एक महात्मा अपने विचार प्रकट करने तथा प्रश्नों का उत्तर देने के लिए एक सभा में बुलाये गए। सभा में ये भाषण देने मंच पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ उपस्थिति एक व्यक्ति हाथ की पीड़ा से बहुत कष्ट पाता हुआ कराह रहा हैं। महात्मा तुरंत उसका उपचार करने में लग गए। उनका यह कृत्य देख देख विरोधियों ने समझा कि वे सभा की कारवाई से कतरा रहे हैं। एक आलोचक ने व्यंग्य करते हुए कहा-आप तो शास्त्रार्थ करने आए हैं फिर उस मुख्य कार्य को छोड़कर चिकित्सा कैसे करने लगे?
महात्मा ने बड़े शाँतभाव से उत्तर दिया-क्या तुममें से कोई ऐसा हैं, जिसके एक ही पुत्र हो और वह कुएं में गिर जाए तो वह सारा काम छोड़कर उसे निकालने में न लग जाए?
मेरा मुख्य काम तो पीड़ितों की सेवा करना हैं, लोगों के दुःख-दर्द दूर करना हैं। शास्त्रार्थ तथा व्याख्यान तो जीवन के साधारण कार्यक्रम हैं।