करुणामूलक जीवन शैली का प्रतीक है, शाकाहार

August 2000

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शाकाहार एक प्राकृतिक आहार है। इनके उत्पादन में न तो कहीं कोई क्रूरता है, न बर्बरता , न शोषण और न ही हिंसा। यह किसी जीवधारी के प्राण लेकर उत्पन्न आहार नहीं हैं इससे न तो वातावरण प्रदूषित होता है और न ही काई रोग फैलता है। शाकाहार सही मायने में जीवन की गुणवत्ता को समृद्ध करने वाला आहार है। शाकाहार करने वाले मनुष्यों में स्वतः ही सहज रूप से प्रेम, मैत्री सहृदयता, क्षमा, सहिष्णुता रचनाधर्मिता कला, विश्वास, संयम, संतुलन जैसे महान् जीवनमूल्यों और सृजनशील वृत्तियों का विकास हुआ है। इस तथ्य को आधुनिक वैज्ञानिक भी सत्य रूप में स्वीकार करते हैं।

शाक’ शब्द संस्कृत की ‘शक’ धातु से निष्पन्न शब्द है। जिसका अर्थ है, योग्य होना, सहन करना। शक धातु शक्नोति आदि रूपों में चलती है। इसी से शक्ति, शक्त शक्तिमान् आदि शब्द बने है। शक्त का अर्थ है , योग्य ,समर्थ , ताकतवर। इस तरह शाकाहार का शब्दार्थ या वाच्यार्थ हुआ, एक ऐसा आहार, जो मनुष्य की योग्यताओं का विकास करे और उसे बलशाली तथा पराक्रमी बनाए।

जहाँ तक शाकाहार के उदय और उद्भव का प्रश्न है, तो यह किस नवीन जीवनशैली का अंग नहीं है, बल्कि यह उतना ही प्राचीन है, जितना कि मनुष्य स्वयं है, यह कोई क्षणिक वृति नहीं है। यह तो एक जीवनशैली है, जो सदियों के अनुभवों व प्रयोगों के बाद अस्तित्व में आई है। जान हापक्सि विश्वविद्यालय के नृतत्वविज्ञानी प्राध्यापक डॉ0 आलन वाकर के अनुसार मनुष्य के पूर्वज शाकाहारी थे। डॉ0 वाकर ने मनुष्य की दंत रचना का 1 करोड़ 20 लाख वर्षों में फैले कालपटल पर गहन अध्ययन किया है और इस अपने अनुसंधान से यही निष्कर्ष पाया है कि मनुष्य ईसा पूर्व 12,00,000 वर्ष पहले भी फलाहार ही किया करता था । वेजीटेरियनिज्म : ए ह्मूमन इंपेरेटिहृ नामक सुविख्यात ग्रंथ में इस सत्य का स्पष्ट उल्लेख है कि मिश्र, सुमेरिया , भारत ,चीन तथा रोम एवं ग्रीस के लोग पूरी तरह से शाकाहारी हुआ करते थे।

वेजीटेरियन, शब्द सर्वप्रथम 1842 ईसवी में प्रयोग में आया।यह शब्द लैटिन भाषा के वेजीटस शब्द से जन्मा है। जिसका अर्थ हैं, स्वस्थ, समग्र ,समर्थ , विश्वस्त , परिपक्व, ताजा, जीवंत। फ्राँसीसी भाषा का वेजीटेरियन शब्द परवर्ती लैटिन के वेजीटेबल शब्द का विकास है। जिसका अर्थ है, जीवन-संचारक या जीवन से भरपूर। इस शब्द की व्युत्पत्ति जिस लैटिन भाषा के शब्द से हुई, उस लैटिन भाषा में यह शब्द अपने मूल रूप में ‘वेजीटेरे’ नाम से जाना जाता है। इसका तात्पर्य है, अनुप्राणित करना, गति देना। इन शब्दों से सहज ही शाकाहार की विशेषताओं का अनुमान लगाया जा सकता है। सन् 1847 ईसवी में शाकाहार को प्रसारित-प्रवर्तित करने वाली एक धर्मनिरपेक्ष संस्था का इंग्लैंड के मेनचेस्टर शहर में जन्म हुआ । उन दिनों इसका नाम रखा गया द वेजीटेरियन सोसायटी। सन् 1908 ई॰ में विश्व के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल वेजीटेरियन यूनियन की स्थापना हुई। आज भी इस संगठन की समूचे विश्व भर में अनेकों शाखाएं है।

(विश्वभर के चिकित्साविज्ञानियों एवं उनके शोध निष्कर्षों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहार ही स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। जो चिकित्साविज्ञान पहले मनुष्य शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए एनिमल प्रोटीन को बहुत आवश्यक मानता था, वही सब इस तथ्य का प्रतिपादन करने लगा है कि इसके बगैर श्री मनुष्य स्वस्थ रहकर अपना शारीरिक विकास कर सकता है। )

वेजीटेरियन शब्द यूरोप में भले ही उन्नीसवीं शताब्दी में आविष्कृत हुआ हो, पर भारत एवं यूनान में इसका उद्घोष स्वयं ईसा से सैकड़ों ईसवी पूर्व हो चुका था । भारतवर्ष के आदिग्रंथ ऋग्वेद के साथ ही अथर्ववेद, मनुस्मृति, महाभारत आदि में शाकाहार को सर्वोत्तम आहार बताया गया है। जैनधर्म के प्रवर्तक भगवान् महावीर एवं बौद्धधर्म के प्रवर्तक भगवान् बुद्ध ने भी जीवन के प्रति सम्मान की भावना को पुनर्जीवित किया तथा स्वयं भी वैसा ही कर दिखाया। इनके द्वारा प्रवर्तित अहिंसा में शाकाहार के महत्व की स्पष्ट झलक देखी जा सकती हैं भारतीय समाज व संस्कृति में शाकाहार की जड़े अत्यंत गहरी और सघन हैं। यूनानवासी भी मूलतः शाकाहारी ही थे। उनकी पुनर्जन्म में अडिग आस्था थी। यूनानी विचारकों का यह मानना रहा है कि शाकाहार में विकारों के विरेचन की विलक्षण शक्ति है एवं जो व्यक्ति पुनर्जन्म में आस्था रखा है, वह माँसाहारी हो ही नहीं सकता। वहाँ के महान् गणितज्ञ पाइथागोरस का जीवन शाकाहार का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए कहा है कि शाकाहार चित के निर्मलीकरण का बहुत बड़ा आधार हैं।

मानव की शारीरिक संरचना की दृष्टि से भी शाकाहार ही स्वाभाविक भोजन है। उदाहरण के लिए, मनुष्य के दाँत सपाट बने होते हैं। इसी प्रकार मनुष्य अपने भोजन को चबाकर खाता है, जिससे उसे पचाने में सुविधा रहती है और पचाने के लिए मनुष्य की आँत की लंबाई उसके शरीर की तुलना में 12 गुनी लंबी होती है। माँसाहारी जीव भोजन को चबाने की बजाय सीधे निगल जाते हैं उनकी आंतों की लंबाई भी उनकी लंबाई से मात्र तीन गुणा ही अधिक होती है।

इन तथ्यों के अतिरिक्त अब तो विश्वभर के चिकित्साविज्ञानियों एवं उनके शोध-निष्कर्षों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहार ही स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। जो चिकित्साविज्ञान पहले मनुष्य शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए एनिमल प्रोटीन को बहुत आवश्यक मानता था,वही अब इस तथ्य का प्रतिपादन करने लगा है कि इसके बगैर भी मनुष्य स्वस्थ रहकर अपना शारीरिक विकास कर सकता है। यदि एनिमल प्रोटीन की जरूरत है भी , तो यह दूध के सेवन से पूरी की जा सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान के अनुसार गले, मुख ,पेट व बड़ी आँत के कैंसर के बारे में इस बात के निश्चित प्रमाण मिले हैं कि शाकाहार में मौजूद रेशे, विटामिन सी तथा प्रोटीन पचने से प्राप्त होने वाले नाइट्रोजन यौगिक कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों को सोखकर या तो शरीर से बाहर निकाल देते हैं। अथवा उन्हें ऐसे यौगिकों में बदल देते हैं, जो निरापद होती है। स्तन कैंसर के बारे में विश्वभर में किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि भारत जैसे शाकाहार प्रधान देशों की तुलना में माँसाहारी देशों की महिलाओं में स्तन कैंसर का अनुपात ज्यादा है। शाकाहार में कम चिकनाई , कम प्रोटीन और रेशों की अधिकता स्तन कैंसर को पनपने नहीं देती।

गुरदे व पित्ताशय की पथरी भी शाकाहारियों में कम बनती हैं दरअसल पथरी बनती है कैल्शियम आँक्सलेट जमा हो जाने से । शाकाहारियों में यूरिक एसिड, कैल्शियम और आँक्सलेट तीनों ही मूत्र त्याग के साथ ही शरीर में से बाहर निकल जाते हैं। इसके अतिरिक्त शाकाहारियों में मधुमेह का अनुपात भी बहुत कम होता है। क्योंकि शाकाहारी भोजन में रेशों के कारण ग्लूकोज धीरे धीरे बनता है । रेशों की वजह से ही आँतों में जी0आई0पी0 नामक हार्मोन निकलता है, जो इंसुलिन ज्यादा बनने नहीं देता और सोमेटोस्टेटिन की मात्रा बढ़ा देता है।

(लोभ-मोह के भव-बंधन आदर्शवादिता के आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने वालों के लिए हथकड़ी बेड़ी जैसे अवरोध उत्पन्न करते हैं लालची , संग्रही , विलासी व्यक्ति को लोभ लिप्सा इस कदर जकड़े रहती है कि उसे परमार्थ में कोई रस ही नहीं आता । अपनी तराजू पर अपने बाटों से तौलने पर स्वार्थ वजनदार प्रतीत होता है । और परमार्थ हलका इसलिए लालच में राई-रत्ती कमी पड़ते ही वह परमार्थ से हाथ खींच लेता है मनीषियों ने उत्कृष्टता के क्षेत्र में प्रवेश करने वालो के लिए वित्तेषणा, पुत्रेषणा ओर अहंता (लोभ, मोह और बड़प्पन ) की त्रिविध ऐषणाओं का परित्याग करने के उपराँत ही श्रेय मार्ग पर पैर बढ़ाने की सलाह दी है। इस निर्मलता को प्राप्त किए बिना भक्ति नहीं बनती है। स्वच्छ निर्मल होने पर ईश्वर दूर नहीं रह जाता , अपने अंदर बैठा दिखाई देने लगता है। )

सेव अर्थ फाउंडेशन ने जो आँकड़े प्रकाशित किए है, उनके अनुसार शाकाहार आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसके संचालकों के अनुसार आज जीवन की गुणवत्ता तथा प्राकृतिक एवं पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में शाकाहार एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। अर्थ शास्त्रियों का स्पष्ट कथन है कि धरती पर खाद्य स्रोतों का इतना सुनियोजित और संतुलित वितरण है कि यदि हम चाहे तो कृषि के वर्तमान उत्पादन स्तर पर अब से आठ से दस गुनी ज्यादा आबादी का पेट आसानी से भर सकते हैं। परंतु आधी से ज्यादा अन्न फसलें पशुओं को खिला दी जाती है ,ताकि उनका माँस ज्यादा स्वादिष्ट हो सके। अर्थशास्त्रियों की ही भाँति समाज मनोवैज्ञानिकों के अपने निष्कर्ष है। उनके अनुसार आज विश्व में सबसे बड़ी समस्या हिंसा और आतंकवाद की है। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य के स्वभाव को अहिंसा और शाकाहार की ओर प्रवृत्त करके ही इन्हें रोका जा सकता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से यह तथ्य उभरकर आया है कि दुर्दांत अपराधियों के व्यवहार भी शाकाहार से परिवर्तित किए जा सकते हैं इन वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि शाकाहार से विश्वशाँति का प्रसार हो सकता है, साथ ही मानव को अधिक स्वस्थ और रोगमुक्त रखकर जीवन को अपेक्षाकृत अधिक आनंदमय बनाया जा सकता है।

सुविख्यात पत्र द संडे आर्ब्जवर ने सुप्रसिद्ध शाकाहारियों की एक सचित्र सूची हाल ही में प्रकाशित की है। इस सूची में विश्वप्रसिद्ध समाजसेवी, राजनेता, उद्योगपति, खिलाड़ी, चिकित्सक, ड्रेस डिजाइनर, पत्रकार, गणितज्ञ ,विधिवेत्ता , अभिनेता अभिनेत्रियाँ नृत्याँगनाएँ एवं पहलवान सभी शामिल है। इस सूची से यह तथ्य स्वयं ही स्पष्ट हो जाता है कि शाकाहार से बहुमुखी प्रतिभा का विकास संभव हैं। हो भी क्यों नहीं , पूर्वकाल के मनीषी , अरस्तू , प्लेटो , शेक्सपियर , डार्विन , पी0ए॰ हक्सले , इमर्सन, आइंस्टीन, जार्ज्र बनोर्ड शाँ , लियो टॉलस्टाय सभी तो शाकाहारी ही थे। भारत तो प्रारंभिक काल से ही शाकाहार के मामले में अग्रणी रहा है, यहाँ महावीर एवं गौतम बुद्ध से लेकर महात्मा गाँधी नोबुल पुरस्कार विजेता सी ॰ वी0 रमन, भूतपूर्व राष्ट्रपति एवं दार्शनिक डॉ0 राधाकृष्णन जैसे अगणित नाम है, जो आजीवन शाकाहारी रहे।

अमेरिका की एक बाजार शोध कंपनी ‘रोपर स्टार्च वर्ल्ड वाइड ‘द्वारा विश्वव्यापी स्तर पर किए गए सर्वेक्षण से यह तथ्य उभरकर आया है कि भारत में 82 प्रतिशत लोग प्रतिदिन शाकाहार करते हैं। इंग्लैंड में प्रति सप्ताह 3,000 व्यक्ति शाकाहार बन रहे है। अमेरिका में डेढ़ करोड़ लोग शाकाहारी है। सच तो यह कि आज हर बुद्धिजीवी व्यक्ति शाकाहारी प्रणाली को ही अधिक आधुनिक, प्रगतिशील और वैज्ञानिक मानता है और स्वयं को शाकाहारी कहलाने में अधिक गर्व महसूस करता है।

शाकाहार का सीधा-सा अर्थ है, सदा-सीमित आहार, संयत रहन- सहन, सरल, निश्छल अहिंसामूलक जीवन और पूरी दुनिया के साथ कुटुँबवत् व्यवहार। सत्य यही है कि शाकाहार एक करुणामूलक जीवनशैली है, जो प्रत्येक जीवधारी के सम्मान के प्रति गहन आस्था की द्योतक है। अतः इससे मनुष्य सहज ही समृद्ध , शक्ति शाली एवं बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनता है, साथ ही उसमें स्वतः ही सद्गुणों सद्वृत्तियों का विकास होता है।


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