प्राण ऊर्जा का ज्वाला रूप में प्रकटीकरण

December 1983

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मानवी काया की संरचना पंचतत्वों से हुई है और उसकी चेतना में पाँच प्राणों का समावेश है। तत्वों से विनिर्मित रासायनिक पदार्थों द्वारा रक्त, माँस, अस्थि, चर्म आदि की संरचना हुई है। पंच प्राणों में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और उनकी तन्मात्राएँ काम करती हैं। इन्हीं का समुच्चय पंच देवों के नाम से जाना और उपासना उपक्रम द्वारा समर्थ समुन्नत किया जाता है।

प्राण को अग्नि भी कहा गया है। यज्ञाग्नि की तरह उसकी भी अपनी महत्ता है। यज्ञ में यों देखने में तो वैसी ही लपट आती है, जैसी कि चूल्हे या चिता में, तो भी उसमें विशेष अन्तर रहता है। पवित्र समिधा, शाकल्प, विधान एवं मन्त्रोच्चारण के सहारे उसे उस स्तर की बनाया जाता है जो चेतना के साथ घुल सके, उसके साथ तारतम्य बैठाने एवं प्रभावित करने में समर्थ हो सके। इस स्तर तक पहुँचने के उपरान्त ही साधारण आग को यज्ञाग्नि कहलाने का श्रेय मिलता है और उसका पूजन देवता के समतुल्य किया जाता है।

प्रेमाग्नि को जीवन तत्व-जीवनी शक्ति भी कहा जाता है। उसका परिचय नस-नाड़ियों में विद्युत की तरह काम करते देखा जाता है। ज्ञान तन्तु इसी के माध्यम से मस्तिष्क एवं शरीर के साथ संबंध स्थापित किये रहते हैं। त्वचा के इर्द-गिर्द उसे तेजोवलय के रूप में देखा जाता है। कायिक स्फूर्ति और मानसिक सूझ-बूझ एवं हिम्मत बनकर वही काम करती है। पराक्रम दोनों के संयोग को कहते हैं। शूरवीरों में मात्र कायिक बलिष्ठता ही नहीं, साहसिकता का भी बाहुल्य होता है। इस आधार पर किसी में प्राणाधिक्य होने का परिचय मिलता है। इसी को शरीरगत ओजस्-मनोगत तेजस् एवं भाव क्षेत्र का वर्चस् कहते हैं। तपश्चर्या में मनोनिग्रह और इन्द्रिय संयम का काय कष्ट तो होता है किन्तु साथ-साथ तपस् का उत्पादन भी होता है जिसे ब्रह्मतेज या ब्रह्मवर्चस् कहते हैं। यह सब प्राणाग्नि के ही विभिन्न स्वरूप या भेद उपभेद हैं।

यह ऊर्जा शरीर और मनःक्षेत्र में तो काम करती रहती है किन्तु चर्म चक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं होती। संवेदनशील यन्त्र उपकरणों के माध्यम से इसे जाँचा तो जा सकता है पर आँखों से बल्ब की तरह जलता हुआ नहीं देखा जा सकता। प्राण विद्युत की चर्चा शक्तिपात से लेकर मैस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म आदि के रूप में होती रहती है। इतने पर भी उसे चूल्हे में जलने वाली आग की तरह प्रकट होते नहीं देखा जाता।

कई बार इसके अपवाद भी होते हैं। यह प्राणाग्नि कभी-कभी अनायास भी प्रकट होती देखी गई है। उससे वह शरीर जलने लगता है जिसमें से वह प्रकट होती है। कई बार तो वह समीपवर्ती वस्तुओं को भी जला देती है। किन्तु कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि जिस शरीर में से आग प्रकट हुई मात्र वही जला और पहने हुए कपड़े तथा सटे हुए सामान तक को कोई क्षति न पहुँची। इस प्रकार के विवरणों में कुछ पंजीकृत उल्लेख इस प्रकार है-

इटली के प्रख्यात सन्त पादरी डॉन जिओ मारिया बर्थोली के शरीर से उपासना के समय एक दिन अचानक आग की लपटें निकलने लगी। इस अग्नि परीक्षा से सन्त डॉन चार दिनों तक जूझते रहे और अचेतावस्था में हो गए। इस घटना के समय इटली के मूर्धन्य शल्य चिकित्सक डा. बाटाग्लिया भी उस स्थान पर परीक्षण हेतु आये थे जहाँ सन्त परीक्षा से जूझ रहे थे। इस विवरण को फ्लोरेंस की एक पत्रिका ने अक्टूबर 1776 में प्रकाशित किया था।

सन्त डॉन देश का परिभ्रमण करते हुए अपने बहनोई के घर पहुँचे और उनसे अपने कमरे को दिखाने के लिए आग्रह किया। अपने गले में एक रूमाल डाले और एक शर्ट पहने सन्त अकेले ही कमरे में प्रार्थना करने लगे। कुछ क्षणों बाद उस कमरे से चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी। घर के सभी लोग दौड़कर सन्त के कमरे में पहुँचे। सन्त डॉन के शरीर से हलकी लपटें निकल रही थी। धीरे-धीरे अग्नि शान्त हो गई। चिकित्सा उपचार के लिए डा. बाटाग्लिया को बुलाया गया। उन्होंने देखा कि सन्त के दाहिने हाथ की त्वचा हड्डियों से अलग होकर लटक गई थी। दाहिना हाथ बुरी तरह झुलस गया था। कन्धे से लेकर जंघे तक के हिस्से की त्वचा हड्डियों से अलग हो गई थी। विशेष चिकित्सा उपचार के बाद भी पादरी को बचाया नहीं जा सका। चार दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई पर अन्त तक उन्हें कष्ट नहीं हुआ।

सेसना, इटली की काउन्टेस डि बैन्डी नामक 62 वर्षीय महिला 4 अप्रैल 1731 को अपने कमरे में मृतक पाई गई। शाम को वह अपनी नौकरानी से देर रात्रि तक वार्तालाप करती रही और प्रार्थना करके सो गई। सुबह समय पर मालकिन को जगे हुए न पाकर नौकरानी ने खिड़की से झाँककर देखा तो देखकर हैरान रह गई। कमरे में बिस्तर से चार फुट की दूरी पर घुटने के नीचे पैर का हिस्सा, झुलसी हुई उंगलियों के टुकड़े और सिर का आधा भाग एवं इसके अतिरिक्त राख का ढेर देखकर नौकरानी हतप्रभ रह गई।

एकत्रित लोगों ने दरवाजे को तोड़ा और कमरे के अन्दर प्रविष्ट हुए। कमरे से एक विशेष प्रकार की गन्ध निकल रही थी। राख को हाथ से छूने पर चिकनी, बदबूदार एवं नम प्रतीत हुई। कमरे के सभी बर्तनों, कपड़ों, फर्नीचर तथा दीवार पर इस राख की हल्की-सी परत देखने को मिली।

निरीक्षण करने पर पाया गया कि काउन्टेस दि वैन्डी बिस्तर पर से उठकर जैसे ही कुछ दूर चली होंगी वैसे ही उनके शरीर की प्राणाग्नि ने दावानल का रूप धारण कर लिया होगा और उसे भस्मीभूत बना दिया। सभी कमरों में विचित्र बदबू फैल रही थी। कमरे में रखे एक बर्तन में रोटियों के कुछ टुकड़े पड़े थे जिन्हें कुत्तों को खाने को दिया गया परन्तु किसी कुत्ते ने मुँह तक न लगाया। उसे गड्ढे में बन्द कर दफना दिया गया।

सन् 1673 में पेरिस में स्वतः जल जाने वाली एक गरीब महिला का वर्णन करते हुए थामस बार्थोलिन ने लिखा था कि यह महिला “स्ट्राँग स्प्रिट” की अतिशय आदी थी। अपनी इस आदत के कारण यह महिला ने तीन वर्षों तक बिना किसी भोजन के ही दिन गुजारे। एक शाम को वह महिला पुलाव से बनी तृण शय्या पर सो रही थी। रात्रि में अचानक उसके शरीर से आग की लपटें निकलने लगी और कुछ ही क्षणों में वह बिस्तर सहित जलकर राख हो गयी सुबह देखने पर लोगों को उसका सिर तथा उँगलियों के कुछ हिस्सों के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला।

पेरे ऐमे लेमर ने इस घटना का पुनर्मूल्याँकन किया और उपरोक्त तथ्य को सही पाया जिसे बाद में उन्होंने एक लेख विशेष में प्रकाशित भी किया।

डा. दि ब्रस ने ‘एडिन बर्ग मेडिकल एण्ड सजिकल जनरल के मार्च में एक रहस्यमय अग्निकाण्ड का वर्णन किया था। एक व्यक्ति के शरीर से नीली लपटें निकल रहीं थी और वह छटपटा रहा था। शरीर पर के कपड़े जल रहे थे समीप खड़े छोटे भाई ने सहायता करनी चाही परन्तु उसके भी हाथ झुलस गये। यह आग कई घण्टों तक लगातार निकलती रही और हाथों तक फैल गई। जब उस व्यक्ति को घण्टों पानी में डुबाकर रखा गया तब कहीं जाकर अग्नि शान्त हुई। घाव शीघ्र भर गए। फिर कभी इस घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई।

सुप्रसिद्ध लेखक चार्ल्स फोर्ट ने अपनी पुस्तक “दी कम्प्लीट बुक ऑफ चार्ल्स में एक ऐसी महिला का वर्णन उद्धत किया है जो अपने ही शरीर स्थित अग्नि से कई बार ग्रसित हो चुकी थी। लन्दन निवासी जान राइट की माँ को 5 जनवरी 1820 को अस्पताल में भरती होना पड़ा। उनका शरीर कई स्थानों पर शरीर पर से निकली ज्वाला से झुलस गया था। 7 जुलाई को श्री राइट अपने रसोई घर से नौकरानी लड़की से बात कर रहे थे तभी

एकाएक राइट की माँ के कपड़े जलने लगे। लड़की उठकर बाहर चली गई और अग्निकाण्ड समाप्त हो गया। 12 जनवरी को फिर से उपरोक्त घटना घटित हुई उस समय भी वही लड़की उपस्थित थी।

राइट ने अपनी माँ की देखभाल के लिए अपनी बहन को बुला लिया। एक दिन उनकी बहन रसोईघर में उसी नौकरानी लड़की के समीप बैठी थी कि एकाएक उसके कपड़ों में भी आग लग गई और भयंकर रूप से जल गई। यह घटनाक्रम कई बार घटित हुआ। अतः नौकरानी लड़की को अपराधी ठहराकर उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। जाँच करने पर मजिस्ट्रेट ने पाया कि उस लड़की का प्रत्यक्षतः कोई अपराध नहीं था। यह एक ऐसी सुपर नेचुरल प्रक्रिया थी जिसका उत्तर किसी के पास नहीं था, कानून के पास भी नहीं। ऐसे में किस दण्ड विधान के अंतर्गत उसे दण्ड दिया जाता? अन्त तक मामला अनुत्तरित ही रहा।

27 अगस्त 1938 की शाम के समय इंग्लैण्ड के चेल्सफोर्ड शायर हाल में 22 वर्षीय नर्तकी फिलिस न्यूकोम्ब का नृत्य चल रहा था। आधी रात को नृत्य समाप्त हुआ और फिलिस नृत्यशाला से बाहर निकलने लगी। हाल के मध्य में वह पहुँची ही थी कि अचानक उसकी ड्रेस में से आग की लपटें निकलने लगीं। कुछ ही क्षणों में नर्तकी का सम्पूर्ण शरीर नीली ज्वाला में खो गया। हेनरी मैक आसलैण्ड नामक महिला ने आग बुझाने का प्रयत्न किया परन्तु तब तक देरी हो चुकी थी। एम्बुलेंस आने तक उसका शरीर कोयले में बदल चुका था। इस रहस्यमयी घटना का जवाब किसी के पास नहीं था।

ये सभी घटनाएँ जनश्रुतियाँ नहीं हैं। इनका उल्लेख सरकारी कागजातों और विज्ञान क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा किये गये पर्यवेक्षणों में है। ऐसी घटनाओं में यह आशंका रहती है कि किन्हीं अनाड़ियों द्वारा किये गये कुकृत्यों पर पर्दा डालने के लिए उन्हें अविज्ञात कारणों से घटित हुई घटना कहा जाय। किन्तु उपरोक्त परीक्षित अभिलेखों में ऐसी बात प्रतीत नहीं हुई। क्योंकि जो लोग जले उनमें से कोई ऐसा नहीं था जिनकी किसी से शत्रुता रही हो अथवा धन के लिए इस प्रकार का कुकृत्य किया गया हो।

ऐसी स्थिति में इस अग्नि प्राकट्य को मानवी प्राण ऊर्जा का आकस्मिक उभार ही कहा जा सकता है साथ ही यह उत्साह भी उभरता है कि इस सामर्थ्य का सामान्य जीवन यापन में प्रयुक्त होने भर से सन्तोष न कर किन्हीं बड़े प्रयोजनों में नियोजित करने का मार्ग खोजा जाय।


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