गुण सुट्ठिस्य वयणं धयपरिसित्तुव्व पावओ भाई। गुण हीणस्य न सोहइ नेहविहूणो जह पईवो॥
-बृहत्कल्प भाष्य 245
गुणवान् व्यक्ति के वचनों का अनुसरण करो क्योंकि गुणवान् व्यक्ति का वचन अग्नि की तरह तेजस्वी होता है जबकि गुणहीन व्यक्ति का वचन तेल शून्य दीपक की तरह तेज और प्रकाश रहित होता है।