मानवी विलक्षणताओं के आधार की अभिनव खोज

December 1983

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मनुष्य कमाने खाने में ही आमतौर से अपनी सामर्थ्य लगाता रहता है। इतने में ही उसकी क्षमता खप जाती है। किन्तु यदि ध्यान दिया और प्रयास किया जा सके तो यह रहस्य भी प्रकट हुए बिना न रहेगा कि वह इससे अधिक भी बहुत कुछ है जैसा कि सामान्यतया प्रतीत होता है। उसमें अध्यात्म स्तर की कितनी ही विलक्षण क्षमताएँ विद्यमान हैं। उनके उभारने और उपयोग करने की विद्या जानी जा सकें तो उस आधार पर सामर्थ्य का एक स्त्रोत हाथ लग सकता है। इस संबंध में मूर्धन्यों ने उत्साहपूर्वक प्रयास भी आरम्भ कर दिया है-

अमेरिका के विस्कासिन विश्व विद्यालय में-वाशिंगटन विश्वविद्यालय में- ओकलैण्ड विश्वविद्यालय में अब विधिवत् तन्त्र और मन्त्र को पढ़ाया जा रहा है उन्हें दर्शन और विज्ञान का एक समन्वित विषय के रूप में मान्यता मिल गई है। रहस्यवाद को अब “दि रेटोरिक ऑफ डस्ट” (कुहरे का मूक भाषा) कहा जाने लगा है और उस पर पड़े हुए पर्दे को हटाकर वस्तुस्थिति समझने का प्रयत्न किया जा रहा है। शारीरिक और मानसिक चिकित्सा के लिए जिन उपाय उपचारों का पर्यवेक्षण हो रहा है उनमें एक विषय मानसोपचार के सहधर्मी झाड़-फूँक को भी सम्मिलित कर लिया गया है। ओकलैण्ड विश्वविद्यालय में इसके सिद्धान्त और प्रयोग परीक्षण, निर्धारित पाठ्यक्रम के अंग बना लिये हैं।

ड्यूक विश्वविद्यालय के डा. जोसेफ राइन के प्रयोगों के उपरान्त विभिन्न देशों में ऐसे शोध प्रयासों की होड़ लगी जो मानवी विलक्षणताओं के अस्तित्व एवं कारण की जाँच पड़ताल में निरत है। ब्रिस्टन विश्वविद्यालय के राबर्ट डान ने संकल्प शक्ति द्वारा उत्पन्न किये जा सकने वाले अनेक चमत्कारों की पुष्टि की है। नोबेल पुरस्कार विजेता डा. ब्रायन जोसेफ मैन क्वान्टम ने यान्त्रिकी के सिद्धान्तों की अधिक विस्तृत व्याख्या करते हुए बताया कि परामनोविज्ञान भी भौतिक शास्त्र से भिन्न नहीं है। चेतना क्षेत्र में पाई जाने वाली विलक्षणता को मान्यता देने की उन्होंने सिफारिश की है। वैज्ञानिक लियोनिद् वासिलयेव भी इन तथ्यों पर समय से प्रयोग परीक्षण कर रहे हैं और इस निष्कर्ष पहुंचेंगे कि मानवी कलेवर में सन्निहित विलक्षणताओं को समझने और उन्हें प्रयोग में लाने की महत्ती आवश्यकता है। इससे मनुष्य अधिक समर्थ बन सकेगा।

अतीन्द्रिय क्षमताओं एवं अलौकिक घटनाओं के प्रमाण अब इतनी अधिक संख्या में सामने आने लगे हैं कि इनका कारण ढूँढ़ने के लिए मनीष को विवश होना पड़ा है। कभी यह बातें अन्ध विश्वास या किंवदंती कहकर ‘हँसी’ में उड़ाई जा सकती थी। किन्तु अब और विश्वस्त परीक्षण की कसौटी पर खरे उतरने वाले प्रमाणों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसी दशा में प्रकृति के विज्ञात नियमों से आगे बढ़कर यह देखना पड़ रहा है कि इन रहस्यों के पीछे किन सिद्धान्तों एवं कारणों का समावेश है।

धर्म धारणा वाले लोगों तक अब अध्यात्म मान्यताओं का क्षेत्र सीमित नहीं रह गया है। वरन् आस्तिकों की तरह ही नास्तिकों ने भी उस खोज-बीन में समान रूप से उत्साह प्रकट करना एवं भाग लेना आरम्भ कर दिया है, सुशिक्षित वर्ग का रुझान इस ओर मुड़ा है। न्यूयार्क विश्व विद्यालय के मनोविज्ञानी महलान वेगनर ने नेतृत्व में चले एक सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिका के प्राध्यापकों में 9 प्रतिशत अतीन्द्रिय क्षमता को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार करते हैं और 45 प्रतिशत इसी प्रबल सम्भावना मानते हैं। इस दिशा में साम्यवादी देशों के विज्ञानवेत्ता भी कम रुचि नहीं ले रहे हैं। ईश्वर और देवताओं के अस्तित्व पर विश्वास न करते हैं जिसे अब तक की जानकारी से अधिक आगे का प्रतिपादन कहा जा सके। मनुष्य में पाई जाने वाली ऐसी विलक्षणताओं को उन्होंने स्वीकार किया है जिसकी शरीर विज्ञान या पदार्थ विज्ञान के साथ सीधी संगति नहीं बैठती। अस्तु यथार्थता की खोज में वे भी पूर्वाग्रहों को छोड़कर आगे बढ़े हैं।


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