चरित्र के अभाव में मनुष्य चापलूस का आश्रय लेता है जिन व्यक्तियों में आत्मविश्वास है ,वे मात्र औचित्य का निर्वाह करते हैं।
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प्राप्ति के आनंद की तुलना में प्रयत्न का पुरुषार्थ अधिक आनंददायक है।
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व्यक्ति का अंत करण वह न्यायालय है, जिसमें परमेश्वर न्यायधीश बनकर विराजमान् रहता है।
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शरीर को देखकर मनुष्य होना पहचाना जाता है और प्रकृति देखकर उसका दैत्य या देवता होना