जिन्दगी और मौत की आँख मिचौनी

December 1983

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जिन्दगी पर मौत का आक्रमण सदा से सफल होता रहा है। मृत्यु जब आती है तब जिन्दगी को सहज ही हड़प जाती है। कोई प्रयत्न उसे बचा नहीं पाता। पर कभी-कभी जिन्दगी से मौत भी हारती देखी गई हैं। ऐसी घटनाएँ भी इतिहास के पृष्ठों पर हैं, जिनमें मारने से सरंजाम सही रहने पर भी मृत्यु आई नहीं।

इंग्लैण्ड के ईक्सटर जेलखाने में जानली नामक एक कुख्यात अपराधी को अपनी मालकिन मिस इमाअन केसी की हत्या करने के अपराध में प्राणदण्ड का आदेश दिया गया। 23 फरवरी 1885 को ईवस्टर के शासनाधिकारी ने जानली को फाँसी के तख्ते पर लटकाने का इशारा किया। तख्ते और रस्सियों की जाँच पड़ताल अच्छी तरह से कर ली गई थी। हैंगमैन बेरी ने बोल्ट खींच दिया। रस्सा जानली की गर्दन से खुल गया और ली नीचे गिर गया। फाँसी का फंदा दुबारा उसकी गर्दन से कसा गया और तख्ते पर खड़ा किया गया। शेरिफ का इशारा मिलते ही बेरी ने बोल्ट खींच दिया, इस बार टैपडोर खुला ही नहीं। यह प्रक्रिया चार बार दोहराई गई परन्तु फन्दे ने जान ली की गर्दन को नहीं दबोचा।

जानली को वापस जेल की काल कोठरी में ले जाया गया। ट्रैप और ट्रैपडोर का सूक्ष्म निरीक्षण किया गया सभी ठीक ढंग से कार्य कर रहे थे। जान ली को फिर से तख्ते पर खड़ा किया गया। चर्चा तब तक खूब फैल चुकी थी पत्रकारों समेत हजारों की भरी भीड़ के सामने ली को फाँसी के फन्दे से लटका दिया गया। बोल्ट खींचा गया परन्तु इस बार भी ट्रैपडोर ने खिंचने से मनाही कर दी। दो बार के प्रयास करने पर भी जब जान ली नहीं मारा जा सका तो शेरिफ ने उसे उसकी काल कोठरी में वापस भेज दिया। जाँच दुबारा आरम्भ करने पर ली निर्दोष पाया गया व रिहा कर दिया गया।

7 फरवरी 1894 को विल परविस नाम के एक चौबीस वर्षीय युवक को कोलम्बिया, मिसीसिपी के एक किसान की हत्या करने के अपराध में प्राण दण्ड की सजा सुनाई गयी। निश्चित तिथि को नियत स्थान पर तीन हजार से अधिक लोगों की भीड़ परविस के प्राण दण्ड को देखने के लिए मैदान में डँटी थी। बिल परविस को फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया। जूरी ने जल्लाद को रस्सा खींचने का इशारा किया और रस्सा खींचा गया। संयोग से रस्सा परविस के गले से खिसक गया और परविस धड़ाम से नीचे आ गिरा। उसे कोई चोट नहीं लगी। परविस को दुबारा फाँसी के फन्दे मेंकसकर लटकाया गया। शेरिफ इर्विन मेगी ने ट्रैपडोर खींचने के लिए जल्लाद को आदेश दिया। इस बार भी परविस बच गया। उपस्थित जनसमुदाय उछलते-कूदते, गाते हुए सर्वोच्च शक्तिमान ईश्वर को साधुवाद देने लगे।

विलपरविस को पुनः वापस कोठरी में बन्द कर दिया गया। स्टेट सुप्रीम कोट ने दुबारा 12 दिसम्बर 1895 की तिथि को उसको फाँसी के फन्दे से लटकाने के लिए तिथि निश्चित की। फाँसी दिए जाने के पूर्व ही उसके साथियों ने परविस को जेल से बाहर निकाल कर छिपा दिया। इसके एक माह बाद मिसीसिपी का गवर्नर बदल दिया। नये गवर्नर ने परविस के प्राणदण्ड को आजीवन कारावास में बदल दिया। 12 मार्च 1896 में परविस ने गवर्नर के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया। और मात्र 2 वर्ष बाद 1898 में उसे कारावास में निरपराध मानते हुए मुक्त कर दिया गया।

जिन दिनों मामले की सुनवाई चल रही थी। 12 जूरियों का एक पैनल हत्या के मामले की जाँचकर रहा था। परविस को इस हत्या में दोषी ठहराया गया। परन्तु कटघरे में खड़ा परविस तभी चिल्ला उठा-“मैं निर्दोष हूँ और आपमें बारहों जूरियों में से अन्तिम की मृत्यु के तीन दिन बाद 13 अक्टूबर 1938 को अड़सठ वर्ष की अवस्था में विल परविस की मृत्यु हुई।

कहते हैं कि जीवन मरण भगवान के हाथ में होता है। वह किसी के बुलाए आता नहीं, और किसी के टाले टलता नहीं। इन घटनाओं से यही समर्थन मिलता है।


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