अतीन्द्रिय क्षमताओं का सुविस्तृत भण्डार

December 1983

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भगवान ने न केवल मनुष्य को वरन् अन्यान्य प्राणियों को असीम शक्ति भण्डार से भरा है पर वे अनुदान बीज रूप में मनःसंस्थान में जहाँ-तहाँ भरे रहते हैं। इन क्षमताओं का इतना ही पक्ष जागृत और अभ्यस्त रहता है जितने से जीवनचर्या की गाड़ी लुढ़कती रहती है। शेष ‘भाग’ प्रसुप्ति में पड़ा रहता है। इसलिए समझा जाता है कि जितनी समर्थता उपलब्ध है, उतनी ही कार्य क्षमता है। जबकि बात ऐसी है नहीं। अविज्ञात अतिरिक्त क्षमताओं को खोजा और जगाया जा सके तो किसी को भी सामान्य की परिधि पार करके विशिष्ट बनने का अवसर मिल सकता है।

योगियों, सिद्धपुरुषों में अनेकानेक ऋद्धि-सिद्धियों की बात देखी और सुनी जाती है। कितनों में ही यह बिना साधना या अभ्यास प्रयास के भी अनायास फूट पड़ती देखी गई है। इसलिए अतीन्द्रिय क्षमता का एक स्वतन्त्र विज्ञान ही बन गया है और उसे अनुसंधान की पर मनोविज्ञान शाखा के अंतर्गत मान्यता मिल गई है। इस दिशा में जो हुई हैं खोजें उनसे पता चला है कि मानवी क्षमता की मूलभूत सीमा उससे कहीं अधिक है जितना कि वह दैनिक जीवन में प्रयुक्त करता है। अब प्रश्न इस बात का शेष रह जाता है कि उस सामर्थ्य को विकसित करने का उपाय क्या हो सकता है? अध्यात्मवादी इस संदर्भ में योग और तप का प्रयोग परीक्षण बहुत पहले से ही करते रहे हैं। पर यह भौतिक विज्ञानियों का हठ है कि अतीन्द्रिय क्षमता को भी एक शरीरगत विशेषता माना जाय और उसे जगाने के लिए कोई भौतिक उपाय उपचार ही खोज निकाला जाय।

अतीन्द्रिय क्षमता का क्षेत्र अब बहुत व्यापक समझा जाने लगा है और इस निष्कर्ष तक पहुँच गया है कि चेतना क्षेत्र की यह विशिष्ट क्षमता न केवल मनुष्यों में वरन् अन्यान्य प्राणियों में भी न्यूनाधिक मात्रा में पाई जाती है। उनमें से कितने ही विपत्ति से बचने और सुविधा साधन खोजने में इसी आधार पर आश्चर्यजनक रूप से सफल होते हैं। इतना ही नहीं वे उन्हें भी इस अतिरिक्त क्षमता से लाभान्वित करते हैं जो इनके संपर्क में आते अथवा गतिविधियों पर ध्यान देते हैं। यहाँ प्राणि वर्ग में सूक्ष्म जीवियों और वनस्पति समुदाय को भी सम्मिलित किया जा सकता है क्योंकि बहुत बार उन्हें भी योगियों सिद्ध पुरुषों जैसी सिद्धियों का परिचय देते हुए पाया गया है।

“फ्राइबर्ग इन्स्टीट्यूट ऑफ पैरासाइकोलॉजी (प. जर्मनी) के प्रोफेसर डॉ. हान्स बेण्डर ने पशुओं में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताओं की 500 घटनाओं का संकलन किया है। इन घटनाओं की फ्राई वर्ग पार्क की एक ऐसी चिड़िया का उल्लेख है जो मित्र राष्ट्रों द्वारा की जाने वाली बमबारी की सूचना ठीक 15 मिनट चिल्ला-चिल्ला कर देने लगती थी। इस संकेत को सुनते ही स्थानीय नगर निवासी सुरक्षित स्थानों (एयर रेड शेल्टर्स) में पहुँच जाते थे। इस प्रकार उस पक्षी ने अनेक अवसरों पर हजारों लोगों की जान बचाने के लिए भावी आपत्ति की पूर्व सूचना दी। एक दिन सूचना देने का अपना कर्त्तव्य पूरा करके जब वह अपने छिपने के लिए निरापद स्थान की तलाश कर रहा था तभी बमबारी होने लगी और सबकी जान बचाने वाला वह पक्षी अपनी जान गँवा बैठा। स्थानीय निवासियों को जब उसकी मृत्यु का पता चला तो उसी पार्क में उस पक्षी का एक भव्य स्मारक बनाकर, उसे श्रेष्ठतम नागरिक का अलंकरण प्रदान कर दुःखी संतप्तों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

प्रसिद्ध मनोविश्लेषक श्रीमती रेनी हाइन्स ने अपनी पुस्तक ‘दि हिडेन स्प्रिंग्स’ में पशुओं में पाई जाने वाली ऐसी अतीन्द्रिय क्षमताओं के अनेक उदाहरणों का संकलन किया है। उसमें एक ऐसे कुत्ते का दृष्टान्त दिया गया है जिसके मालिक का घर आने का समय अनिश्चित रहता था। उसने एक चीनी रसोइया नौकर रखा हुआ था ताकि हारे-थके घर लौटने पर गर्म भोजन तत्काल मिल सके। वह कुत्ता मालिक के लौटने से तीन-चार घण्टे पूर्व ही रसोइये को मालिक के आने की सूचना उसके कपड़े खींचकर अथवा विशेष आवाज में बोलकर दे देता था। रसोइया इस संकेत को समझकर तुरन्त भोजन बनाने की तैयारी में जुट जाता और मालिक को पधारने पर गर्मागर्म भोजन तैयार मिलता। कुत्ते द्वारा बिना टेलीफोन के दी जाने वाली यह सूचना कभी भी गलत नहीं निकली।

दि साइकिक पावर ऑफ एनीमल्स नामक पुस्तक में मानवेत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय शक्तियों संबंधी कई घटनाओं को संकलित किया गया है। उसमें लेखक ने अपने ही एक अनुभव का उल्लेख इस प्रकार किया है।

“एक दिन मैं अपने घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहा था। अचानक घोड़ा एक मिनट के लिए अड़ गया। काफी मारपीट करने और जोर लगाने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ। उसी समय थोड़ी दूर पर बिजली गिरी। यह देखकर मेरे मन में अपने घोड़े के प्रति असीम प्यार उमड़ पड़ा क्योंकि यदि वह अपने स्थान से चल देता तो हम दोनों की मृत्यु हो जाती।

एक और विचित्र घटना अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से जुड़ी है। उनका प्यारा कुत्ता ‘पैंट’ जो व्हाइट हाउस में बँधा था, लिंकन की हत्या से कुछ समय पूर्व विचित्र प्रकार से भौंकने एवं अपने स्थान पर ही बेचैनी से चहलकदमी करने लगा था।

सोसायटी ऑफ पैरासाइकोलॉजी रिसर्च के डा. जे.बी. राइन के कबूतरों के पैट में नम्बर डालकर कई प्रयोग किए। उसमें 167 नम्बर के कबूतर की एक घटना इस प्रकार है।

इस विशिष्ट कबूतर को पालने के लिए एक लड़के की नियुक्ति की गई थी। उसका नाम हग ब्रेडी परकिन्स था। सर्दी का मौसम था उस लड़के को एक रात “फ्रास्ट बाइट” के कारण तकलीफ हुई। शल्य चिकित्सा के लिए उस लड़के को 120 मील दूर अस्पताल में ले जाया गया। दिन में ऑपरेशन सम्पन्न हो गया। रात को वह लड़का हॉस्पिटल के एक कमरे में सोया हुआ था। बाहर बर्फ पड़ रही थी। बर्फीली हवा भीतर न आये इसलिए खिड़की दरवाजे बन्द रखे गये थे। तभी खिड़की के शीशे पर कुछ फड़फड़ाहट की आवाज सुनायी पड़ी। नर्स ने ज्यों ही खिड़की खोली कबूतर भीतर घुस आया। इसकी आहट पाकर लड़के की नींद खुल गयी। लड़के ने नर्स से पूछा कि “इसके पैर में बँधे टैग पर कहीं 167 नम्बर तो नहीं लिखा है।” नर्स के उसके कथन को सही पाया।

ड्यूक युनिवर्सिटी के परामनोविज्ञान विभाग के डा. कार्ल्स ओसिस ने अँग्रेजी अक्षर ‘टी’ के आकार का एक चेसिस बनवाया और उसमें बिल्ली के बच्चे छोड़े और इस प्रयोग में इस बात की जाँच की गई कि कौन-सा बच्चा प्रयोगकर्ता की इच्छानुसार दाँये-बांये मुड़ता है इस अनुसंधान में पाया गया कि जो बच्चा प्रयोगकर्ता से प्यार करता था। उसी अनुपात में उसके विचारों का प्रभाव उस पर पड़ता था। इन विभिन्न परीक्षणों से निष्कर्ष निकालते हुए बताया गया है कि पालतू पशु एक उसके मालिक के बीच टेलीपैथीक सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। इसका अनुपात उनकी आन्तरिक घनिष्ठता पर निर्भर करता है।

“कैन ह्यूमन्स कम्यूनिकेट विद प्लैण्ट्स” के लेखक ने एक मरुस्थल के उपजाऊ भूमि में बदल जाने की घटना का उल्लेख इस प्रकार किया है-1962 में उत्तर स्काटलैंड में एक अमरीकी दम्पत्ति आकर बसे। पति-पीटर केडी, पत्नी-इलिन तथा उसकी आया डोरोथी मेक्लीन-यही तीन लोग तथा तीन बच्चे कुल छह लोग उस छोटे से परिवार में रहते थे। वहाँ और कोई काम न देख उन लोगों ने बागवानी करने का निश्चय किया। वह स्थान उस क्षेत्र की सबसे अनुपजाऊ भूमि मानी जाती थी। बर्फ और रेत की अधिकता के कारण वहाँ खेती करने कोई नहीं आता था। लेकिन उन लोगों का निश्चय दृढ़ था। इस कार्य में एलिन तथा मैक्लिन ने अपनी विशेष सूझ-बूझ का परिचय दिया। कुछ ही वर्षों में वे लोग उसी जमीन से इतनी अधिक पैदावार लेने लगे। जिससे वहाँ के स्थानीय लोगों को ही नहीं अपितु पूरा

इंग्लैण्ड वासियों को आश्चर्यचकित कर दिया। और वह उपेक्षित कृषि व वनस्पति शास्त्रियों का तीर्थ बन गया। उनने उस ऊसर समझी जाने वाली जमीन से 28 किलोग्राम से भी अधिक वजन के पत्ता गोभी उपजाकर पूरे देश में तहलका मचा दिया। जब पत्रकार उनसे इसका रहस्य पूछने आये तो उनने इतना ही कहा कि “अन्ततः प्यार ही वह तत्व है जो अन्य सभी नियमों की सम्पूर्ति कर देता है।”

केडी का कहना है कि हमारे परिवार के प्रेम के प्रत्युत्तर में वन देवता हमें विपुल वनस्पति और धान्य ही नहीं अपितु कृषि कार्य में उन्नति के लिए अधिकाधिक सूझबूझ भी प्रदान करते हैं।

बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में प्रसिद्ध भारतीय वनस्पति विद् सर जगदीशचन्द्र बसु ने इन्हीं तथ्यों पर अपना अनुसंधान कार्य किया था। विषय यह था कि जिस प्रकार मनुष्यों में सम्वेदना के वाहक स्नायु तन्तु बने हुए हैं उसी प्रकार वनस्पति जगत में सम्वेदनवाही तन्त्र (सेन्सरी सिस्टम) विद्यमान हैं। इसी तथ्य की पुष्टि प्रसिद्ध अमरीकी हॉर्टीकल्चरिस्ट लूथर बरबैंक ने अपने प्रयोगों में की। उनके कथनानुसार प्रेमपूर्ण इच्छाशक्ति के माध्यम से वनस्पतियों में अनहोनी परिवर्तन भी लाया जा सकता है। जैसे कि बिना काँटे का गुलाब उत्पन्न करना।

1950 में माननीय फ्रेंकलिन लोहर ने कैलीफोर्निया में वनस्पतियों पर किए गए अपने प्रयोगों के आधार पर सिद्ध किया कि प्रार्थना के बल पर फसल की उपज 20 प्रतिशत तक अधिक बढ़ाई जा सकती है।

इस विषय में मैग्रिल युनिवर्सिटी मौण्ट्रियल (कनाडा) के डा. बर्नार्ड ग्रेड के व्यावसायिक साइकिक हीलर ऑस्कर एस्टबनी के वनस्पतियों पर हाथ फैराने से होने वाले परिवर्तनों की जाँच की। इस प्रयोग में अंकुरित हो रहे जौ के पौधों को दो विभाग में बाँटा गया। एक विभाग को वह पानी दिया गया जिस फ्लास्क के जल पर ऑस्कर ने हाथ रखा था। दूसरे को साधारण जल दिया गया। बाद में विभिन्न यन्त्रों से उनके विकास दर को मापा गया तो डा. बर्नार्ड ग्रेड ने देखा कि जिस पौधे को ऑस्कर के हाथ से संस्कारित पानी दिया गया था विकास गति अधिक तीव्र थी। इसी कारण दार्शनिक मनोवैज्ञानिक सर विलियम जेम्स ने लिखा है कि समूची जीव सृष्टि एक अदृश्य सत्ता से संचालित है तथा वहीं इन सभी घटकों को एक माला के धागे की तरह एक सूत्र में पिरोए रहती है।

जिस प्रकार प्रकृति के भण्डार से प्रयत्नपूर्वक मनुष्य ने अनेकानेक क्षमताओं को खोजा और लाभ उठाया है उसी प्रकार अबकी बारी यह है कि चेतना क्षेत्र की उन विलक्षणताओं की उपयोगिता भी समझे जो उसके अन्तराल में प्रचुर परिमाण में भरी पड़ी है। अतीन्द्रिय क्षमताओं का धनी मनुष्य अब की अपेक्षा कहीं अधिक सुखी समुन्नत हो सकता है। इस प्रयास में प्राणि समुदाय एवं वनस्पति वर्ग की विशिष्ट क्षमताएँ भी वैसा ही अतिरिक्त सहयोग कर सकती है जैसे कि अनेक प्रकार से मानवी सहयोग से निरत रह कर रही है।


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