डॉक्टर कोवूर और उनकी चुनौती

December 1983

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संसार भर के प्रमुख अखबारों के माध्यम से सन् 1963 में श्रीलंका के एक मनीषी डा. अब्राहम कोवूर ने एक चुनौती प्रकाशित कराई थी, जिसका साराँश इस प्रकार था-

“यदि कोई तथाकथित भगवान, सिद्ध, योगी, सन्त अपनी आध्यात्मिक सिद्धियों या ईश्वरीय वरदानों से सम्पन्न होने का दावा सिद्ध कर दिखायेगा तो उसे श्रीलंका की मुद्रा से एक लाख रुपये का पुरस्कार उपलब्ध होगा। किन्तु उसे उन परीक्षणों में होकर गुजरना पड़ेगा जिससे चालाकी के लिए गुंजाइश न रहे। यह चुनौती मेरी मृत्यु अथवा प्रथम विजेता के मिलने तक खुली रहेगी।”

अब्राहम टी. कोवूर, तिरुवल्ला, उद्घोषक पापन कडालेन कोलम्बो-6।

यह चुनौती अब तक किसी ने भी स्वीकार नहीं की है। जिनकी इस संदर्भ में ख्याति थी उन सभी को उनने व्यक्तिगत पत्र लिखे और कहा कि-“इस चुनौती को स्वीकार करने में उनका दुहरा लाभ है एक तो इससे भ्रान्तियों से उबर कर किसी सचाई तक पहुँचने का अवसर सर्वसाधारण को मिलेगा दूसरा यह कि यदि वे वस्तुतः चमत्कारी होंगे तो इस आधार पर उनकी प्रामाणिक ख्याति भी फैलेगी। इस आधार पर वे स्वयं तो लाभान्वित होंगे ही अन्य लोगों को भी उनके द्वारा लाभ मिलेगा।”

आश्चर्य है कि चुनौती एक ने भी स्वीकार न की जबकि चमत्कारों के दावेदार सैकड़ों हैं। डा. कोवूर कलकत्ता में कोट्टायम के कॉलेज में वनस्पति शास्त्र के व्याख्याता थे। बाद में वे श्रीलंका के जाफना कॉलेज में चले गये, इसके अतिरिक्त वे पढ़ाते भी रहे और अन्ततः हर्स्टन कॉलेज में विज्ञान विभाग के अध्यक्ष पर से रिटायर हुए। वे केरल के एक पादरी परिवार में जन्मे थे। बहुत समय तक धार्मिक वातावरण में रहने के उपरान्त भी अपने वैज्ञानिक मानसिक धरातल के कारण चमत्कारवाद के पीछे छिपा थोथापन रुचा नहीं और सत्य शोधक की तरह अपनी मान्यताएँ वे प्रकट करने लगे।

उनने इस संबंध में पता लगाने के लिए भुतहे मकानों में रहना आरम्भ किया। श्मशानों और कब्रगाहों के सुनसान में कितनी ही रातें बताईं। मन्त्र-तन्त्र करके हानि पहुँचाने वालों को खुली चुनौतियाँ दी। इसके बावजूद उन्हें ऐसा कुछ लगा नहीं जिसके आधार पर किसी असाधारण चमत्कार से उनका पल्ला पड़ा हो। भारत और कोलम्बो में उनकी इस निवासावधि में जाने-माने तान्त्रिकों व तथाकथित चमत्कार दिखाने वाले बाबाओं से भी मिले लेकिन उन्हें उपेक्षा ही मिली, अपने प्रश्न का उत्तर नहीं।

धार्मिक अन्धविश्वासों के विरुद्ध उनने अनेकों व्याख्यान दिये। कई देशों में घूमे और चमत्कारी लोगों से जा-जाकर मिले। ऐसे लोग जिन चालाकियों से भावुक लोगों को बहकाते हैं उनका भंडाफोड़ उनने अपनी पुस्तक “बिगान राडमैन-एनकाउन्टर्स विद स्प्रिचुअल फ्राड्स” में किया है। उनने पत्र-पत्रिकाओं में इस संदर्भ में अनेकों लेख भी लिखें।

उनने ऐसे लोगों की भी खरब ली जो अपने को अवतार बताते थे और कहते थे कि उन्होंने भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती गान्धी और राष्ट्रपति राधाकृष्णन को हवा में से शिवलिंग प्रकट करके प्रदान किया। इसकी सत्यता जानने के लिए डा. कोवूर ने दोनों को पत्र लिखें। श्रीमती गान्धी के निजी सचिव ने उत्तर देते हुए इस घटना को सर्वथा बेबुनियाद बताया।

डा. कोवूर ने एक लेख प्रकाशित कराया जिसमें “साईं बाबा को कपटी अवतार” बताया। इसके उत्तर में उनके एक भक्त डा. एस. भागवतम् ने उस आरोप का खण्डन किया और लिखा-“साईं बाबा के अनेकों चमत्कार बहुचर्चित हैं। इनमें से एक यह भी है कि जापान का एक घड़ी उत्पादक एक नई मशीन के बारे में कुछ पूछने आया था। मशीन उसके बक्से में बन्द थी। वह भीड़ में बैठा था। साईं बाबा ने उसे पास बुलाया और हवा में हाथ हिलाकर वह घड़ी उसकी हाथ में थमा दी। जो उसके बक्सों में बन्द थी। इस पर वह जापानी साईं बाबा के चरणों में गिर पड़ा उन्हें भगवान मानने लगा और भक्त बन गया।”

इस घटना के संबंध में भी डा. कोवूर ने सचाई जानने की कोशिश की जापानी दूतावास की मारफत उस “सीको” घड़ियों के कथित निर्माता “रोजी हलोरी” को पत्र लिखा तो कम्पनी के अध्यक्ष ने लिखा कि “न मेरा, न मेरे स्टाफ के किसी व्यक्ति का साईं बाबा से कोई परिचय है। निश्चय ही यह खबर सर्वथा मन गढ़न्त और धूर्तता पूर्ण है।”

कोवूर ने प्रख्यात ज्योतिषियों को भी यह चुनौती दी कि वे कुण्डलियाँ देखकर मात्र किसी के स्त्री या पुरुष होने की बात बता दें। पाँच प्रतिशत गलतियों को भी वे नजर अन्दाज करने को तैयार थे। पर उनमें से कोई तैयार न हुआ। उलटे डराने के लिए एक गंडा ताबीज भेजते रहे कि उनके पहुँचते ही उनका अनिष्ट होगा। पर वैसा भी कहीं कुछ हुआ नहीं।

अपने व्याख्यानों के दौरान उनने कई बार हवा में हाथ हिलाकर “भभूत” पैदा की उसे दर्शकों को बाँटा। इससे चमत्कृत हुए लोगों को अपना कोट उतार कर उसमें जहाँ-तहाँ छिपी हुई ‘भभूत’ को दिखाया और कहा यह हाथ की सफाई के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ऐसा करने वाले अन्य लोग यदि कपड़ों की तलाशी देने के बाद भी ऐसी ही भभूत पैदा कर सकें तो उनकी घोषणा के अनुसार एक लाख रुपया जीत सकते हैं।

डा. कोवूर मात्र खण्डन परक ही काम नहीं करते रहे। उनने मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान पर बहुत अधिक काम भी किया है। विज्ञान उनका विषय रहा है इसलिए चेतना क्षेत्र की गहरी जानकारियों को व सत्यता को लोगों तक पहुँचने के संबंध में उनकी ख्याति समस्त संसार में रही है। यही कारण है कि प्रथम तथा एक मात्र इसी शोध कार्यों के उपलक्ष में अमेरिका के मिनिसोटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फिलासाफी ने उन्हें “डाक्टरेट” की उपाधि प्रदान की।

डा. कोवूर का मत था-अध्यात्म मार्ग के अवलम्बन से मनुष्य की प्राण प्रतिभा का विकास होता है। इस मार्ग पर चलने वाले अपना व्यक्तित्व महामानव स्तर पर विकसित कर सकते हैं। ऐसे लोगों में सत्परामर्श देकर तद्नुकूल आचरण करने के लिए अन्य लोगों को सहमत करने की क्षमता पाई जाती है। अपने समय एवं संपर्क के वातावरण में उत्कृष्टता का अभिवर्धन भर उनसे बन पड़ता है। यह विशेषता विभूतियाँ या सिद्धियों कहीं जा सकती है। पर यह नहीं हो सकता है कि ऐसे लोग मदारी बाजीगर जैसे कौतुक दिखाते फिरे। कौतुक दिखाकर लोगों पर अपनी अलौकिकता प्रकट करना और उस आधार पर उनकी श्रद्धा का दोहर करना किसी भी प्रकार अध्यात्म विज्ञान से संगति नहीं खाता। सच्चे अध्यात्मवादी चमत्कार प्रदर्शित करके बुद्धि भ्रम उत्पन्न नहीं करते। जो ऐसा करते हैं वे मदारी भर हो सकते हैं। अध्यात्मवादी नहीं।”

डा. कोवूर की चुनौती स्वीकार करने वाला एक भी आगे नहीं आया, इससे सिद्ध होता है कि सिद्धि चमत्कारों के नाम पर प्रचलित कौतुक कौतूहलों में कोई दम नहीं। वे छलावा मात्र होने के कारण अनैतिक भी हैं। सन्त इस मार्ग को अपनायें, यह हो ही नहीं सकता।


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