तथागत को समाचार मिला तो उन्होंने विनायक को बुलाया और स्नेहभरे शब्दों में पूछा-भिक्षु! यदि कोई ग्वाला सड़क पर निकलने वाली गायें गिनता रहे तो उनका मालिक बन जाएगा? विनायक ने सहज भाव से कहा-नहीं भंते! ऐसा कैसे हो सकता हैं? गौओं के स्वामी ग्वाल को तो उनकी संभाल और सेवा में लगा रहना पड़ता है। तथागत गंभीर हो गए। उनने कहा-तो तात्! धर्म को जितना से नहीं, जीवन से व्यक्त और जनता की सेवासाधना में संलग्न रहकर उसे प्रेमी बनाओ। इस तरह सत्कर्म को पाठ तक नहीं, कर्त्तव्य में उतार लिया जाए तो जीवन में सच्चे अर्थों में समग्रता आ जाती है।