एक बार वाराणसी में गंगाघाट पर एक वृद्ध नहाने उतरे, पर पाँव फिसल गया और डूबने लगे। एक युवक तुरंत कूदा और वृद्ध बच गया। वृद्ध की प्रार्थना पर भी युवक ने कोई पुरस्कार लेना स्वीकार न किया। इस पर वृद्ध ने कहा, तो आवश्यकता पड़ने पर कलकत्ता आना, मैं अवश्य तुम्हारी सहायता करूंगा और उन्होंने पता युवक को दे दिया।
कुछ मास बाद युवक वृद्ध से मिले और कुछ कविताएँ सामने रखता हुआ बोले- इन्हें आप अपनी पत्रिका में छाप दें। कविताओं का स्तर देखकर व युवक की अनुचित माँग को देखते हुए वे बहुत दुखी हुए और बोल-एक बात कहूँ? सहमे युवक ने उत्तर दिया-कहिए। वृद्ध ने कहा- मैं इन्हें नहीं छाप सकता। तुम चाहो तो उस उपकार के बदले में मुझे फिर गंगा में धकेल दो। यह हैं आदर्शवादिता, सिद्धान्तों के प्रति निष्ठा। ऐसे व्यक्ति जीवन व्यापार में भले ही असफल रहें, उनका अंतःकरण उन्हें सदा आशीष देता है तथा उन्हें जनसम्मान भी मिलता है।