पुण्य की महत्ता

May 1970

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एक धनवान  था। वह नित्य ही एक घी का  दीप जलाकर मन्दिर में रख आता था!

एक निर्धन व्यक्ति था। वह सरसों के तेल का एक दीपक जलाकर नित्य अपनी गली में रख देता था। वह अँधेरी गली थी।

दोनों मरकर जब यमलोक पहुँचे तो धनकुबेर को निम्न स्थिति की सुविधायें दी गई और निर्धन व्यक्ति को उच्च श्रेणी की।

यह व्यवस्था देखी-तो धनकुबेर ने धर्मराज से पूछा “यह भेद क्यों जबकि मैं भगवान के मन्दिर में दीपक जलाता था। और वह भी घी का।”

धर्मराज मुस्कराये। बोले “पुण्य की महत्ता मूल्य के आधार पर नहीं कार्य की उपयोगिता के आधार पर होती है। मन्दिर तो पहले से ही प्रकाशमान था। उस व्यक्ति ने ऐसे स्थान पर प्रकाश फैलाया जिससे हजारों व्यक्तियों ने लाभ उठाया। उसके दीपक की उपयोगिता अधिक थी।”


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