गंधों का एक झुण्ड (kahani)

December 1983

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उस जंगल में गंधों का एक झुण्ड रहता था। घास खाता और मौज करता।

लोमड़ी ने उन्हें डराकर भगा देने और उस क्षेत्र में मौज करने की बात सोची।

गधों के पास पहुँची और बोली। सुनते नहीं,मछलियों की सेना बन गई है और वे जल्द ही तुम लोगों पर हमला करके, निगल जाने को घात में बैठी है।

गधे बहुत घबराये उनने कहा-‘दीदी, तो अब हमारे प्राण कैसे बचेंगे।

लोमड़ी ने आश्वासन दिया, मैं तुम्हें, सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दूँगी। यहाँ से जल्दी ही निकल चलो।

गधे लोमड़ी के पीछे हो लिये। चलते-चलते वे धोबियों के गाँव में पहुँचे। उन्हें धैर्य बँधाया, रक्षा का आश्वासन दिया और गले में रस्से डालकर खूँटे से बाँध दिया।

लोमड़ी धोबियों के घर जाकर खूब हँसी और बोलो-डर से बुरा और कोई नहीं। इन गधों को उसने यह तक नहीं सोचने दिया कि मछलियों की सेना कहाँ बन सकती है और वह गधों को कैसे निगल सकती है?

ग्रह नक्षत्रों के हमले से डरने वाले अविवेकी भी आमतौर से धूर्त ज्योतिषियों द्वारा इसी प्रकार ठगे जाते हैं।


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