जीवन क्या है ? यह एक ऐसा प्रश्न है, जो युगों युगों से पूछा जा रहा है एवं अनुसरित हैं । श्रुति की शरण में जाएँ, तो वह कहती है कि हर व्यक्ति द्वारा जीवन के स्वरूप को समझा जाना चाहिए और उससे जुड़े तथ्यों को स्वीकार करना चाहिए, चाहे वे कितने भी कडुए एवं अप्रिय क्यों न प्रतीत होते हों ? जीवन एक चुनौती है, एक समर है, एक जोखिम है एवं उसे इस रूप में स्वीकार करने के अलावा हमारे पास ओर कोई चारा भी नहीं ।
जीवन एक रहस्य है, तिलिस्म है, भूल-भुलैया है, एक प्रकार से एक गोरखधंधा है जिस किसी के पास भी गंभीर पर्यवेक्षण करने की दृष्टि हो, वह उसकी तह तक पहुँच सकता है । इसी आधार पर जीवन से जुड़ी भ्राँतियों के कुहासे को भी मिटाया जा सकता है कई प्रकार के खतरों से भी बचा जा सकता है। कर्तव्य के रूप में जीवन अत्यंत भारी किंतु अभिनेता की तरह हँसने-हँसने वाला हलका फुलका रंगमंच भी है, जिसका विनोदपूर्वक मंचन कर आनंद लिया जा सकता है ।
जीवन एक गीत है,जिसे पंचम स्वर में गाया जा सकता है। जीवन एक अवसर है, जिसे गँवा देने पर सब कुछ हाथ से निकल जाता है। जीवन एक स्वप्न है, जिसमें स्वयं को खोया जा सके तो भरपूर आनंद का रसास्वादन किया जा सकता है । जीवन एक प्रतिज्ञा है, यात्रा है, जीने की एक कला है। उसे सफल कैसे बनाया जाए, यह यदि जान लिया जाए, इस पर मनन कर लिया जाए, तो फिर उससे बड़ा भाग्यशाली कोई नहीं। जीवन सौंदर्य है, सत् - चित - आनंद है। वह सब कुछ है, जो नियंता की इस सृष्टि में सर्वोत्तम कहा जाने योग्य है। हम इसे जीकर तो दिखाएँ।