सबसे बड़ा खजाना

August 2000

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अँधेरी रात में वह फकीर आकाश के तारों को देख रहा था। रात जैसे-जैसे गहरी होती जाती, थी वैसे-वैसे आकाश में तारे बढ़ते जाते थे। धीरे धीरे तो पूरा आकाश ही उनसे जगमग हो उठा था और आकाश के तारों को देखते-देखते उसका मन भी उस मौन सौंदर्य से भर गया। वह एक वृक्ष से टिका इस सौंदर्य में खोया ही था कि तभी किसी न पीछे से आकर उसके कंधे पर अपना ठंडा हाथ रख दिया। आने वाले की पगध्वनियाँ भी उसे सुनाई पड़ी थीं । वे ऐसी नहीं थी। जैसी किसी जीवित व्यक्ति की होनी चाहिएं उसका स्पर्श तो इतना निर्जीव था कि अँधेरे में भी उसकी आँखें में भरे भावों को समझने में उस फकीर को देर न लगी । उसके शरीर का स्पर्श उसके मन की हवाओं को भी उस फकीर तक ले आया था। हालाँकि वह व्यक्ति तो जीवित था और युवा था, लेकिन जीवन कभी का उससे विदा ले चुका था ओर यौवन तो संभवः उसके मार्ग में कभी आया ही नहीं था।

वे दोनों तारोँ के नीचे बैठे थे। उसके मुरदा हाथों को फकीर ने अपने हाथों में ले लिया था, ताकि वे थोड़े गरम हो सकें और थोड़ी सी जीवन ऊष्मा उनमें भी प्रवाहित हो सके। निश्चय ही ऐसे समय में बोलना उचित नहीं था, शायद इसीलिए वह फकीर चुप रहा। हृदय मौन में ही कहीं ज्यादा निकटता पाता है और शब्द जिन घावों को नहीं भर सकते , मौन उन्हें भी स्वस्थ करता है । शब्द और ध्वनियाँ तो जीवन-संगीत में विघ्न और बाधाएँ ही है।

रात्रि मौन थी और हो गई । उस शून्य संगीत ने उन दोनों को घेर लिया । वे दोनों अब अपरिचित नहीं रहें। फिर आगंतुक की पाषाण जैसी जड़ता टूटी और उसके आँसुओं ने खबर दी कि वह पिघल रहा है।वह रो रहा था और उसका शरीर कंपित हो रहा था। उसके हृदय में जो हो रहा था उसकी तरंगें उसके शरीर के तंतुओं तक आ रही थी। वह रोता रहा, रोता रहा और निराश हूँ। मेरे पास कुछ भी तो नहीं है।”

फकीर थोड़ी देर चुप रहा, फिर मुस्कराते हुए बोला, ऐसा क्यों कहते हो, तुम्हारे पास तो एक बहुत बड़ा खजाना है। वह युवक हैरान हुआ, उसने कहा, खजाना? मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है।

इस पर फकीर हँसने लगा और बोला, मेरे साथ बादशाह के पास चलो। बादशाह बड़ा समझदार हैं । छिपे खजानों पर उसकी सदा से गहरी नजर रही है।

युवक की समझ में कुछ नहीं आया । वह उलझन में पड़ गया और हैरान होते हुए कहने लगा, आखिर मुझे भी तो पता चले कौन-सा खजाना है मेरे पास?

फकीर ने कहा, जैसे तुम्हारी आंखें, तुम्हारा हृदय, मस्तिष्क। इनमें से किसी एक के भी हजार दीनार मिल सकते हैं तुम्हें।

वह युवक हैरान हुआ और कहने लगा, मैंने तो सुना था कि फकीर जुन्नैद एक आला दरजे के आलिम है, उनके पास रूहानी ताकत है। पर आप तो पागल है। भला कोई अपना, हृदय, मस्तिष्क भी कभी बेचना चाहेगा।

फकीर हँसने लगा और बोला ,मैंने तो सुना था कि फकीर जुन्नैद एक आला दरजे के आलिम है, उनके पास रूहानी ताकत है। पर आप तो पागल हैं भला कोई अपना हृदय, मस्तिष्क भी कभी बेचना चाहेगा।

फकीर हँसने लगा और बोला, मैं पागल हूँ या तू ? जब तेरे पास इतनी बेशकीमती चीजें हैं, जिन्हें तू हजारों में तो क्या लाखों में भी नहीं बेच सकता, तो झूठ-मूठ का गरीब क्यों बना हुआ है, अपने को निर्धन क्यों कहता है , इनका उपयोग कर। जो खजाना उपयोग में नहीं आता, वह भरा हुआ भी खाली है और जो उपयोग में आता है, वह खाली भी हो तो भर जाता है। परमात्मा खजाने देता है, अकूत खजाने देता है, लेकिन उन्हें खोजना और खोदना स्वयं ही पड़ता है। जीवन से बड़ी कोई संपदा नहीं है। जो उसमें ही संपदा नहीं देखता, वह संपदा नहीं हैं जो उसमें ही संपदा नहीं देखता, वह संपदा को और कहाँ पा सकता है?

रात्रि आधी से ज्यादा बीत चुकी थी। फकीर जुन्नैद उठे और उस युवक से कहने लगे, अब घर जाओ और सो जाओ। सुबह एक दूसरे व्यक्ति की भाँति उठो। जीवन वैसा ही है जैसा कि हम उसे बनाते हैं। वह मनुष्य की अपनी सृष्टि है। उसे हम मृत्यु भी बना सकते हैं। और अमृत भी। सब कुछ स्वयं के अतिरिक्त और किसी पर निर्भर नहीं हैं। फिर मृत्यु तो अपने आप आ जाएगी । उसे बुलाओ अमृत को । पुकारो परम जीवन को । वह तो तप से, शक्ति से , संकल्प से और साधना से ही मिल सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118