शिवत्व की साधना (kavita)

August 2000

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गंगा-गायत्री की धारा कुछ ऐसी लहराए, शिवता की साधना दिनों-दिन प्रबल प्रखरता पाए।

यही पर्व है ऋषिसत्ता के सूक्ष्मरूप होने का, आत्मचेतना का अपार लख रूप, देह खोने का,

किंतु आज वह सूक्ष्म रूप भी कारण रूप हुआ है, सूर्य , विश्व के हर कोने में फैली धूप हुआ है,

उस ऊष्मा से अब सारा ब्रह्माँड प्रभावित होगा, हममें से प्रत्येक वही अब मनोभूमि अपनाए।

है भगवती भवानी श्रद्धा, शिव विश्वास अटल है, दोनों ही मिलकर बन जाते शक्ति -स्रोत अविरल है,

शिव की कृपा , शक्ति से मिलकर जब प्रवाह बन जाती, तब असंख्य निष्प्राणों में वह नूतन प्राण जगाती,

विश्वासी बन सकें , साधना शिव की तभी सफल है, शिव की शक्ति भवानी हम पर कृपा-मेघ बरसाए।

शिव सहयोगी हुए, तभी सुरसरी धरा पर आई , तपे भगीरथ, इसीलिए वह भागीरथी कहाई ,

हम भी तपें, शिवत्व-साधना करें लोकमंगल की , तभी धार हम मोड़ सकेंगे आने वाले कल की ,

गंगा-गायत्री के इस अवतरण-पर्व पर आओ, हर परिजन विश्वास करें, विश्वास सभी का पाए।

गुरु की कारण सत्ता का सान्निध्य वही पाएँगे , जो अपने मन को विशाल आकार बना पाएँगे,

गुरु-निर्वाण-दिवस पर अपने पर विश्वास जगाएँ, विश्वासी बनने की क्षमताएँ मन में विकसाएँ,

जिससे कल आने वाला इतिहास हमारे ऊपर , कहीं न जड़ विश्वासघात का पातक यहाँ लगाए।

*समाप्त*


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