मैं नित्य जिन्दा प्रेतों को दफनाता हूँ

December 1983

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खलील जिब्रान अपनी कथा प्रधान शिक्षाओं के लिये एक ख्याति प्राप्त विद्वान थे। जीवन दर्शन संबंधी सूत्र जो उन्होंने अपनी सारगर्भित प्रतीकात्मक कहानियों में दिये, समय-समय पर मानव का मार्गदर्शन करते रहे हैं। मनोविज्ञान की गहराई में जाकर कैसे एक साधारण से उदाहरण से नैतिक सीख दी जा सकती है; इसकी झाँकी उनकी इस कथा से मिलती है।

एक बार मैं सपना देख रहा था। स्वप्न में ही एक भयानक भूत आया और सामने खड़े होकर मुझे डराने लगा। पूछने लगा - तेरा नाम क्या है? मैंने डरते-डरते कहा-अबदुल्ला! उसने फिर तिरछी नजर से देखा और व्यंग्य की हँसी-हँसते हुए बोला-“इसका अर्थ तो ईश्वर का दास होता है। क्या तुम ईश्वर के दास हो, उसके भक्त हो? तुम्हारे कार्यों एवं चेहरे से तो ऐसा नहीं लगता।”

मैं अधिक सकपकाने लगा और उसकी भाव-भंगिमा से भयभीत हो भगाने की कोशिश करने लगा। भूत ने मुझे जाने नहीं दिया। कस कर पकड़ लिया और कहा तुम्हारी ही बिरादरी के लोग हैं जिनने मिलकर ईश्वर की नाकों दम कर रखी है। तुम्हीं लोगों की अक्ल ठिकाने लगाने के लिये ईश्वर ने मुझे नियुक्त किया है। आज तो मैं तुम्हीं से निपटूँगा।

भूत ने कहा-‘तुम लोग धर्म की बातें करके अपनी चमड़ी बचाते हो और उन कामों को करने में लगे रहते हो जिनकी खुदाने मना ही की है। धर्म के प्रवक्ताओं की इस क्रिया पद्धति से खुदा बहुत दुःखी एवं नाखुश हैं दुहरी गलती करने वालों पर खुदा दूने नाराज हैं।

मैं क्या कहता। जान बचाकर किसी तरह घर जाने की पड़ी थी। विदाई का नमस्कार करते हुए पूछा-मेरी स्थिति को देखते हुए कुछ सेवा हो तो बताएँ और मुझे जाने दें। आगे से ऐसी गलती स्वयं नहीं करूंगा औरों की कह नहीं सकता।

भूत की हँसी फूट पड़ी और मुस्कुराकर उसने मेरे हाथ में एक फावड़ा थमा दिया। कहा-फुरसत के समय तुम कब्रें खोदते रहना। जितनी अधिक खुद सकें उतनी खोदना।

पहेली को बूझने का मन हुआ। भूत मन की बात समझ गया और बिना पूछे ही बोल पड़ा-“दुनिया में चलते-फिरते प्रेत बहुत हैं। तुम उन्हीं को दफन करना। खुदा ने तुम्हारे लिए यही जिम्मेदारी सौंपी हैं।”

“जिन्दा प्रेत”? इतना कह भी नहीं पाया था कि भूत ने कहा-जो दूसरों का दर्द नहीं समझ सकते जिन्हें आपाधापी के अलावा और कुछ नहीं सूझता, जिनके पास दूसरों को धोखा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही एक मात्र धन्धा है, वे जिन्दे भूत नहीं तो और क्या है? ऐसे व्यक्ति धरती पर बोझ हैं, समाज के लिए सिरदर्द हैं, जीवित रहते हुए भी मृतक के समान हैं। उन्हें दफन नहीं करोगे तो इस दुनिया में जिन्दों को रहने के लिये जगह ही कहाँ बचेगी?

तब से हर रात वही सपना बारम्बार आता है। जिन्दा मुर्दों के लिए कब्र खोदता हूँ। रात भर न जाने कितनी खोद-खोदकर फेंक देता हूँ।

सपना अपने एक अन्तरंग मित्र को सुनाया तो वे हँस पड़े। बोले - भला उनमें गड़ेगा कौन? तुम्हारे सपने की कब्रें तो कल्पना लोक की हैं। नींद क्यों लिया और गम्भीर होकर कहा-“दूसरों की तो खुदा जाने। अपने को तो मैं जिन्दा मुर्दों-प्रेतों में गिनता हूँ। अपने संकीर्ण विचारों को नित्य चिन्तन कर गहरे गाड़ देता हूँ। सोचता हूँ अपने लिए तो समय रहते जगह बना ही लूँगा। एक बात और मन में आती है कि यही सपना औरों की भी समझ में आ जाय तो सम्भवतः खुदा को हैरान न होना पड़े, जिन्दा प्रेत कहीं नजर न आएँ, सारा संसार सही अर्थों में मनुष्यों से घिरा-सुख-समुन्नति की ओर बढ़ता दिखाई देने लगे।”


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