पढ़ाई की ललक उन्हें मुँलाई ले पहुँची, किंतु पास में कुल बीस रुपये, उसी में खाना, उसी में पुस्तकें और मकान का किराया भी। सारा काम इतने पैसों में कैसे पड़े? एक व्यक्ति सूझ पड़ी। चार साथी मिलकर एक कमरा लिया। सामूहिक खाना बन जाता। पढ़ने के लिए एक रुपया मासिक देकर पीटर पुस्तकालय की सदस्यता स्वीकार की। इसी सूझबूझ मुँलाई से उच्च शिक्षा प्राप्त की और अभावों में पला यही बालक एक दिन उत्तरप्रदेश का राज्यपाल भी बना एवं भारतीय विद्याभवन का संस्थापक। उसका नाम कन्हैयालाल माणिकलाल मुँशी।