रुपया रुपये को खींचता है। समान स्तर वाले खिंचते चले आते हैं। यह चर्चा किसी सामान्य मनुष्य से सुनी थी। उसने सोचा क्यों न अपने रुपये को अन्यान्यों के रुपये खींच बुलाने के लिए प्रयोग में लाऊँ। वह सरकारी खजाने के समीप पहुँचा। रुपयों के ढेर लगे थे। जेब से रुपया निकालकर वह बार-बार खजाने के ढेर की ओर ले जाता। ताकि वे उसकी ओर खिंचते चले आवें। बहुत देर यह प्रयोग चलता रहा। बात बनी नहीं। दिखाने वाले का हाथ थकने लगा। और पकड़ ढीली हुई तो वह रुपया छूटकर खजाने के ढेर में जा गिरा।
व्यक्ति रुआँसू हो गया। खजाना खिंचकर तो नहीं आया। उल्टा अपना भी हाथ से चला गया। खजाँची यह कौतुक देख तो देर से रहा था पर कुछ समझ नहीं सका। अब उस व्यक्ति के आँसू देखकर सोचा कि बात कुछ गम्भीर है। पास बुलाया और कारण पूछा आदमी ने सारा वृत्तान्त सुना दिया और जो था वह भी चले जाने पर उसकी निरर्थकता पर दुःख प्रकट करने लगा। खजांची हँसा, रुपया गिरते देखा था सो उठाकर वापस कर दिया, और कहा-“उक्ति सही थी। समझते में इतना और जोड़ा जाना चाहिए कि अधिक कम को अपनी ओर खींचता है।