यह अबोध है-अज्ञानी है

May 1970

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कमल सरोवर के निकट बैठ तथागत शान्त मुद्रा में-विभोर से गन्धपान कर रहे थे।

तभी एक देव कन्या ने कहा “तुम बिना कुछ दिये ही गन्ध का पान कर रहे हो। तुम गन्ध चोर हो।”

तथागत ने देखा, और शिर झुका लिया। तभी एक ग्राम्य बालिका आई और निर्दयता पूर्वक कमल पुष्प तोड़ने लगी। तालाब का पानी भी अस्वच्छ कर दिया। देव कन्या अभी भी खड़ी थी।

उसे मौन देखकर तथागत ने कहा ‘देवि-मैंने तो केवल गन्धपान ही किया था। तब भी तुमने मुझे चोर कहा। और यह तो कमल पुष्प तोड़ रही है- सरोवर को अस्वच्छ भी कर रही है। तब भी तुम इसे कुछ नहीं कह रहीं?

देव कन्या मुस्कराई। सहज स्मिति में से स्नेह भरा स्वर फूटा “यह अबोध है-अज्ञानी है। क्या उचित है, क्या अनुचित? यह वह नहीं जानती। उसके कार्य कलाप सहज संचालित हैं। पर आप ज्ञानी हैं। नीति मर्मज्ञ हैं। धर्म के ज्ञाता हैं। क्या श्रेय है और क्या प्रेय यह आप भली प्रकार जानते हैं। आपकी लघु से लघु क्रिया भी औचित्य एवं अनौचित्य की कसौटी पर कस कर ही क्रियान्वित होनी चाहिये।” पुनः तथागत का शीश अवनत हो गया। इस बार शीश ही नहीं-हृदय भी लज्जित हो आया था। उन्होंने अनुभव किया शिक्षित और विचार-शील लोग जब तक नैतिक आचरण नहीं करते सामान्य प्रजा तब तक सुधरती नहीं।


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