उदासीनता तथा चिताओं से मुक्त (kahani)

August 2000

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एक राजा दुखी और उदास, चिंतित इतना कि रात को नींद तक नहीं आती । राज्य के मंत्री तथा निजी चिकित्सक उसे प्रसन्न रखने के लिए तरह-तरह के प्रयत्न करने लगे। प्रयत्न क्यों न करते ? राजा जो ठहरा राज्य का। किसी ने कहा, यदि राज्य के सबसे सुखी और प्रसन्न व्यक्ति को ढूँढ़कर उसका उतरीय वस्त्र राजा को पहना दिया जाए , तो उसकी खोई हुई प्रसन्नता लौट सकती है। अनेक मंत्री तथा नौकर-चाकर सुखी व्यक्ति की खोज में निकल पड़े। सब सोचते जो यह कार्य सबसे पहले कर दिखाएगा, उसकी कार्यक्षमता का प्रभाव राजा पर पड़ेगा और राजा खुश हो गया, तो मुँह माँगा पुरस्कार मिलेगा।

एक दिन सड़क के किनारे अपने राम में मस्त एक सज्जन मिल गए। यद्यपि उन्होँने राजा के सम्मुख जाने को बहुत आनाकानी की , पर विवश थे जाना पड़ा । राजा के सम्मुख उपस्थित हुए। जब वह राज्य के सबसे प्रसन्न व्यक्ति से मिले, तो उनकी भी खुशी का ठिकाना न रहा। वह तो चिल्ला पड़े, अच्छा तुम हो सबसे सुर्खी व्यक्ति। फिर तो कितने ही लोग तुमसे ईर्ष्या करते होंगे। लाओ। लाओ!! तुम्हारा उतरीय वस्त्र कहाँ है,मैं भी उसे पहनकर अपनी उदासीनता तथा चिताओं से मुक्त हो जाऊँ।

राजन् ! आप उतरीय वस्त्र की बात कहते हैं, मेरे पास तो ओढ़ने की , पहनने की एक धोती के सिवाय कुछ नहीं। रमता योगी और बहता पानी जैसा मेरा जीवन है। राजा समझ गया कि सुख वस्तुओं में नहीं संतोष में है।


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