पाने के आनंद से बड़ा (kahani)

August 2000

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भगवान् बुद्ध का अभियान थोड़े से बौद्ध भिक्षुओं ने चलाया और एक दिन वह सारे भारतवर्ष और एशिया में छा गया। कंस दुर्धर्ष था, बालकों में कृष्ण ने सत्याग्रह जगाया व सक्रिय हुए, तो चेतन शक्ति ने उसका संहार कर दिखाया। आततायी असुर रावण के प्रति देवताओं का आक्रोश समवेत उत्साह के रूप में उभरा एवं वानर यूथों ने चेतन-शक्ति के सहारे उसका संहार कर डाला । थोड़े व्यक्तियों के प्रयत्नों से अर्जित सफलता को ईश्वरीय ही कहा जाना चाहिए।

स्वामी रामतीर्थ के जीवन की एक घटना हैं भ्रमण एवं भाषणों से परिश्राँत स्वामी जी अपने निवासस्थान पर लौटे । उन दिनों वे एक महिला के यहाँ ठहरे थे । वे अपने ही हाथों भोजन बनाते थे । अपने स्वभाव के अनुसार वे भोजन करने की तैयारी ही कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास में आकर खड़े हो गए। उनके पास बहुत बच्चे आया करते थे।

बच्चे भूखे थे। स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियाँ एक-एक करके बच्चों में बाँट दी। महिला वही बैठी सब देख रही थी । बड़ा आश्चर्य हुआ उसे । आखिर पूछ ही बैठी, आपने सारी रोटियाँ तो उन बच्चों को दे डाली , अब आप क्या खाएँगे ?

स्वामी जी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई । उन्होंने प्रसन्न होकर कहा, माता रोटी तो पेट की ज्वाला शाँत करने वाली वस्तु है। यदि इस पेट की ज्वाला शाँत करने वाली वस्तु हैं । यदि इस पेट में न सही, तो उस पेट में सही। देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा है।


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