महाप्राज्ञ शरीर छोड़ने लगे तो अपने पुत्र सौमनस् को बुलाया और एक मणि देते हुये कहा- तात्! यह लो ‘सुर्यकान्त मणि’ इसमें जीवन के सम्पूर्ण अभाव दूर करने की क्षमता है। यह कहकर उन्होंने पंच-भौतिक शरीर का परित्याग कर दिया।
सौमनस् ने कुछ दिन तो उस मणि का प्रयोग दीपक के रूप में किया, फिर अपनी प्रेमिका एक वेश्या को दे दिया। वेश्या का शृंगार प्रसाधनों की आवश्यकता पड़ी तो उसे एक जौहरी को बेच दिया। जौहरी ने मणि की महत्ता को परखा और उससे बहुत-सा सोना बनाकर धनपति बन गया।
संगीत भी सुर्यकान्त मणि के समान है, जो अपात्रों के हाथ महत्वहीन और पारखियों के पास अमूल्य निधि के रूप में सुरक्षित रहती है।