पात्रता विकसित हुए बिना (kahani)

August 2000

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भगवान् बुद्ध के पास एक सेठ आत्मज्ञान-प्राप्ति की आकाँक्षा से पहुँचा। पहुँचकर आने का मंतव्य स्पष्ट किया। दूसरे दिन उसके घर पर आकर ही उत्तर देने का आश्वासन देकर बुद्ध ने उसे विदा किया। स्वयं भगवान् बुद्ध घर आ रहे हैं, यह सोचकर सेठ ने अच्छी खीर बनवाई। कमंडलु लिए दूसरे दिन तथागत पहुँचे। “भगवन् ! आपके लिए खीर तैयार की है। प्रसाद ग्रहण करें।” सेठ ने निवेदन किया। बुद्ध ने खीर के लिए अपना कमंडलु आगे कर दिया। सेठ खीर देने के लिए आगे बढ़ा। ध्यान से देखो उसमें गोबर भरा हुआ था। बोला, “देव! इसमें तो पहले से गोबर भरा हुआ है। इस पात्र में देने पर तो खीर भी बेकार हो जाएगी।” तथागत हँसे और बोले, “ वत्स! तुम्हारे कल के प्रश्न का यही उत्तर है। आत्मज्ञान-प्राप्ति के लिए पहले पात्रता विकसित करो। अपने कषाय-कल्मषों का परिशोधन करो। आत्मज्ञान जैसी महान् उपलब्धि पात्रता विकसित हुए बिना नहीं प्राप्त हो सकती। “


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