बिना पतवार-सिद्धि के द्वार [3]

May 1970

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हालैंड पर जर्मनी का अधिकार था तो भी हालैंड-वासियों का गुप्त संगठन जर्मनों को उखाड़ फेंकने के लिये प्रयत्नशील था। पीटर हरकौस की प्रसिद्धि इस संगठन के लोगों तक भी पहुँची पर चूँकि उन लोगों को सिद्धि के इस दर्शन का बिल्कुल ज्ञान नहीं था, इसलिये कोई सही निष्कर्ष निकाल पाने की उनमें क्षमता भी न थी। उन्होंने हरकौस को जर्मनों का गुप्तचर समझा और उसे मार डालने का अवसर ढूंढ़ने लगे।

हमारे देश के ऋषियों और योगियों ने अतीन्द्रिय तत्वों की प्राप्ति कर ली, तब उनके सामने भी यह प्रश्न आया था कि वे स्वयं ही समर्थ और प्रभुता सम्पन्न बने रहें अथवा उसकी वैज्ञानिक जानकारी जनसाधारण को भी दें। तब उन्होंने स्पष्ट विचार कर लिया था कि यदि सर्वसाधारण को यह ज्ञान न दिया गया तो अज्ञानी वर्ग इसी तरह का संकट उत्पन्न कर सकता है। मनुष्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता और लोकसेवा के भाव की पूर्ति के लिये भी यह आवश्यक था, तभी तत्व-दर्शन का प्राकट्य हुआ। हालैंड वासी ही क्या, सारे पश्चिम के लिये यह एक अनहोनी बात थी। कुछ लोग तो पीटर हरकौस से लाभ भी लेते थे पर चूंकि अपनी इस शक्ति का वैज्ञानिक विवेचन वह स्वयं ही नहीं कर सकता था, इसलिये उसकी आकस्मिक योग्यता उसके संकट का ही कारण बनी।

एक दिन जब पीटर हरकौस अस्पताल में ही था, उक्त संगठन का एक व्यक्ति उससे मिलने आया। उसने आते ही सन्देह भरी दृष्टि से पूछा- “महाशय! क्या आप बता सकते हैं, आपके पास यह शक्ति कैसे आई थी पर इतने से उस व्यक्ति को संतोष न हुआ। उसने गला घोंटकर पीटर हरकौस को मार डालने का निश्चय किया। हाथ बढ़ाकर उसने गला घोंटना प्रारम्भ भी कर दिया पर तभी उसकी इस शक्ति ने साथ दिया। उसने स्पेनिश भाषा में एक वाक्य कहा। यह वाक्य सुनते ही वह व्यक्ति स्तब्ध रह गया क्योंकि उस समय वह भी अपने मन में ठीक वही सोच रहा था, जो हरकौस ने स्पेनिश में कहा था। उसे विश्वास भी हो गया कि पीटर हरकौस के पास अतीन्द्रिय बोध की क्षमता है पर पीटर हरकौस स्वयं अपने लिये उसी तरह चिन्तित हो गया, जिस तरह भ्रष्ट तरीके से प्राप्त धन के पा जाने पर भी लोग चिन्तित और भयभीत बने रहते है। यदि यह सब कुछ एक क्रमबद्ध यौगिक पद्धति और किसी के मार्गदर्शन में मिला होता तो सम्भव है हरकौस सैकड़ों औरों को भी जीवन लक्ष्य की राह दिखाता पर स्वयं अपनी व्याख्या कर पाने में असमर्थ था, दूसरे को बेचारा क्या समझाता?

अन्तर्दृष्टि का एक लाभ यह तो हुआ कि पीटर हरकौस जब अपने घर लौटा तो उसे अपने सभी पड़ौसी, सगे-सम्बन्धी नग्न सत्य के रूप में परिलक्षित हुये। उसके सामने कोई झूठ बोलता तो भले ही कुछ कहता नहीं पर वह साफ समझ लेता ।  अतीन्द्रिय क्षमता किसी की भी गुप्त से गुप्त बात प्रकट कर देती, फलस्वरूप लोगों को देखने की उनकी दृष्टि में एकदम परिवर्तन आ गया। अब वह अपने को एक विराट संसार के सत्य-प्रतिनिधि के रूप में देखता और लोगों को नेकी और भलमनसाहत पर चलने की ही प्रेरणा देता, क्योंकि वह स्पष्ट देख रहा था कि अपने स्वार्थों के लिये अपनाया हुआ मिथ्या और बनावटी जीवन ही लोगों की विपत्ति और दुर्गति का कारण होता है। कुछ उसकी बातें सुनते, कुछ नहीं भी सुनते थे। पीटर हरकौस स्वयं उससे दुःखी था, क्योंकि निष्काम कर्म का उपदेश पढ़े बिना ही तो उसे सिद्धि मिली थी। वह अन्ततः उसे भार ही प्रतीत हुई। अपनी क्षमता का वह अपने भविष्य को जानने में उपयोग भी नहीं कर सकता था, इसलिये इतनी शक्तिशाली सामर्थ्य होते हुये भी ईश्वरीय घटक के रूप में वह अपने आप को छोटा ही पाता।

पीटर हरकौस तब आत्मा-शान्ति के लिये अपने देशवासियों के संगठन में सम्मिलित हो गया। समाज सेवा से उसे शाँति भी मिली पर एक दिन वह जर्मनों द्वारा कैद कर लिया गया। बन्दी शिविर में उसे बहुत कष्ट दिया गया। पर वहाँ भी लोगों को धैर्य बँधाता और कहता सब लोग 4 जून 1940 को मुक्त हो जायेंगे। मुक्त भी हुये पर 6 जून को। गलती थोड़ी ही थी पर उसने अनुभव किया कि अन्धा-धुन्ध प्रयोग से यह शक्ति चूक भी सकती है। फिर भी उसने सीमित प्रयोग बन्द नहीं किया।

1945 में उसने हालैंड के एक ‘अभिनय दल’ में नौकरी कर ली। पर यहाँ भी उसने वही कठिनाई अनुभव की। 5 ही सप्ताह में उसने यह नौकरी छोड़ दी और पुनः दुःखी देशवासियों की सेवा में लग गया। उसे सबसे अधिक शाँति देशवासियों की सेवा में ही मिलती। इस बीच उनके कई प्रख्यात चमत्कारिक प्रयोग हुये। राटरडम के कैप्टन फाल्कन का लड़का समुद्र में गिर गया था। उसका शव नहीं, मिल रहा था। अपनी अंतर्दृष्टि से पीटर हरकौस ने जिस स्थान में बताया वहीं शव मिल गया। बेल्जियम के जार्ज कार्नेलिस के हत्यारों का पता भी उसी ने बताया। इस मामले में हरकौस की कड़ी परीक्षा हुई थी। ऐसे अनेक मामलों में उसकी पत्नी मारिया उसे बहुत साथ देती आई थी, इसलिये हरकौस यह भी अनुभव करने लगा था कि वह इन चमत्कारों में पड़कर पारिवारिक कर्तव्यों की उपेक्षा कर रहा है, इसलिये वह अपनी इस क्षमता को समेटना भी चाहता था पर जब उसने अपने आपको चारों ओर से घिरा पाया तो उसने इस योग्यता से ही पारिवारिक भरण-पोषण का मार्ग चुन लिया। बेल्जियम के एक होटल में अपना आफिस खोलकर पीटर हरकौस शुल्क लेकर लोगों की सेवायें करने लगा। वह कभी-कभी सार्वजनिक स्थानों में जाकर धार्मिक उपदेश भी करने लगा। इस बीच उसने अपनी योग्यता भी खूब बढ़ाई। हरकौस पहले तीन भाषायें जानते थे अब वे सात भाषायें बोल समझ सकते थे।

एक भारतीय स्त्री ने भी हरकौस को हेग स्थित भारतीय दूतावास के माध्यम से सहायता के लिये लिखा। उसका लड़का खो गया था। हरकौस ने पत्र लिखकर बताया लड़का बम्बई में किसी सर्कस में काम कर रहा है और कुछ ही दिन में घर आ जायेगा, जबकि अब तक जो जानकारियाँ मिली थीं, उनसे उसके डूब जाने की आशंका हो रही थी। कुछ ही दिन में लड़का घर पहुँच गया। सचमुच उन दिनों वह सर्कस में ही काम करता था।

तस्कर व्यापार में सहायता के लिये एक फ्राँसीसी से हरकौस को बहुत-सा धन भी मिला पर उससे उसे बड़ी अशाँति मिली, फलस्वरूप उसने यह निश्चय कर लिया कि वह किसी अनैतिक कार्य में कभी भी सहयोग नहीं करेगा। उसकी बड़ी इच्छा थी कि इस अतीन्द्रिय सत्ता का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाये ताकि वह सर्वसाधारण के लिये भी उपलब्ध हो सके। एण्टवर्प के मनोवैज्ञानिक डॉ. रैने डेलार्ट ने काफी अध्ययन भी किया, किन्तु वे भी कोई अन्तिम हल नहीं निकाल सके।

इसी बीच अमेरिका के वैज्ञानिक डॉ. अन्द्रीचा पुरिचा का पत्र मिला उन्होंने हरकौस को अमेरिका आमंत्रित किया। 6 माह तक प्रयोग की उनकी इच्छा थी। हरकौस प्रसन्नता पूर्वक अमेरिका गये। वहाँ उन्हें कई-कई घण्टे एक बन्द कमरे में बैठना पड़ता। उनके चारों ओर 250000 वोल्ट शक्ति की विद्युत-धारा प्रवाहित करके डॉ. पुरिच ने सोचा कि यदि कोई विद्युत शक्ति बाहर से आती होगी तो न आ सकेगी पर हुआ उल्टा। उस कमरे में पहुँचते ही उनका अतीन्द्रिय बोध और भी बढ़ जाता, इससे उन्होंने स्वीकार किया यह शक्ति 250000 वोल्ट विद्युत-शक्ति से भी अधिक प्रखर होती है। दुर्भाग्य से उन्हीं दिनों डॉ. पुरिच की संरक्षिका का स्वर्गवास हो गया और वह प्रयोग जहाँ का तहाँ ही रुक गया। पर उन्होंने यह अवश्य सिद्ध कर दिया कि हरकौस में अतींद्रिय ज्ञान की क्षमता बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान है।

पीटर हरकौस का जीवन इस विद्या में व्यवसाय भर का हो गया था। वे अनेकों लोगों की सहायता तो करते वे पर यह नहीं बता सकते थे, यह सत्ता क्या है। सम्भव है उन्होंने जो जिज्ञासायें सूक्ष्म एवं अतीन्द्रिय क्षमताओं के प्रति उत्पन्न की हैं, वह लोगों को भारतीय तत्वदर्शन से कुछ सीखने की प्रेरणा दे। अतीन्द्रिय सत्ता के प्रति विश्वास उत्पन्न करने में इस दुर्घटना या घटना ने जो सहायता दी है, वह अपने आपमें ही एक चमत्कार है।

पीटर हरकौस ने अपने यह सम्पूर्ण संस्मरण- ‘साइक’ नामक पुस्तक में छापे हैं। यह पुस्तक ‘आर्थर बार्कर लिमिटेड लन्दन’ ने प्रकाशित की है। हरकौस के संस्मरण संसार के सभी समाचार-पत्रों ने छापे हैं। जून 1963 में कादम्बिनी, 7 दिसम्बर 1969 रहस्य रोमांच अंक साप्ताहिक हिन्दुस्तान और नवम्बर 1964 नवनीत में भी यह संस्मरण विस्तार से छपे हैं।



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