कर्मविज्ञान में गति रखने वाले आचार्य का गत है कि हमारे दैनंदिन शुभ-अशुभ कर्मों के आचार पर भाग्य और भविष्य बनते-बिगड़ते रहते हैं। इसलिए किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के सुनिश्चित भविष्य की अक्षरः भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन है।