सुनिश्चित भवितव्यता भी बदली जा सकती है

August 2000

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कहते हैं कि भाग्य और भविष्य पूर्व निर्धारित होते हैं, पर समय-समय पर होने वाले स्वप्न-दर्शन इस बात के पक्के सबूत है कि प्रयत्न और पुरुषार्थ द्वारा उन्हें बदला जा सकना संभव है। पत्थर की लकीर की तरह अटल इस दुनिया में शायद ही कुछ है। सतत् सचेष्ट रहकर मनुष्य सुनिश्चित भवितव्यता को भी परिवर्तित कर सकता है।

जे0बी0 प्रीस्टले ने अपनी पुस्तक ‘मैन एंड टाइम’ में डॉ0 लुइसा राइन द्वारा उद्धृत एक ऐसे ही स्वप्न का उल्लेख किया है। वे लिखते हैं कि एक माँ ने एक बार स्वप्न में देखा कि वह एक सँकरी खाड़ी के किनारे अपने मित्रों के साथ ठहरी हुई है। इसी बीच कपड़े धोने के उद्देश्य से वह खाड़ी की ओर नीचे गई। साथ में बेटे को भी ले गईं। तभी उसे याद आया कि वह साबुन तंबू में ही भूल आई हैं, अतः वह बालक को वहीं छोड़कर वापस तंबू में लौटी। बेटा पानी में पत्थर फेंकने लगा। जब वह वापस आई, तो देखा बालक जल में औंधे मुँह पड़ा है। उसने तुरंत उसे पानी से बाहर निकाला, तो पता चला कि वह मर चुका है।

अगले ग्रीष्म में वह कुछ मित्रों के साथ घूमने निकली तथा एक सँकरी खाड़ी के किनारे के स्थान को अपने पड़ाव के लिए उपयुक्त समझकर सबने वहीं तंबू डाल लिए। उसे कुछ कपड़े धोने थे, अस्तु वह बालक को लेकर खाड़ी के किनारे आई, तभी स्मरण हो आया कि साबुन तो वह लाना ही भूल गई। बेटे को वहीं छोड़कर वह उसे लाने वापस लौटी। इसी बीच बालक पानी में पत्थर फेंकने लगा। तत्काल उसके मस्तिष्क में स्वप्न की बात कौंध गई। ठीक वे ही परिस्थितियाँ, पुत्र की वही पोशाक एवं उसकी वही क्रिया, इन सबने मिलकर उसको भयाक्राँत कर दिया। वह चिंतित हो उठी और स्वप्न की सच्चाई को टालने के लिए बालक को अपने साथ ले गई। इस प्रकार सतर्कता ने स्वप्न को साकार होने से रोक दिया।

ऐसे ही दो अन्य स्वप्नों की चर्चा आर्थर डब्ल्यू0 आँस्बोर्न ने अपने ग्रंथ ‘दि फ्यूचर इज नाउ’ में की है। प्रथम घटना ए युव से संबंधित है, जो होबार्ट, तस्मानिया में छुट्टी मनाने गए अपने परिवार से मिलने गया था। जब वह किंग्स्टन वापस लौट रहा था, तो उसकी माँ ने उसे सावधान करते हुए कहा कि उसे पूर्वाभास हुआ है कि घर लौटते समय रास्ते में दुर्घटना होगी, अतएव कार सावधानीपूर्वक चलाई जाए। आधा मार्ग तय कर लेने के उपराँत उसे माँ की चेतावनी का ध्यान आया और उसने गाड़ी की गति घटाकर पच्चीस मील प्रति घंटा कर दी। कुछ पल पश्चात् गाड़ी सड़क पर जमी बरफ पर फिसल गई और किनारे की दीवार को तोड़ने हुए एक गड्ढे में जा गिरी। कार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई, पर युवक एकदम सुरक्षित बच गया। यदि वह पूर्व की तरह दूनी रफ्तार से गाड़ी चलाना जारी रखता, तो या तो मारा जाता अथवा गंभीर रूप से घायल हो जाता। सजगता ने एक सुनिश्चित दुर्घटना टाल दी। इसे भाग्य या भविष्य का परिवर्तन भी कह सकते हैं।

दूसरी घटना आँस्बोर्न के एक मित्र की है। वह एक स्कूल में संगीत शिक्षक था। एक दिन विद्यालय में संगीत की परीक्षा चल रही थी और वह एक छात्र के पीछे खड़े होकर उसका पियानो बजाना सुन रहा था, तभी अचानक सामने का दृश्य गायब हो गया। अब वहाँ न तो वह छात्र था, नर उसका पियानो। उसकी जगह एक सड़क का दृश्य दिखाई पड़ा। यह वही सड़क थी, जिससे होकर उसे दोपहर बाद कार से जाना था। अकस्मात् एक गाड़ी सामने के मोड़ पर बड़ी तेजी से सड़क की गलत दिशा में आई। इसके बाद दृश्य धुँधला पड़ता हुआ तिरोहित हो गया।

अब पुनः उसकी जगह छात्र और पियानो दिखलाई पड़ने लगे। दृश्य देखने के बाद उसने अनुमान लगाया कि कदाचित् कोई दुर्घटना घटने वाली है। उसी का पूर्वाभास इस रूप में सामने आया। दोपहर बाद जब वह उस रोड से गुजर रहा था, तो उक्त मोड़ के निकट उसे वह दृश्य याद आ गया। बिना एक पल सोचे ही गाड़ी उसने सड़क की दूसरी ओर कर ली। उसका ऐसा करना था कि मोड़ पर सामने से बड़ी तीव्र गति से आती हुई एक कार दिखलाई पड़ी। वह सड़क की गलत दिशा में में थी, ठीक उसी प्रकार जैसा उसने परीक्षा भवन में देखा था। एक संभावित दुर्घटना टल चुकी थी। यदि वह कार दूसरी ओर न ले जाता, तो शायद उसका सुरक्षित बच पाना असंभव था।

ऐसा ही एक प्रसंग सन् 1946 का है। तब एयरमार्शल गोडार्ड शघाई में अपने सम्मान में दी गई एक पार्टी में सम्मिलित थे। वे अपने कुछ मित्रों से बातचीत कर रहे थे कि तभी उनके कानों में पीछे से आवास आई कि माश्रल गोडार्ड मर चुके है। उन्होंने पलटकर देखा, वहाँ ब्रिटिश नौसैनिक कमाँडर कैप्टन जेराल्उ ग्लैस्टोन खड़े थे। ग्लैडस्टोन ने उन्हें तुरंत पहचान लिया तथा आश्चर्यचकित होकर क्षमा-याचना की, तो गोडार्ड ने पूछा कि आखिर किस आधार पर आपने मेरे मरने की बात कही तब ग्लैडस्टोन ने उत्तर दिया कि स्वप्न में ऐसा देखा था। इसके उपराँत उन्होंने स्वप्न की चर्चा की।

उन्होंने देखा कि एक यात्री विमान, संभवतः डकोटा एक पथरीले तट पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। ऐसा बर्फीले तूफान के कारण हुआ। उसमें रायफल एयरफोर्स के सदस्यों के अतिरिक्त तीन और व्यक्ति थे। इनमें से दो पुरुष तथा एक महिला थी। वे सभी वायुयान से बाहर निकल आए, किंतु गोडर्ड नहीं निकले सके। जागने पर ग्लैडस्टोन को यह पक्का विश्वास हो गया कि गोडार्ड दुर्घटना में मारे गए।

गोडर्ड यह सुनकर चिंतित नहीं हुए। उन्हें एक डकोटा विमान द्वारा टोकियो जाना था, किंतु जहाज पर कोई गैर-सैनिक यात्री नहीं था। उन्होंने ग्लैडस्टोन के साथ लगभग आधा घंटा बातचीत में बिताया। तब तक रात्रि भोज का समय हो चुका था। अब परिस्थितियाँ आश्चर्यजनक ढंग से बदली। ‘ डेली टेलीग्राफ’ के एक संवाददाता ने जापान की यात्रा हेतु अनुमति चाहीं इसके पश्चात् काउंसिल जनरल ने भी साथ’साथ सफर करने की आज्ञा माँगी और गोडार्ड से कहा कि उसे अभी-अभी आदेश प्राप्त हुआ है कि वे अवलिंब टोकियो पहुँचें, साथ में उसकी महिला सेक्रेटरी भी है। क्या उसके लिए भी कोई स्थान संभव हो सकेगा बड़े असमंजस में पड़कर गोडर्ड अंततः सहमत हो गए। जब वायुयान शंघाई से उड़ा, तो उसे यह बिलकुल आशंका नहीं थी कि जहाज दुर्घटनाग्रस्त होने वाला है।

पर्वतों के ऊपर उड़ते हुए डकोटा घने बादलों में घिरकर भयंकर बर्फीले तूफान में फँस गया। अंत में चालक को जापानी टापू के एक पथरीले तट पर विमान उतारने के लिए विवश होना पड़ा। वायुयान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, पर उसमें बैठे सभी यात्री सुरक्षित बच निकले। इस प्रकार ग्लैडस्टोन का स्वप्न अर्द्धसत्य साबित हुआ।

कर्मविज्ञान में गति रखने वाले आचार्यों का मत है कि हमारे दैनंदिन शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर भाग्य और भविष्य बनते-बिगड़ते रहते हैं। इसलिए किसी व्यक्ति समाज या राष्ट्र के सुनिश्चित भविष्य की अक्षरशः भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन है। यदि किसी व्यक्ति की भूतकालीन गतिविधियाँ अत्यंत ही घिनौनी हों, उसने अन्य-अत्याचार में संलग्न रहकर अनेकों को प्रताड़ित-उत्पीड़ित किया हो, तो उसका संचित कर्म निश्चय ही पीड़ादायक और कठोर होगा, किंतु पीछे किसी प्रकार उसे सद्बुद्धि आ जाए और वह यह महसूस करने लगे कि अब तक उससे जो कार्य बन पड़े है, वह किसी भी प्रकार सराहनीय नहीं, उनसे लोक-परलोक दोनों बिगड़ेंगे और उसकी पीड़ा इसी जीवन तक सीमित न रहकर अगले जन्म तक पीछा करेगी एवं उसे नारकीय बनाएगी। इस आधार पर बाद में वह अपना दृष्टिकोण और क्रियाकलाप बदल ले, तो इस व्यापक परिवर्तन से उसका भाग्य भी प्रभावित हुए बिना न रहेगा। यह संभव है कि इससे उसके ठोर प्रारब्ध में कुछ हेर-फेर हो जाए और भक्तिव्यता मर्मांतक क्लेशदायी न होकर कुछ मृदु हो जाए। ऐसी स्थिति में भविष्यसूचक स्वप्न शत-प्रतिशत सच नहीं होंगे। जब नियति ही पूर्णरूपेण निर्धारित न हो, तो उसका शब्दशः पूर्वाभास कैसे संभव है आज तक का जो हमारा भाग्य है, चेतना उसकी ही अभिव्यक्ति करेगी। कल उसमें कुछ बदलाव आ जाए, तो फिर वही आँशिक सत्य बन जाएगा। इसलिए भविष्य बताने वाले स्वप्न पूर्णतः सच्चे ही होंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता।

भवितव्यता की झाँकी स्वप्नों के माध्यम से होती है और स्वप्न कर्तृत्वों के साकार रूप हैं। अस्तु, इनमें परिवर्तन लाकर भाग्य का पुनर्निर्धारण संभव है। स्वप्नशास्त्रियों का भी ऐसा ही निष्कर्ष है।


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