मानवी अन्तराल में सन्निहित दिव्य विभूतियां

December 1983

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पदार्थों की तरह मनुष्य में भी चुंबकत्व होता है वह वस्तुओं को अपनी ओर खींचता भी है और फेंकता भी। आग जहाँ भी जलती है गर्मी बिखेरती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य भी अपनी क्षमताओं और विशेषताओं से संपर्क क्षेत्र के पदार्थों और प्राणियों को प्रभावित करता है। सुसंस्कारी अपने स्नेह सम्बन्धियों और परिचितों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रगति प्रसन्नता का लाभ अनायास ही देता रहता है। उसके उपयोग में आने वाले वस्त्र, उपकरण भी स्वच्छ और सुव्यवस्थित रहते हैं। इसके विपरीत कुसंस्कारी व्यक्ति न केवल संबंधित व्यक्तियों को रुष्ट किये रहते हैं वरन् उन्हें तरह-तरह की हानि भी पहुँचाते रहते हैं। वस्तुएँ तो उनकी बर्बाद होतीं और कुरूप दीखती ही रहती है। सामान्य जीवन में यह सामान्य चुम्बकत्व का प्रभाव है जिसे हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से अपने-अपने क्षेत्र में प्रकट करता रहता है।

विशेष चुम्बकत्व वह है जिसे महामानव स्तर के व्यक्ति अपनी प्रतिभा के रूप में प्रकट करते रहते हैं। व्यक्तियों एवं समुदायों को प्रेरणा देते और सुधारते हैं। ऐसों की प्राण ऊर्जा वातावरण बदलने में समर्थ होती है। युग पुरुषों में पाई जाने वाली अनेकों विशेषताओं में से वह भी एक है जिसे स्व उपार्जित भी कहा जा सकता है और ईश्वर प्रदत्त भी।

यह चुम्बकत्व प्रयोग करने या न करने पर घटता बढ़ता भी रहता है। योगाभ्यास के क्षेत्र में इस स्तर की जागृति एवं उपलब्धि को अतीन्द्रिय क्षमता कहा जाता है। विज्ञजनों ने पाया है कि मनुष्य उतना ही सीमित नहीं है जितना कि दैनिक व्यवहार में दृष्टिगोचर होता है उसमें अगणित विशेषताएँ बीजरूप में विद्यमान हैं। प्रश्न एक ही है कि उन्हें जागृत समुन्नत एवं प्रयुक्त कैसे किया जाय।

कई बार यह विशेषताएँ पूर्व संचित भण्डार की तरह तनिक-सा कुरेदने पर उछालकर ऊपर आती और बिना प्रयास के ही प्रकट होती देखी गई है। कई बार उन्हें योगाभ्यास, तप साधन जैसे प्रयत्नों द्वारा समुन्नत बनाया जाता है। जो हो, यह तथ्य अब सर्वमान्य बनता जा रहा है कि मनुष्य क्षमताओं का ही नहीं दिव्य विभूतियों का भी भण्डार है। उसके गहन कलेवर में ऋद्धि-सिद्धियों के मणि मुक्तकों की खदानें भरी पड़ी हैं। आवश्यकता इतनी भर है कि उन्हें खोजा, समेटा और खरादा जाय। प्रयास यदि इस दिशा में चल पड़े तो सामान्य मनुष्य आन्तरिक क्षेत्र के विकास में अग्रगामी हो सकता है और इतना कुछ प्राप्त कर सकता जिसके सहारे सिद्ध पुरुष या ऋषि-कल्प बनने जैसी स्थिति हस्तगत हो सके। अतीन्द्रिय क्षमताओं का प्रसंग अब कौतुक कौतूहल का विषय नहीं रहा वरन् उसे विज्ञान की एक सुनिश्चित शाखा के रूप में मान्यता मिल गई हैं।

सर विलियम क्रूक्स नामक एक अंग्रेज ने मनः सम्प्रेषण नाम से जानी जाने वाली एक शक्ति को यथार्थता मानते हुए उस पर खोज की और उनके “रिसर्चेज इन दी फिनोमिना ऑफ स्प्रिचुएलिज्म” नामक एक पुस्तक में प्रकाशित भी किया।

पहिले प्रयोग में कोई वस्तु को अपने स्थान से केवल छूकर हटाने की बात कही गई। जबकि दूसरे प्रयोग में अनेक प्रकार की ध्वनि तरंगों का प्रदर्शन किया गया जो कि किसी मानव द्वारा उत्पन्न नहीं की गई थी। इसमें साधारण टिक-टिक की आवाज से लेकर विस्फोट की आवाज तक कई प्रकार की आवाज पैदा की गई। तीसरे प्रयोग द्वारा किसी भी वस्तु का भार कम और ज्यादा करके दिखाया गया।

चौथे प्रयोग में भारी वस्तुओं को इधर-उधर हटाना प्रमुख था। इसमें क्रूक्स की कुर्सी को जिस पर कि वह स्वयं बैठे थे और उनके पैर जमीन से ऊपर थे, उस कमरे में चारों और बिना किसी मदद के घुमाया गया और

उनके कई मित्रों के सामने एक छोटी टेबल को जिसके कि पास कोई नहीं था, कमरे में इस ओर से उस ओर तक घुमाया। पाँचवें प्रयोग में बिना किसी मानव की मदद के कमरे में फर्नीचर को भूमि से ऊपर हवा में इधर उधर घुमाकर (उड़ाकर) दिखाया गया। अन्तिम एवं सफलतम छठे प्रयोग में मनुष्य को ही हवा में उड़ाकर दिखाया गया।

क्रूक्स ने लिखा है कि एक बार मैंने स्वयं देखा कि एक कुर्सी को जिस पर एक महिला बैठी थी, कई इंच भूमि की सतह से मनःशक्ति की सामर्थ्य से ऊपर उठा दिया गया। लोगों की शंका को दूर करने की दृष्टि से दूसरी बार उस महिला को कुर्सी पर इस प्रकार बिठाया कि जिससे उसके पैर ऊपर रहें और कुर्सी के चारों पैर सबको स्पष्ट दिखाई दें। इस स्थिति में उस महिला समेत उस कुर्सी को लगभग 3 इंच भूमि से ऊपर उठाया और थोड़ी देर बाद धीरे से फिर भूमि पर नीचे उतार दिया।

क्रूक्स ने लिखा है कि अतीन्द्रिय मानसिक क्षमताओं के कारनामों की यह अन्तिम कड़ी नहीं है। किन्तु यह शृंखला और भी बढ़ी है जिन्हें मनः सम्प्रेषण के नाम से जानते हैं। इसमें अपने आप लिखने की एक क्रिया भी है जिसमें कोई भी एक माध्यम के रूप में केवल कलम हाथ में पकड़ता है और फिर किसी अदृश्य शक्ति द्वारा वह कलम अपने आप लिखती चली जाती है।

एक अत्यन्त ही रहस्यमय विस्मयकारी करतब स्थानान्तरण से संबंधित है। इसमें एक वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान को पहुँचाना होता है। इसमें उस वस्तु को केवल हवा में ले जाकर दूसरी जगह पहुँचाना ही नहीं था किन्तु एक बन्द कमरे में रखी किसी वस्तु को वहाँ से निकालकर दूसरे कमरे में पहुँचाना भी था। क्रूक्स ने इस प्रकार की एक घटना का वर्णन अपनी पुस्तक “मिसलेनियस ऑकरन्सेस ऑफ ए कॉम्पलेक्स करेक्टर” “जटिल महामानव के अनेकानेक वृत्तान्त” में दिया है। एक बार वह एक आध्यात्मिक सभा में एक माध्यम के साथ बैठे थे। उन्होंने एक घण्टी को उन लोगों के आस-पास बजते हुए सुना उन्हें ऐसा आभास हो रहा था कि जैसे कोई व्यक्ति उस घण्टी को उनके आस-पास घूमकर बजा रहा हो किन्तु कोई व्यक्ति दिखाई ही नहीं दे रहा था। फिर उन्होंने देखा कि वह घण्टी अचानक उनके टेबल पर गिरी। उन्होंने उस घण्टी को अच्छी तरह पहिचान लिया और उन्हें आश्चर्य हुआ कि इस घण्टी को तो वे स्वयं पास के कमरे में रखकर आये थे और वह कमरा अभी तक बन्द था और ताला लगा हुआ था और उस ताले की चाबी उनके जेब में मौजूद थी।

क्रूक्स ने अपने अनुसन्धान के लिये कुछ तथ्यों को एकत्र करना प्रारम्भ किया। इसके लिये उन्हें कई स्थानों पर जाना पड़ा। उन्हें पता लगा कि विश्व में अनेक स्थानों पर ऐसे प्रमाण मिले हैं कि आदिवासी जन और कुछ जादूगर लोग किसी वस्तु को बिना स्पर्श किये एक स्थान से दूसरे स्थान को हटा सकते हैं। यही नहीं वे दूर से ही किसी को आरोग्यता भी प्रदान कर सकते हैं तो किसी को मार भी सकते हैं। यह शक्ति शाप वरदान के समान ही मानी जा सकती है। प्राचीन साहित्य में भी कई मनः सम्प्रेषण की कहानियाँ आई हैं जिनमें जीव नामक एक देवता द्वारा दम्भी व्यक्तियों को वज्रपात द्वारा दण्ड देते दिखाया गया है और कई बुरे लोगों को नष्ट करने की व अच्छों को संरक्षण देने की बात कही गई है। बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेन्ट में किसी विशेष प्रकार की ध्वनि का वर्णन है जिसके पीछे कोई अदृश्य शक्ति थी। उसने खड़ी दीवार को समतल बना दिया था। न्यू टेस्टामेन्ट में कुछ चमत्कारों को प्रदर्शन किया गया है जिसमें एक स्थान पर यीशु को पानी को मदिरा में बदलते हुए दिखाया गया है और उन्हें जल से पूर्ण झील पर पैदल चलते दिखाया गया है।

अतीन्द्रिय क्षमताओं के विषय में ब्रिटेन के डेनियल डुँगलाज होम से बढ़कर कोई अन्य उदाहरण मिलना कठिन होगा। इनका जन्म सन् 1933 में स्काटलैण्ड में हुआ। इन्हें बचपन से ही अतीन्द्रिय ज्ञान का आभास होने लगा था। वह उनकी आयु के साथ बढ़ता गया और 1850 में तो वह अनेकानेक प्रकार के अतीन्द्रिय क्षमता के प्रयोग जन सामान्य के सामने प्रदर्शित करने लगे। हवा में उड़ना उसमें एक प्रधान कार्य था। वह अनेकों बार हवा में उड़े। कभी वह स्वयं की प्रेरणा से और कभी किसी सभा में अथवा किसी भी मौके पर हवा में उड़कर इधर-उधर मँडराने लगते थे। उनके हवा में उड़ने के बारे में कई लोगों ने लिखा है। उनमें लिंडने के मास्टर भी एक है।

एक घटना का वर्णन उन्होंने इस प्रकार किया है-“एक समय में, श्रीमान होम, लार्ड अडारे और उनके भतीजे के साथ बैठे थे कि होम अचानक समाधिस्थ हो गये और उसी स्थिति में वे उस कमरे की खिड़की से बाहर निकल गये और पास के कमरे की खिड़की में से दूसरे कमरे में प्रवेश कर गये। दोनों खिड़कियों का अन्तर सात फीट छः इंच था और इनके बीच में किसी प्रकार का कोई भी सहारा लेने का स्थान नहीं था। ये खिड़कियाँ भूमि की सतह 1 से 5 फीट ऊपर थी। हमने स्वयं देखा कि कैसे खिड़कियाँ खोली गई और होम ने उसमें पहिले पैर और फिर शरीर के साथ प्रवेश किया और फिर कमरे में आकर वे बैठ गये। उनसे पूछने पर कि यह उन्होंने कैसे किया तो वे फिर उसी हालत में उसी खिड़की से बाहर जाकर दूसरी खिड़की से दूसरे कमरे में प्रवेश कर गये। हाँ इस बार उनका सिर आगे था और पैर पीछे थे। इस घटना के बारे में जब लार्ड अडारे और उनके भतीजे कैप्टन बिने से पूछा गया तो उन्होंने इस घटना को उनके द्वारा प्रत्यक्ष रूप में देखी गई निरूपित किया। अमेरिका और ब्रिटेन के कई स्वतन्त्र विचार वाले व्यक्तियों ने भी होम के इस प्रकार के करतबों की सत्यता की पुष्टि की है। सर विलियम क्रूक्स ने तो इनके उड़ने की लगभग सौ घटनाओं का विवरण किया है।

विलियम स्टेनटोन मोजेस नामक एक सम्माननीय नागरिक और स्कूल मास्टर को अचानक एक बार अपनी उड़ने की अतीन्द्रिय क्षमता के बारे में आभास हुआ। किन्तु वयोवृद्ध सेवा निसृत व्यक्ति के रूप में जो उनका व्यक्तित्व लोगों के समक्ष आ चुका था। उसमें वे हवा में उड़ने का प्रदर्शन कर बाजीगर के रूप में जनता के सामने आना नहीं चाहते थे। अतः कुछ व्यक्तिगत मित्रों के समक्ष ही वे हवा में उड़ते थे। उनकी इस क्षमता के बारे में लोगों को अविश्वास होने का कोई कारण ही नहीं हो सकता था। क्योंकि वे स्वयं सदैव प्रचार से दूर ही रहे।

इन घटनाओं से संकेत मिलता है कि अतीन्द्रिय क्षमता के भण्डागार की सत्ता को समझा, स्वीकारा और उपयोगी बनाया जाय। यदि ये प्रयास चल पड़ें तो मनुष्य अपनी मेधा का उपयोग सामान्य काम चलाऊ बुद्धि तक ही नहीं-उससे भी कुछ इतर विशिष्ट प्राप्त करने के लिये करेगा। इन दिनों हम सब अतीन्द्रिय क्षमता को जादू-टोना न समझते रहकर उसे यथार्थता के रूप में अंगीकार करने की स्थिति में गुजर रहे हैं। यदि इस निश्चय पर असंदिग्ध रूप से पहुँचा जा सका तो कल परसों उन उपायों को भी खोजा-अपनाया जा सकेगा जिनके सहारे अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न मानव अत्यधिक महत्व की विभूति से लाभान्वित होने की स्थिति में होगा।


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