके चेहरे बिल्कुल काले पाये गये। बोटा ने अपनी कार को तेजी की रफ्तार से दौड़ाया और एक होटल के पास आ पहुँचा। वहाँ पर उसके दो मित्र मिले जिनके हाथ में कैमरा व रिवाल्वर थी। वापस फिर घटना स्थल पर लौटें तो उन्हें एक राख का ढेर देखने को मिला। डा. बोटा ने उस राख की ढेरी में हाथ दिया तो बैंगनी रंग से रंग गया और लम्बे अर्से तक यह रंग उनके हाथ से नहीं छूटा। कुछ दिन बाद उन्होंने देखा कि तीन उड़न तश्तरियाँ वहाँ पर घूमती हुयी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही हैं। ये 100 मीटर व्यास वाली तश्तरियाँ 600 मीटर की ऊँचाई पर डा. बोटा को साफ दिखाई दी। उनका चित्र भी डा. बोटा द्वारा उतारा गया है। इस दृश्य को देखने के एक सप्ताह बाद ही डा. बोटा को बड़े जोर से बुखार ने घेर लिया जिसका उपचार किसी चिकित्सक से होना सम्भव नहीं हो पा रहा था। उसकी चमड़ी फफोलों से लद गयी। यद्यपि चिकित्सकों ने विकिरणों के कुप्रभाव का भी उपचार किया फिर बात नहीं सधी।

यूनियन टाउन, फैटेकाउन्टी (पेन्सिलवेनिया) में 6 फरवरी 1974 को एक ऐसी घटना घटित हुयी जिसमें लम्बे पैरों का एक व्यक्ति उड़न तश्तरी से उतरते हुये पृथ्वी पर देखा गया। म्यूचल यूफो नैट वर्क के डायरेक्टर जो पेन्सिलवेनिया प्रदेश में रहते हैं, उन्हीं के द्वारा इस घटना को उल्लेखित किया गया है। इसी प्रकार की 118 विलक्षण घटनाओं को गौर्डन महोदय प्रामाणिक सिद्ध कर चुके हैं। जिसमें उड़न तश्तरियों से नीचे आने वाले विचित्र काया के लोगों का वर्णन किया गया है।

उड़न तश्तरी अनुसन्धान केन्द्र की रिपोर्ट के अनुसार अब तक 1500 घटनाओं का पता लगाया जा चुका है जिसमें ऐसे व्यक्तियों का अस्तित्व पाया गया है जिनकी कायिक संरचना भूलोक के प्राणियों से बिल्कुल भिन्न स्तर की पायी गयी है।

यदि अन्य लोकों के बुद्धिमान प्राणी धरातल पर आते हैं तो हमें इससे भयभीत होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं। यह सोचना सही नहीं कि वे लूटपाट करने या अपहरण आधिपत्य करने जैसी योजना बनाकर यहाँ आ रहे हैं। ऐसा चिन्तन और आचरण तो अविकसित और

अनगढ़ लोगों का ही हो सकता है। उदारमना सदा व्यापकता, उदारता, आत्मीयता और सहायता की बात सोचते हैं जैसाकि देवताओं के सम्बन्ध में आमतौर से सोचा जाता है। समुन्नत लोगों की पहचान की यह है कि आवश्यकताएँ स्वल्प और उत्पादन अधिक रखें ताकि अपने लिए माँगने या चाहने की आवश्यकता ही न पड़े। दूसरों की सहायता कर सकने की इच्छा तथा सुविधा बनी रहे। पुरातन काल के सतयुगी देवमानव इस धरती पर भी ऐसी ही स्थिति में थे। उठने समस्त संसार को स्वयं जा-जाकर अनुदान बाँटे थे। समुन्नत लोगों के निवासियों की भी ऐसी ही स्थिति हो सकती है। ऐसी दशा में उनसे यह भय करना व्यर्थ है कि पृथ्वी निवासियों को कोई कष्ट देने के लिए इतनी लम्बी यात्राएँ करके यहाँ तक पहुँचने का भारी श्रम करेंगे। ऐसा तो अपनी ही क्षुद्रता है जो अणु आयुधों के भण्डार जमा करके महाप्रलय जैसी विनाशलीला का सरंजाम जुटाने में निरत हैं।

उड़न तश्तरियाँ धरती निवासियों को आहत करें और उनमें आने वाले हमें त्रास देंगे ऐसा सोचना व्यर्थ है यदि उनमें समुन्नत लोकों के कोई श्रेष्ठ लोग आ रहे होंगे तो उनसे यही आशा की जानी चाहिए जिससे इस धरती का कल्याण हो। अनादि काल में मनुष्य रूप में यदि वे जीवन तत्व यहाँ बखेर गये हैं तो यह आशा क्यों न की जाय कि वे इस बार देव प्राणियों के सृजन और देवलोक जैसी परिस्थितियाँ बनाने की कोई योजना साथ लेकर आ रहे होंगे।


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