हम कहीं भी किसी तरह स्वतंत्र नहीं

August 2000

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ज्योतिष के क्षेत्र में शोध-अनुसंधान कर रहे पंडित सुरेश कौशल ने कुँडली को सरसरी नजर से देखा और कहा कि आपकी माँ आपकी तुलना में ज्यादा सुँदर और गौरवर्ण हैं तथा उनकी पहली चार संतानें जीवित नहीं रहीं? जातक ने उतर दिया, ठीक है। फिर पूछा, आपके पिता की मृत्यु करीब बीस वर्ष पहले हुई होगी ? उतर था, आप ठीक कहते है?जातक का उद्देश्य आपने कारोबार की संभावनाओं का आँकना था। पंडित कौशल कुँडली के सही, शुद्ध और प्रामाणिक होने की जाँच कर रहे थे। उन्होंने फिर पूछा, आप भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उतर था ठीक । आपका विवाह 1177 में हुआ। यह सभी सही था । कुछ गणना कर बताया, जनवरी , फरवरी 2001 के महीने आर्थिक संकट के रहेंगे इन दिनों सावधानी से रहें। आगे कामकाज अच्छा चलेगा ।

भविष्यकथन वाला भाग अभी परखा नहीं गया, लेकिन बारह वर्गों और नौ ग्रहों में बटे एक मामूली से दस्तावेज के आधार,पर माँ, भाई-बहन और पिता के बारे में सही बता देना आश्चर्य का विषय है प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् कोट्टम राजू नारायण राव ने करीब चालीस हजार कुँडलियाँ का संग्रह कर रखा है। कई प्रमुख लोगों की कुँडलियाँ पढ़कर उनके बारे में भविष्यकथन किया हैं वे कथन सही निकले या नहीं इस बारीकी में न जाएँ। कुँडली लेकर उनके पास आई एक महिला से छोटा सा संवाद इस प्रकार है।

आपके पिता ने एक मकान आपके भाई को दिया है और दूसरा आपको? हाँ महिला की स्वीकारोक्ति थी । फिर श्री राव ने पूछा,आपकी भावज बहुत सुँदर है, लेकिन हठी स्वभाव की हैं,। उतर था, हाँ।

वह अपने पति अर्थात् आपके भाई को आपसे झगड़ा करने के लिए उकसाती रहती है? आपके पति अक्सर अपने साले और सलहाज का पक्ष लेते हैं अक्सर आपकी उपेक्षा करते है? पक्ष लेने के कारण घर में अक्सर तकरार भी हो जाती है ?

इन सभी प्रश्नों का उत्तर महिला ने ‘हाँ’ में दिया। आश्चर्यवश पूछने लगी कि आपने यह सब कैसे जाना- श्री राव ने कहा, ग्रह सब कुछ बोलते हैं। फिर महिला ने यह भी पूछा कि ऐसा कोई उपाय नहीं हो सकता कि मेरे पति मेरे भाई-भावज की तरफदारी करना छोड़ दें और मेरे वश में हो जाएँ। श्री राव ने कहा, उपाय है लेकिन किसी तंत्र-मंत्र से यह संभव नहीं है। सिर्फ ईश्वर-प्रार्थना ही उपाय है। वही सब कुछ करने और नियति को बदलने में समर्थ हैं।

एक ही कुँडली से माता-पिता और भाई-बहनों से लेकर संतानों तक की स्थिति का सही अनुमान कोरी कल्पना नहीं। उसके सुनिश्चित नियम है। पंडित सुरेश कौशल ने प्रारंभ में की गई विवेचना का तकनीकी पक्ष सामने रखा। चौथा घर माँ का हैं। इसमें सूर्य, बुध और शनि बैठे हैं। यहाँ से पाँचवे घर में राहु बैठा है। वह संतान का कारक बनता है। माँ के घर से संबंध होने के कारण उसने पूर्ववर्ती संतानों को जीवित नहीं रहने दिया। माँ के घर से दूसरे घर में चंद्रमा और शुक्र स्थित हैं। उन दोनों का योग बताता है कि माँ बहुत सुँदर और मानिनी होगी। माँ के घर को लग्न भाव मानें तो अष्टम में बैठा बृहस्पति पति का जातक के पिता का द्योतक है। जातक की शनि दशा में गुरु का अंश आया होगा, तो पिता चल बसे।

(ज्योतिष का एक पक्ष यह है कि मनुष्य को स्वतंत्र होने का दम नहीं भरना चाहिए। ग्रह-स्थिति और उनका प्रभाव यह भी सिद्ध करते हैं कि पूरा ब्रह्माण्ड एक शरीर है और जीव-चेतना उसका एक घटक। कहीं भी होने वाले परिवर्तन पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं। इस नाते कोई किसी भी स्तर की सफलता अर्जित कर ले, उसे गर्व से फूल नहीं जाना चाहिए कि अकेले अपने प्रयत्नों का परिणाम है। समूचा अस्तित्व उसे अपने अनुग्रहों से कृतकृत्य करना चाहता है, तभी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अर्जित होती हैं। )

एक अन्य कुँडली की व्याख्या में बताया गया कि सप्तमेश की अंतर्दशा में राहु का संचार हुआ। जातक की पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। आचार्य ने कहा, एक वर्ष तक बीमारी रहेगी। पत्नी के प्राणों नहीं जाएँगे, लेकिन वह मरणाँतक कष्ट झेलेगी। जिनसे की कुंडली देखी गई थी उनकी पत्नी की नो जन्मतिथि मालूम थी और न ही स्वास्थ्य का अगला-पिछला हिसाब। सिर्फ बारह घरों में बँटी आकृति को ही देखा-परखा गया था।

ज्योतिष एक विज्ञान है। यह तथ्य स्वीकार किया जा चुका हैं। भारतीय ज्योतिष विज्ञान के साथ विद्या, साधना और सिद्धि भी है। यह भी सर्वमान्य है। निश्चित ही इस विद्या में अपनाए गए सिद्धाँतों में कुछ तथ्य की दृष्टि से सही सिद्ध नहीं होते। उदाहरण के लिए, पृथ्वी इस जगत का केंद्र नहीं है। जिसे आधार मानकर आकाश को बारह खानों में बाँटा गया और प्रत्येक खाने की राशि का नाम दिया गया। वैज्ञानिक दृष्टि से पृथ्वी नहीं सूर्य इस जगत का केंद्र हैं। सभी ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं।

ज्योतिष विद्या में जिन पिंडों को ग्रह का नाम दिया गया, वे सभी ग्रह नहीं हैं। सूर्य ग्रह नहीं है। चंद्रमा, राहु और केतु ग्रह नहीं हैं। सूर्य अपने मंडल का केंद्र है और मंगल, बुध, बृहस्पति,

शुक्र, शनि, यम, वरुण, वारुणी आदि ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी भी इनमें शामिल हैं। राहु-केतु ग्रह नहीं है। खगोल विज्ञान की दृष्टि से वे दो बिंदु हैं, जहाँ पृथ्वी अपने परिक्रमा-पथ पर कुछ क्षण के लिए अपना रास्ता बदलती है। यम, वरुण, वारुणी आदि ग्रहों को ज्योतिष ने पूरी मान्यता नहीं दी है। वे कुँडली में अंकित जरूर किए जाते हैं। भविष्यकथन अथवा संभावनाओं का पता लगाने में उनकी कोई भूमिका नहीं है।

तथ्यों की दृष्टि से खरा नहीं उतरने पर भी ज्योतिष के आधार पर सही गणनाएँ की जाती हैं। क्या यह अटकलों के साथ अंतर्दृष्टि के तालमेल का विज्ञान है। उत्तर है नहीं। गणित की तरह यह निश्चित सिद्धाँतों और उनके आधार पर सही निष्कर्षों तक पहुँचाने वाला विज्ञान हैं। यह सही है कि वराहमिहिर और आर्यभट्ट के समय सूर्य के आकाश-मंडल का केंद्र होने का पता चल गया था। अंतरिक्ष का अध्ययन करते समय इस तथ्य का पता चल चुका था, लेकिन पहले से प्रचलित मान्यताओं में उलटफेर नहीं किया गया, क्योंकि उससे अंतर नहीं पड़ा, सिद्धाँत की दृष्टि से पृथ्वी को केंद्र माना जाए अथवा सूर्य को, ग्रह पिंडों की गति उतनी ही रहती है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगा रही है, तो भी इस पर रहने वाले प्राणी सौरमंडल की ऊर्जा से उतरने ही तरंगित होते हैं जितने सूर्य के द्वारा परिक्रमा लगाने पर प्रभावित होते। प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है कि सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है और पश्चिम में अस्त। असलियत यह है कि उदय और अस्त के बीच पृथ्वी अपनी कील पर घूमते हुए एक स्थिति तक घूम जाती है। सूर्योदय के समय व्यक्ति जगह खड़ा होता है, अस्त के समय वह जगह सूर्य से पृथ्वी की आधी परिधि के बराबर पूर्व में गति कर जाती है। उस जगह सूर्य अस्त होता दिखाई देता है। तथ्य की दृष्टि से सूर्य नहीं पृथ्वी ही अपने स्थान पर आगे-पीछे हुई है, लेकिन प्रभाव की दृष्टि से स्थान विशेष पर खड़े व्यक्ति के लिए उदय और अस्त की यात्रा ही संपन्न हुई है। भाषा और बोध की दृष्टि से उसके लिए यह कहना ही सुविधाजनक है कि सूर्य पूर्व से पश्चिम दिशा में चला गया।

राहु-केतु आदि परिक्रमा बिंदुओं और चंद्रमा के उपग्रह हो हुए भी ग्रह मान लेने से अंतर नहीं पड़ता। गणित में कोई भी साध्य एक परिकल्पना के आधार पर शुरू किए जाते हैं हल करने की प्रक्रिया संपन्न होती है, तो वे निष्कर्ष पर भी पहुँचते हैं। उदाहरण के लिए, कल्पना की जाती है कि अब से एक त्रिभुज है। आरंभ इस शब्दावली से होता है, माना कि ‘अ ब स’ एक त्रिभुज है। छात्र इस कल्पना को आगे बढ़ाते हैं और तीनों कोणों के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। इस तरह की परिकल्पनाओं को रचने और निष्कर्षों पर पहुँचते रहने की प्रक्रिया से ही विभिन्न आविष्कार हुए, भवन खड़े हुए, औषधियों की खोज हुई, सुविधा-साधन बढ़े और जीवन उत्तरोत्तर सुखद-संपन्न होता गया।

कौन ग्रह किसकी परिक्रमा करता है, इसका तथ्य की दृष्टि से भले ही महत्व हो, लेकिन गतिशील जगत् में उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मान्यताएँ बदल जाएँ तब भी परिणाम वही निकलते हैं। भारतीय परंपरा चंद्रमा की स्थिति के आधार पर राशियों का निर्धारण करती है। उसके अनुसार चंद्रमा जिन नक्षत्रों के घेरे में रहता है, उनके अनुसार राशियाँ अदलती-बदलती हैं। चंद्रमा की गति, तेज है ओर यात्रापथ छोटा। वह ढाई दिन में एक राशि खंड पार कर लेता है, इसलिए ढाई-तीन दिन बाद राशि बदल जाती है। पश्चिम का ज्योतिष सूर्य को आधार मानता है। सूर्य एक महीने में राशि बदलता है। इसलिए सूर्य-चक्र के आधार पर बारह राशियों का चक्र साल भर में पूरा होता है। उस पद्धति से निश्चित हुई राशि और भारतीय पद्धति से स्थिर राशि में बहुत अंतर होता है। वह विपरीत स्थिति तक जा सकता है, लेकिन उसने कथन में कोई अंतर नहीं पड़ता। भारतीय ज्योतिष भी उसी निष्कर्ष पर पहुँचता है, जिस पर पश्चिमी ज्योतिष। बल्कि भारतीय ज्योतिष सूक्ष्म गणनाओं के कारण अपेक्षाकृत ज्यादा सही निष्कर्षों पर ले जाता है।

मान्यताओं और कसौटियों में अंतर महत्वपूर्ण नहीं हैं। महत्वपूर्ण वह शाश्वत सत्य है, जो ज्योतिष के आधार पर सिद्ध होता है। अजीत कुमार एक व्यक्ति हैं। उसके जन्म के समय ग्रहों की जो स्थिति थी, उसके माता-पिता के जीवन में क्या घटनाएँ हुई होंगी। कमल कुमार के चतुर्थ भाव में स्थित सुर्य-शनि कुछ बारीकियों को ध्यान में रखने पर इस नतीजे तक पहुँचाते हैं कि पिता-पुत्र में नहीं बनेगी । कमल कुमार के एक विशेष आयु वर्ष पूरा करने पर यह बात सही निकलती है, तो स्वयंसिद्ध है कि कमल कुमार का जन्म ओर संबंध उसके पिता के जन्म और संबंध से संबंधित हैं उसका जन्म स्वतंत्र नहीं है, बल्कि पिता ही नहीं भाई, बहन, विवाह के बाद आने वाली पत्नी और होने वाली संतानों पर भी निर्भर है। जातक पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है।

ज्योतिष के क्षेत्र में अपना पूरा जीवन होम देने वाले ऋषि-मुनियों का प्रतिपादन है कि मनुष्य कतई स्वतंत्र नहीं है कि आसपास के प्रभावों से बच सके । वह घटनाओं के तारतम्य की एक कड़ी है। आर्षग्रंथों में यह तथ्य समझाया गया। आधुनिक ज्योतिष के जनक बेंगलोर के वेंकट रमन (बी.वी.रमन) ने अनेक शोध -प्रयोगों द्वारा निरूपित किया है कि मनुष्य अपने संबंधियों, माता-पिता और भाई-बहनों से ही नहीं, मित्रों और ज्ञात-अज्ञात साथी-सहचरों से भी प्रभावित होता है। आज जन्म लेने वाले बालक का पच्चीस साल बाद 21 जुलाई 2015 को किस व्यक्ति से परिचय होगा। उसका कैसा स्वभाव होगा, यह पता किया जा सकता है। बी.वी.रमन ने इस तरह के कितने ही प्रयोग किए और उनके निष्कर्ष सही निकले। इस अध्ययन में व्यक्ति के निवास, वहाँ के वातावरण ओर घर के आसपास उगे पेड़-पौधे के बारे में भी बता दिया गया । सन् 1992 में दिल्ली में श्री रमन ने कहा था कि 1999 में आप यहाँ से ढाई सौ किलोमीटर दूर चंडीगढ़ में होगे । वहाँ आपके घर के सामने नीम के दो पेड़ होगे घर के आसपास एक छोटा सुँदर बगीचा भी होगा। अशोक शर्मा ने उस समय ये बातें नोट कर ली और यों ही कहीं रख लीं। सात साल बीतते-बीतते वे वास्तव में चंडीगढ़ पहुँच गए जिस जगह ठिकाना मिला उसे देखकर लगा कि इस जगह के बारे में पहले कभी कुछ सुना है। जगह परिचित-सी लगी। स्मृति पर जोर दिया, तो सात साल पूर्व कही बातें याद आने लगीं।

इस तरह के उद्धरणों ओर प्रमाणों का आशय यह नहीं है कि नियति ही सब कुछ हैं ज्योतिष संभावनाओं का सुनिश्चित विज्ञान हैं। इस आधार पर अतीत को समझा जा सकता है और आने वाले समय का निर्धारण किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कुँडली के छठे भाव से व्यक्ति के बैरी-विरोधियों का अनुमान लगाया जाता है। नैष्ठिक और सात्विक ज्योतिर्विद् बता सकते हैं कि व्यक्ति ने पिछले जन्म में किन के प्रति अपराध हुए है, वे वर्तमान जन्म में भी किसी -न-किसी रूप में विद्यमान हैं ओर भाव बताता है कि वे कैसा व्यवहार करेंगे । उन संभावनाओं को स्थान में रखकर अपने आचार-व्यवहार को मर्यादित रखा जा सकता है। आचार्य बृहस्पति देव ने सरोजनी नगर के एक जातक का छठा और बारहवाँ भाव देखकर बताया कि आपने पिछले जन्म में कम से कम सत्तर निर्दोष जीवों का वध किया है। वे इस जन्म में अपना वैर चुका सकते हैं। जातक ने इस होनहार को आधार मानकर प्राणियों के प्रति सदय और आत्मीय व्यवहार शुरू किया। माँसाहार छोड़कर सात्विक भोजन करने लगा। उन जातक का कहना है कि अब तक चार बार ऐसी घटनाएँ हुई जिनमें दूसरों के कारण कष्ट उठाना पड़ा। एक बार बैल ने सींग मार दिया , ज्यादा चोट नहीं लगी। दूसरी बार स्टेशन पर अकारण ही किसी का कोपभाजन होना पड़ा। दो अन्य घटनाओं में छोटी माटी झड़पें शामिल हैं। उन जातक के मार्गदर्शक का कहना है कि अपने कर्म का परिणाम भोगने और वैर-वृद्धि का त्याग करने से कठिन परिस्थितियाँ आसान और सहन करने लायक स्थिति लेकर आई। वृति यदि पहले की तरह क्रूर होती, तो संभव है ज्यादा कष्ट सहने पड़ते।

जन्मकुँडली व्यक्ति के पिछले कर्मों और उनके भावी परिणामों का ब्लू प्रिंट हैं। इस आधार पर भी कर्मफल की सुनिश्चिता तय होती हैं अध्यात्म की दृष्टि से ज्योतिष का एक पक्ष यह है कि मनुष्य को स्वतंत्र होने का दम नहीं भरना चाहिए।ग्रह-स्थिति और उनका प्रभाव यह भी सिद्ध करते हैं कि पूरा ब्रह्म एक शरीर है और जीव-चेतना उसका एक घटक। कहीं भी होने वाले परिवर्तन पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं। इस नाते कोई किसी भी स्तर की सफलता अर्जित कर ले, उसे गर्व से फूल नहीं जाना चाहिए कि अकेले अपने प्रयत्नों का परिणाम है। समूचा अस्तित्व उसे अपने अनुग्रहों से कृतकृत्य करना चाहता है, तभी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अर्जित होती है।


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